लोकसभा चुनाव परिणाम की चर्चा के बीच ओडिशा के परिणाम को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। लोकसभा चुनाव के साथ सम्पन्न हुए राज्यों के चुनाव में भाजपा को अरुणाचल प्रदेश के साथ ही ओडिशा में भी बड़ी सफलता मिली है। ओडिशा में भाजपा पहली बार सरकार बनाने जा रही है। वहीं, आंध्रप्रदेश में भी भाजपा के गठबंधन को बड़ा बहुमत मिला है। ओडिशा में 24 वर्षों से अब तक लोकप्रिय मुख्यमंत्री नवीन पटनायक का एकछत्र राज था। उनकी लोकप्रियता के सामने कोई भी दल वहाँ टिक ही नहीं पाता था। उनकी सौम्य छवि एवं लोक कल्याणकारी योजनाओं ने ओडिशा के नागरिकों के मन में गहरी पैठ बना रखी थी। पटनायक के सामने भाजपा की ओर से कोई बड़ा चेहरा नहीं था फिर भी जगन्नाथ भगवान का आशीर्वाद मिलना भाजपा के लिए सुखद है। लंबे समय में हिन्दी पट्टी के बाहर विस्तार के लिए प्रयासरत भाजपा को ओडिशा में अभूतपूर्व जनादेश मिलना बहुत बड़ी राजनीतिक घटना है। सभी राजनीतिक दलों एवं राजनीतिक विश्लेषकों को ओडिशा के परिणाम का विश्लेषण अवश्य करना चाहिए। ओडिशा का परिणाम इस बात का भी साक्षी है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा के प्रति जनता का विश्वास बढ़ रहा है। ओडिशा में भाजपा की सफलता के पीछे राष्ट्रीय विचार के संगठनों की सक्रियता के साथ ही मोदी सरकार की कल्याणकारी योजनाएं हैं। विकास पुरुष की छवि वाले नेता नवीन पटनायक की जगह कोई ले सकता है, तो वह भाजपा ही है। यही विचार करके ओडिशा के नागरिकों ने भाजपा के पक्ष में एकतरफा मतदान किया। लोकसभा चुनाव में भाजपा को 21 में से 20 सीट ओडिशा ने दी है। ओडिशा में भाजपा की सीट बढ़ेंगी, यह बात तो सभी कर रहे थे लेकिन इतनी सीट बढ़ जाएंगी, इसकी कल्पना भाजपा नेतृत्व ने भी नहीं की होगी। इसका सीधा कारण है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व और लोक कल्याणकारी योजनाओं के कारणा ओडिशा के नागरिकों के मन में भाजपा के प्रति वही विश्वास पैदा हुआ, जो अब नवीन पटनायक के प्रति था। यह भी कहना होगा कि पिछले कुछ समय से नवीन पटनायक को लेकर उनकी पार्टी एवं जनता में संदेह और असंतोष का भाव गहराने लगा था। इसका सबसे बड़ा कारण तमिलनाडु कैडर के आइएएस अधिकारी वीके पांडियन हैं। पांडियन जब से नवीन पटनायक के खास बने हैं तब से वह अपने सहयोगियों, मंत्रियों, नेताओं एवं कार्यकर्ताओं से कटने लगे थे। पांडियन की सोच को लेकर ओडिशा की जनता में भी गहरी नाराजगी थी। पांडियन के बारे में कहा जाने लगा था कि राज्य में अब नवीन पटनायक की नहीं बल्कि पांडियन की चलती है। पांडियन के बिना राज्य में पत्ता भी नहीं हिल सकता। पार्टी से लेकर सरकार के निर्णयों में पांडियन का हस्तक्षेप अत्यधिक बढ़ गया था। लोगों में यह भी भ्रम हो गया था कि पांडियन ही नवीन पटनायक के उत्तराधिकारी है। इस धारणा का बीजेडी को कितना नुकसान हुआ, उसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि नवीन पटनायक को बीच चुनाव में अपने उत्तराधिकार पर स्पष्टीकरण देना पड़ा। लेकिन जब एक बार बात बिगड़ जाती है, तब फिर वह इतनी आसानी से कहाँ संभाली जा सकती है। ओडिशा में 174 सीटों में से 78 सीटें जीतकर भाजपा ने स्पष्ट जनादेश प्राप्त किया है। भविष्य में भाजपा की राजनीति का नया गढ़ ओडिशा बनेगा, इसकी पूरी संभावना दिखायी दे रही हैं।
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