देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यह ताकत है कि जब भी उन्होंने नागरिकों से किसी प्रकार का आह्वान किया है, वह जनांदोलन में परिवर्तित हुआ है। एक बार फिर प्रधानमंत्री मोदी के ‘एक पेड़ माँ के नाम’ का आह्वान करते ही देशभर में लोग उत्साहित होकर पौधरोपण कर रहे हैं। पौधरोपण के मामले में मध्यप्रदेश ने एक बार फिर सर्वाधिक पौधे रोपने का कीर्तिमान रचा है। स्वच्छता के मामले में देश में प्रथम स्थान पर रहकर मध्यप्रदेश का मान बढ़ानेवाले इंदौर ने 12 लाख 65 हजार पौधे रोपकर बड़ा संदेश समूचे देश को दिया है। चार दिन पहले ही मध्यप्रदेश की राजधानी में एक लाख 25 हजार पौधे रोपे गए थे। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इस अवसर पर कहा भी कि पर्यावरण संरक्षण के प्रति सामाजिक चेतना जगाने के साथ ही प्रदेश में 5 करोड़ 51 लाख पौधे लगाने का लक्ष्य है। यह उल्लेखनीय होगा कि पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी पौधरोपण को लेकर संकल्पबद्ध हैं। उन्होंने प्रतिदिन एक पौधा लगाने का संकल्प तीन वर्ष पूर्व लिया था, जिसे आज तक अनवरत निभा रहे हैं। उनसे प्रेरणा लेकर प्रदेश में बड़ी संख्या में पौधा रोपण किया गया। इसके अतिरिक्त उनके प्रयासों से 2 जुलाई, 2017 को संपूर्ण प्रदेश में 6 करोड़ 63 लाख पौधे रोप कर कीर्तिमान रचा जा चुका है। ये सब बताता है कि भाजपा के राजनेता एवं सरकारें सामाजिक मुद्दों को लेकर भी बहुत संवेदनशील एवं समर्पित रहती हैं। यह ध्यान नहीं आता है कि इससे पहले किसी नेता ने पर्यावरण संरक्षण को लेकर इस प्रकार का आह्वान और अभियान चलाया हो। बहरहाल, भारतीय जनता पार्टी के नेता एवं कार्यकर्ताओं के अतिरिक्त समाज में पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्धन हेतु पौधरोपण को लेकर एक जागृति की लहर दौड़ गई है। यह कहने में कोई संकोच नहीं कि विभिन्न ज्वलंत मुद्दों पर समाज में भाव जागरण करने के मामले में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कोई जवाब नहीं है। जब किसी मुद्दे के साथ व्यक्ति का भावनात्मक संबंध जुड़ जाता है, तब वह उसको लेकर अधिक समर्पण, निष्ठा और सक्रियता के साथ कार्य करता है। भारतीय संस्कृति में पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से हमारे पुरखों के प्रकृति के सभी तत्वों के साथ मनुष्य का एक भावनात्मक संबंध विकसित किया है। हिन्दू संस्कृति के अलावा कहीं भी प्रकृति के साथ आत्मीय एवं मानवीय संबंधों की परंपरा दिखायी नहीं देती है। भारत में ही पेड़-पौधों, नदी-पर्वत, ग्रह-नक्षत्र, अग्नि-वायु सहित प्रकृति के विभिन्न रूपों के साथ मानवीय रिश्ते जोड़े गए हैं। पेड़ की तुलना संतान से की गई है तो नदी को माँ स्वरूप माना गया है। ग्रह-नक्षत्र, पहाड़ और वायु देवरूप माने गए हैं। हिन्दू संस्कृति में वृक्ष को देवता मानकर पूजा करने का विधान है। वृक्षों की पूजा करने के विधान के कारण हिन्दू स्वभाव से वृक्षों का संरक्षक हो जाता है। सम्राट विक्रमादित्य और अशोक के शासनकाल में वन की रक्षा सर्वोपरि थी। चाणक्य ने भी आदर्श शासन व्यवस्था में अनिवार्य रूप से अरण्यपालों की नियुक्ति करने की बात कही है। हमारे महर्षि यह भली प्रकार जानते थे कि पेड़ों में भी चेतना होती है। इसलिए उन्हें मनुष्य के समतुल्य माना गया है। ऋग्वेद से लेकर बृहदारण्यकोपनिषद्, पद्मपुराण और मनुस्मृति सहित अन्य वाङ्मयों में इसके संदर्भ मिलते हैं। छान्दोग्यउपनिषद् में उद्दालक ऋषि अपने पुत्र श्वेतकेतु से आत्मा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि वृक्ष जीवात्मा से ओतप्रोत होते हैं और मनुष्यों की भाँति सुख-दु:ख की अनुभूति करते हैं। हिन्दू दर्शन में एक वृक्ष की मनुष्य के दस पुत्रों से तुलना की गई है-
‘दशकूप समावापी: दशवापी समोहृद:।
दशहृद सम:पुत्रो दशपत्र समोद्रुम:।। ‘
स्मरण रखें कि यह पहली बार नहीं है जब प्रधानमंत्री मोदी ने पर्यावरण संरक्षण को लेकर बड़ी पहल की है। राष्ट्रीय स्तर से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पर्यावरण संरक्षण को लेकर उनकी संजीदगी साफ दिखायी देती है। विभिन्न वैश्विक मंचों से समय-समय पर प्रधानमंत्री मोदी ने पर्यावरण संरक्षण को जनांदोलन बनाने का आह्वान किया है। पर्यावरण सरंक्षण के प्रति उनकी संवेदनशीलता अनुकरणीय है। पर्यावरण संवर्धन के इस पवित्र आह्वान में सबको दलीय एवं वैचारिक प्रतिबद्धता से ऊपर उठकर शामिल होना चाहिए। ‘एक पेड़ माँ के नाम’ का प्रधानमंत्री मोदी का यह आह्वान जनांदोलन में तो परिवर्तित हो गया है। आवश्यक है कि यह पर्यावरण संरक्षा के प्रति समाज में आई यह लहर स्थायी तौर पर रहे। अपने पूर्वजों की भाँति पर्यावरण संरक्षण को हमें भी अपनी आदत बना लेना चाहिए।
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