देश की जनता किसको जनादेश दे रही है, यह बात 4 जून को पता चलेगी लेकिन विपक्षी गठबंधन ‘आईएनडीआईए’ की बैठक 1 जून को ही होने जा रही है। बताया जा रहा है कि इस बैठक में प्रधानमंत्री के चेहरे पर मंथन किया जाएगा। साथ ही संपूर्ण चुनाव का विश्लेषण किया जाएगा। जो चुनाव से पहले विपक्ष का चेहरा नहीं तय कर पाए, अब वे किस प्रकार प्रधानमंत्री के दावेदार पर मुहर लगाते हैं, यह देखने वाली बात होगी। हालांकि इसे विपक्षी दलों का अतिउत्साह ही कहेंगे कि परिणाम से पहले ही ‘प्रधानमंत्री’ की खोज शुरू कर दी गई है। आशा से भरे विपक्षी दल विशेषकर कांग्रेस को डर है कि कहीं उसकी सीटें अन्य राजनीतिक दलों से कम रह गईं तो परिणाम के बाद वह निर्णायक भूमिका में नहीं रह जाएगा। इसलिए जो कुछ निर्णय होना चाहिए, उसे अभी तय करा लिया जाए। क्योंकि एक जून को ही एग्जिट पोल आ जाएंगे, जिससे भी राजनीतिक दलों के प्रदर्शन की एक झलक मिल जाएगी। शायद कांग्रेस भूल रही है कि उसके साथी दल, उससे दो कदम आगे की सोचकर चलते हैं। विपक्षी दलों का गठबंधन बहुमत प्राप्त कर लेगा, यह भ्रम कांग्रेस के उन साथियों ने बनाया है, जिन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 150 सीटों पर समेटने के दावे किए थे। सबने देखा था कि भाजपा ने 2019 में अप्रत्याशित और ऐतिहासिक बहुमत प्राप्त किया था। इस बार भी भाजपा को प्रचंड बहुमत का विश्वास है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर गृहमंत्री अमित शाह और अन्य एजेंसियां भी दावा कर रही हैं कि भाजपा को इस बार फिर से स्पष्ट जनादेश मिल रहा है। इस सबके बाद भी ख्याली पुलाव पकाने से किसी को रोका तो नहीं जा सकता है। ‘प्रधानमंत्री की खोज’ में विपक्षी दल की स्थिति ‘सूत न कपास, जुलाहों में लट्ठम-लट्ठ’ जैसी हो गई है। याद हो कि जून की पहली दिनांक को सातवें चरण का मतदान है। ऐसे महत्वपूर्ण दिन पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने विपक्षी गठबंधन की बैठक क्या सोचकर बुलाई होगी? जरा-सी राजनीतिक समझ रखनेवाला भी यही कहेगा कि मतदान के अंतिम एवं महत्वपूर्ण दिन, पार्टी के नेताओं को मैदान पर अपनी पार्टी को जिताने के लिए जोर लगाना चाहिए। लेकिन पता नहीं किस ने कांग्रेस को यह सुझाव दिया कि विपक्षी गठबंधन की बैठक 1 जून को ही करनी चाहिए। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राजनीतिक समझदारी दिखायी है। पश्चिम बंगाल में कांग्रेस को दो सीटों के लायक भी नहीं समझने वाली तृणमूल कांग्रेस ने इस बैठक से किनारा कर लिया है। 1 जून को पश्चिम बंगाल में 9 सीटों पर मतदान होना है। ये 9 सीटें तृणमूल कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण है। इसलिए पार्टी की वरिष्ठ नेता एवं मुख्यमंत्री चुनाव को छोड़कर बैठक में जाना नहीं चाहेंगी। तृणमूल कांग्रेस ने एक जून को बैठक के निर्णय को अव्यवहारिक बताया है। नि:संदेह, यह राजनीतिक रूप से अव्यवहारिक निर्णय ही है। बहरहाल, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के निर्णय को विपक्षी गठबंधन में फूट पड़ने के तौर पर भी देखा जा सकता है। दरअसल, ममता बनर्जी ने अकसर विपक्षी गठबंधन से स्वयं को दूर या कहें कि ऊपर रखने का प्रयास किया है। बहरहाल, देखना होगा कि 1 जून की बैठक से क्या निकलकर आता है? इस बैठक के बाद कोई ठोस निर्णय सामने आएगा या फिर पहले की बैठकों की तरह इस बैठक की स्थिति भी ‘खोदा पहाड़ निकली चुहिया’ जैसी रहती है।
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