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विपक्षी रैली और घिसे-पिटे विचार

कांग्रेस सहित विपक्षी गठबंधन ‘आईएनडीआईए’ में शामिल राजनीतिक दल देश की जनता के सामने कोई नया विचार नहीं रख पा रहे हैं। इन दलों एवं उनके शीर्षस्थ नेताओं की ओर से ‘चलताऊ’ बातें कही जा रही हैं। जैसे- संविधान खतरे में है, लोकतंत्र खतरे में हैं। भारतीय जनता पार्टी से हमारी लड़ाई संविधान और लोकतंत्र को बचाने की है। बीते दिन दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित विपक्षी गठबंधन की रैली में सभी नेताओं ने लगभग यही बातें दोहरायी। जिस वक्त विपक्षी गठबंधन के नेता भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार अरविंद केजरीवाल और हेमंत सोरेन को जेल से रिहा करने और प्रवर्तन निदेशालय एवं अन्य एजेंसियों की कार्रवाई रोकने की बातें कह रहे थे, उसी समय उनसे लगभग 80 किमी की दूरी पर मेरठ से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्पष्ट किया कि भ्रष्टाचार के खिलाफ जारी लड़ाई रुकेगी नहीं। स्वाभाविक बात है कि देश की जनता भी चाहती है कि भ्रष्टाचार रुके और जो लोग भ्रष्टाचार करते हैं, उन्हें सजा मिले। ऐसे में देश की जनता उन नेताओं की बातों को क्यों सुनेगी, जो अपने-अपने रिश्तेदारों को भ्रष्टाचार के मामलों में कानूनी कार्रवाई से ऊपर रखना चाहते हैं। जो चाहते हैं कि भ्रष्टाचार के आरोपों पर प्रवर्तन निदेशालय या अन्य कोई संस्था कार्रवाई न करे। विपक्षी गठबंधन की रैली में भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल में बंद अरविंद केजरीवाल और हेमंत सोरेन की पत्नी को केवल स्थान ही नहीं दिया गया, बल्कि उन्हें प्रमुखता से उभारा गया। मजेदार बात यह है कि विपक्षी नेता एकजुटता तो दिखाना चाहते हैं लेकिन आधे-अधूरे मन से। मंच पर लगी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की तस्वीर को ढंक देना, इसका उदाहरण है। जेल में बंद केजरीवाल के लिए सहानुभूति बटोरने के लिए आम आदमी पार्टी के नेता हर संभव प्रयास कर रहे हैं। इसी संदर्भ में उन्होंने रामलीला मैदान में आयोजित विपक्षी गठबंधन की रैली के मंच पर अरविंद केजरीवाल का पोस्टर लगा दिया था, जिसे बाद में अन्य दलों की आपत्ति या परामर्श के बाद ढंक दिया गया। यदि विपक्षी दल मानते हैं कि केजरीवाल के साथ गलत हुआ है, तब उनकी तस्वीर को ढंकने का क्या अभिप्राय था? बहरहाल, देश की जनता अब इस प्रकार की जुमलेबाजी पर विश्वास नहीं करती है, जिसमें विपक्ष के नेता कहते हैं- “लोकतंत्र और संविधान खतरे में है, इसलिए वे भाजपा से लड़ रहे हैं”। लोग अब यह भी देखते हैं कि किसी बात को, कौन कह रहा है। यदि भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे नेता यह कह रहे हैं, तब उनकी बातों पर भला लोगों को क्यों भरोसा होगा? और फिर जब समूचा देश संविधान से चल रहा है, सब खुलकर अपनी बात कह पा रहे हैं, देश में सभी स्तरों पर चुनाव हो रहे हैं, तब भला कैसे कहा जा सकता है कि देश में लोकतंत्र और संविधान खतरे में है? अभी देश के नागरिकों के जेहन में आपातकाल की यादें ताजा हैं, उन्हें पता है कि संविधान और लोकतंत्र पर खतरा किसे कहा जाता है। विपक्षी गठबंधन की रैली में हुए भाषणों में कर्कशता भी सुनायी दी। उनके भाषणों में एक प्रकार से प्रधानमंत्री मोदी, भाजपा और राष्ट्रीय विचार के संगठन आरएसएस के प्रति नफरत थी। कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने तो भाजपा और आरएसएस को जहर ही बता दिया। विपक्ष के नेताओं को चाहिए कि वे कोई ठोस योजना एवं नीति जनता के सामने रखें। आज के पारदर्शी दौर में घिसी-पिटी बातों से देश के नागरिकों का विश्वास नहीं जीता जा सकता है।

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