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हंगामे की भेंट न चढ़े संसद

वैसे तो 9 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ लेने के साथ ही 18वीं लोकसभा का कामकाज शुरू हो गया है। लेकिन 18वीं लोकसभा का पहला सत्र 24 जून अर्थात् आज से शुरू होगा। अगर सबकुछ ठीक रहा तो यह सत्र 3 जुलाई तक चलेगा। आशंका है कि थोड़ा मजबूत होकर उभरा विपक्ष अपनी ताकत का अंदाजा कराने के लिए जोरदार हंगामा कर सकता है। हंगामा खड़ा करने के लिए उसने दो-तीन मुद्दों को भी चिह्नित किया है, जिनमें नीट परीक्षा में हुई गड़बड़ी, तीन आपराधिक कानून एवं प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति के मुद्दे शामिल हैं। हालांकि नीट के मुद्दे पर सरकार सक्रियता के साथ काम कर रही है। उसने एनटीए के महानिदेशक को हटा दिया है और सीबीआई को मामले की जाँच सौंप दी है। परीक्षा में गड़बड़ी रोकने एवं दोषियों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही के लिए कानून भी लागू कर दिया है। लेकिन कांग्रेस ने मन बना लिया है कि वह मुद्दे पर सरकार को घेर कर युवाओं को अपने साथ लाने का प्रयास करेगी। विपक्ष के मुख्य चेहरे राहुल गांधी ने बीते दिन युवाओं से इस मुद्दे पर बात भी की है। लोकसभा के अस्थायी अध्यक्ष (प्रोटेम स्पीकर) की नियुक्ति को लेकर कांग्रेस सत्र शुरू होने से पहले ही मुखर हो चुकी है। इस बार ओडिशा से लगातार सात बार के सांसद भर्तृहरि महताब प्रोटेम स्पीकर बने हैं। जबकि कांग्रेस ने अपने आठ बार के सांसद कोडिकुन्निल सुरेश को स्पीकर बनाने की मांग की थी। हालांकि कांग्रेस की माँग और दावा, दोनों ही गलत हैं। कांग्रेस के सांसद सुरेश अवश्य ही आठ बार जीते हैं लेकिन वे लगातार नहीं जीते हैं। इसलिए उनकी वरिष्ठता का आधार नहीं बनता है। प्रोटेम स्पीकर की सहायता के लिए पाँच सांसदों को राष्ट्रपति ने पीठासीन अधिकारी बनाया था, इनमें के. सुरेश (कांग्रेस), सुदीप बंदोपाध्याय (टीएमसी), टीआर बालू (डीएमके) और भाजपा से राधा मोहन सिंह, फगन सिंह कुलस्ते का नाम शामिल है। विपक्ष के तीनों सांसदों ने प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति के विरोध में अपने नाम वापस लेकर इस मुद्दे पर अपने तेवर जाहिर कर दिए हैं। मजेदार बात यह है कि कांग्रेस कभी मुस्लिमों को मंत्री नहीं बनाने का मुद्दा उठाती है तो अब प्रोटेम स्पीकर के मामले में सांसद के. सुरेश को आगे करके गलत दावा कर रही है। जबकि इस बार तो कांग्रेस के पास भी अवसर है कि वह किसी मुस्लिम नेता को नेता प्रतिपक्ष के पद पर नियुक्त करा दे। या फिर के. सुरेश को ही यह पद दे दे। यदि कांग्रेस ऐसा नहीं करती है, तब माना जाना चाहिए कि वह केवल राजनीतिक वितंडावाद खड़ा कर रही है। नेता प्रतिपक्ष का पद राहुल गांधी या फिर परिवार के किसी भरोसेमंद नेता को ही मिलेगा। बहरहाल, तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ने भी तीन आपराधिक कानूनों को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर तीन नए आपराधिक कानूनों के कार्यान्वयन को टालने की अपील की है। ये तीनों कानून 1 जुलाई से लागू होने हैं। ममता ने इन कानूनों की नए सिरे से संसदीय समीक्षा पर जोर देने की बात कही है। यानी ममता की अगुवाई में विपक्ष तीन आपराधिक कानूनों पर भी हमलावर हो सकती है। देखना होगा कि भाजपा मजबूत विपक्ष के उग्र तेवरों का सामना किस प्रकार करती है। अपेक्षा तो यह भी है कि विपक्ष मजबूत हुआ है, तो उसे अपनी जिम्मेदारी का अहसास भी होना चाहिए। संसद को हंगामे की भेंट चढ़ाने की अपेक्षा उसे रचनात्मक एवं सृजनात्मक बहस का केंद्र बनाने के लिए प्रयास करने चाहिए। सत्ता पक्ष एवं प्रतिपक्ष मिलकर 18वीं लोकसभा को सफल बनाएं, यही अपेक्षा देश की है।

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