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अब अंतिम चरण

देश की सरकार चुनने के लिए लंबी अवधि का निर्वाचन कार्यक्रम अब अपने अंतिम चरण में पहुँच गया है। छठवें चरण में भीषण गर्मी के बीच लाखों मतदाताओं ने अपने मताधिकार के उपयोग में जो उत्साह दिखाया है, उसकी सराहना करनी चाहिए। निश्चित ही हमें याद रखना चाहिए कि पाँच साल में एक बार हमें अपने देश की सरकार चुनने का अवसर मिलता है, तब इस अवसर को क्यों चूकें। अंतिम चरण के मतदाताओं को प्रेरणा लेकर मतदान का संकल्प लेना चाहिए। शनिवार को जब छह राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों की 58 सीटों के लिए मतदाता अपने घर से निकला, तब कई राज्यों में गर्म हवा की चेतावनी मौसम विभाग ने जारी की हुई थी। परंतु, पिछले कुछ दिनों में राजनीतिक गर्मी इतनी अधिक बढ़ गई कि मतदाताओं के अपने मताधिकार से राजनीतिक विमर्श का उत्तर देने का निर्णय किया। यह तो 4 जून को ही पता चलेगा कि मतदाताओं ने किसके विमर्श का समर्थन किया और किसकी बातों को विरोध किया है। फिलहाल तो उत्साह की बात यह है कि कई प्रकार के नकारात्मक चर्चाओं के बाद भी मतदाताओं ने चुनाव आयोग और लोकतंत्र में विश्वास दिखाया है। छठवें चरण में 59 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ है। सबसे ज्यादा मतदान पश्चिम बंगाल में हुआ, वहीं सबसे कम मतदान 52 प्रतिशत जम्मू और कश्मीर में हुआ। हालांकि पिछले चुनावों की तुलना में जम्मू-कश्मीर में मतदान प्रतिशत में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। जम्मू-कश्मीर में 35 वर्षों में सबसे अधिक मतदान दर्ज किया गया है, जो 2014 में दर्ज किए गए मतदान के पिछले उच्चतम आंकड़े से 9 प्रतिशत अधिक है। अनंतनाग-राजौरी लोकसभा क्षेत्र में 53 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया। हम इसे लोकतंत्र की जीत मान सकते हैं कि संपूर्ण जम्मू-कश्मीर में मतदान प्रतिशत बढ़ा है। पांचवे चरण में तो उन सीटों पर भी मतदान हुआ, जहाँ एक समय में आतंकवादियों का वर्चस्व था और लोग मतदान के लिए निकलने से डरते थे। विवादित अनुच्छेद-370 एवं 35ए को निष्प्रभावी किए जाने के प्रभाव के तौर पर भी इसे देखना चाहिए। शनिवार को अपने मताधिकार का उपयोग करने आए विस्थापित कश्मीरी पंडित वीर सराफ ने 32 साल बाद वोट डालने पर खुशी जताई और कहा कि कश्मीर के बदलते हालात ने उन्हें कश्मीर आकर वोट करने के लिए मजबूर किया है। उसने कहा कि वह अल्पसंख्यक समुदाय से है, जो आमतौर पर यहां नहीं आता है। लेकिन पिछले दस वर्षों में कश्मीर में बदलते हालात ने उसे अपने मताधिकार का उपयोग करने के लिए मजबूर किया। वीर सराफ उन सब कश्मीर हिन्दुओं का प्रतिनिधि चेहरा है, जिन्हें एक समय में उनके ही घर से बेदखल कर दिया गया था। वर्षों तक प्रदेश और देश पर शासन करनेवाली सरकारों ने कभी भी उनके हितों की चिंता नहीं की। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार ने कश्मीरी हिन्दुओं के दर्द को समझा और उस विवादित अनुच्छेद को समाप्त किया, जो उनकी तकलीफ का कारण था। छठवें चरण के मतदाताओं ने बताया है कि चुनाव कितना महत्वपूर्ण है। अगर हम ठीक नेतृत्व नहीं चुनेंगे, तब कश्मीरी हिन्दुओं की तरह वर्षों तक लोकतंत्र से बाहर हो सकते हैं। इसलिए अब अंतिम चरण के चुनाव में शामिल होनेवाले मतदाताओं की स्थिति ‘मत चूको चौहान’ जैसी है। देश के विकास और भारत की एकता-अखंडता के लिए सर्वाधिक मतदान करके अंतिम चरण के मतदाताओं को उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए।

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