सर्वोच्च न्यायालय ने मतदाता पर्ची से चुनाव कराने और इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) एवं वीवीपैट पर्ची की 100 प्रतिशत गिनती कराने से जुड़ी सभी याचिकाओं को रद्द कर दिया है। इसे ईवीएम की एक और जीत के तौर पर देखा जा सकता है। दरअसल, जब से कांग्रेस दुर्दशा को प्राप्त हुई है, तब से लगातार उसके नेताओं द्वारा ईवीएम पर सवाल उठाए जा रहे हैं। चुनाव आयोग की स्पष्टता एवं खुली चुनौती के बाद भी कांग्रेस सहित कई विपक्षी दल ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठाकर लोकतांत्रिक व्यवस्था, संवैधानिक संस्थाओं एवं निर्वाचन की पारदर्शी व्यवस्था के प्रति मतदाताओं के मन में संदेह पैदा करते रहे हैं। मतदाताओं का विश्वास बनाए रखने के लिए चुनाव आयोग ने वीवीपैट की व्यवस्था की। वीवीपैट की सहायता से मतदाता यह देख सकता है कि उसने जिस प्रत्याशी/दल के सामने का बटन दबाया, उसका मत उसी को मिला या नहीं। किसी प्रकार का संदेह नहीं रह जाए इसलिए चुनाव आयोग ने एक निश्चित प्रतिशत में वीवीपैट की पर्चियों के मिलान की व्यवस्था भी की है। परंतु इतना सब होने के बाद भी बार-बार हार का सामना करनेवाली कांग्रेस एवं विपक्षी पार्टियां सच स्वीकार करने और आत्मचिंतन करने को तैयार नहीं हैं। उन पर कहावत ‘नाच न जाने, आंगन टेड़ा’ सटीक लागू होती है। ईवीएम पर सवाल उठाने की अपेक्षा आवश्यक था कि कांग्रेस ईमानदारी से अपनी स्थिति का आकलन करे। अपनी नीतियों का मूल्यांकन करे। यह जानने की कोशिश करे कि आखिर मतदाताओं में कांग्रेस को लेकर इतनी नाराजगी क्यों है? ऐसा भी नहीं है कि कांग्रेस पिछले 10 वर्षों से केवल हार ही रही है। कई राज्यों में उसने इसी ईवीएम से हुए चुनावों के बाद बहुमत प्राप्त करके सरकार बनायी है। यदि ईवीएम में कोई दोष होता, तब वह इन राज्यों में कैसे चुनी जाती रही? विशेषकर मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और हिमाचल में, जहाँ भाजपा को लोकसभा में एकतरफा जीत मिलती है। यदि ईवीएम को हैक किया जा सकता तब भाजपा अवश्य ही केरल सहित भारत के दक्षिणी हिस्से के कुछ महत्वपूर्ण राज्यों में अपनी उपस्थिति दर्ज कर लेती। पश्चिम बंगाल में पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के पक्ष में जिस प्रकार का वातावरण बना था, उसके बाद भी वह हार गई। यह इसी बात का परिणाम है कि ईवीएम से निष्पक्षता से मतदान होता है। दरअसल, कांग्रेस के साथ दिक्कत यह है कि उसने ऐसे बुद्धिजीवियों का साथ ले रखा है, जो कागजों में उसके पक्ष में वातावरण बने होने का दावा करते हैं। जब कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के आसपास ऐसा वातावरण रच दिया जाता है कि ‘हम ही जीत रहे हैं’, तब विपरीत परिणाम आने पर उन्हें कुछ सूझ ही नहीं पड़ता। या फिर यह भी हो सकता है कि कांग्रेस के नेता गरीब परिवार से आनेवाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जीत को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं इसलिए उनकी विजय को संदिग्ध सिद्ध करने की कोशिश की जाती हैं। वर्ष 2014 के चुनाव में तो कांग्रेस के एक नेता ने कहा ही था कि ‘एक चायवाला क्या देश चलाएगा। वह चाहे तो कांग्रेस के अधिवेशन में चाय का ठेला लगा सकता है। हम उसे स्थान दे देंगे’। बहरहाल, सर्वोच्च न्यायालय ने साफ कर दिया है कि ईवीएम पर सवाल उठाना निरर्थक हैं। फिर से मतपत्रों से चुनाव कराने की पुरानी व्यवस्था में लौटना कतई बुद्धिमानी नहीं होगा। उस व्यवस्था को न्यायालय ने ‘अव्यवस्था’ ही माना है। स्मरण रहे कि यह 40वीं बार है, जब ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठानेवाली याचिकाओं को न्यायालयों ने खारिज किया है। इससे पहले विभिन्न न्यायालय भी इस तरह की बेतुकी याचिकाओं को रद्द कर चुके हैं। अच्छा होगा कि अब कांग्रेस सहित विभिन्न दल ईवीएम पर सवाल उठाकर अवैज्ञानिक सोच का विस्तार न करें।
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