भगवान शिव की नगरी काशी में अब हर-हर महादेव की गूंज है। वर्षों से न्याय की प्रतिक्षा कर रहे हिन्दुओं के लिए मानो अच्छे दिन आ गए हों। अयोध्या में भगवान श्रीराम की जन्मभूमि पर श्रीरामलला का मंदिर बनने के बाद काशी को लेकर उत्साहजनक संकेत मिल रहे हैं। काशी में ज्ञानवापी परिसर को लेकर पहले भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट सामने आई, जिससे यह सत्य स्थापित होता है कि तथाकथित मस्जिद का ढांचा मंदिर के ऊपर ही बनाया गया है। एक समय में वहाँ विशाल हिन्दू मंदिर था। सर्वेक्षण में ऐसे अनेक प्रमाण मिले हैं, जिन्हें देखने के बाद कोई भी निर्दोष व्यक्ति यह कहेगा ही कि मंदिर को तोड़कर यह मस्जिदनुमा ढांचा खड़ा किया गया है। हिन्दू समाज की सहनशीलता है कि सच जानते हुए इतने वर्षों से उसने कभी अवैध कब्जे को हटाया नहीं अपितु अपने ही अधिकार के लिए न्याय के मार्ग का अनुसरण किया। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट के बाद मुस्लिम समुदाय के उदार बंधुओं को एकजुट होकर सामने आना चाहिए और कट्टरपंथी धड़े को आईना दिखाते हुए ज्ञानवापी परिसर को पूरी तरह हिन्दू समाज को सौंप देना चाहिए। हिन्दू समाज इस पहल की वर्षों से प्रतीक्षा कर रहा है। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि मुस्लिम समाज का उदार वर्ग कभी भी एकजुट होकर सामने नहीं आता जबकि कट्टरपंथी तत्व आगे बढ़कर समूचे मुस्लिम समाज का चेहरा बन जाते हैं। ऐसे कट्टरपंथी तत्वों के कारण ही सदैव से मुस्लिम समाज की छवि धूमिल होती रही है। हैरानी होती है कि कोई समाज अपने आप के धर्मांत आतातायियों के साथ कैसे जोड़ सकता है? औरंगजेब ने जो अपराध किए, उन पर गौरव करने की जगह, शर्मिंदगी महसूस करनी चाहिए। इतने प्रमाण सामने आने के बाद भी मुस्लिम पक्ष ने व्यासजी की पूजा-अर्चना पर रोक लगाने के लिए उच्च न्यायालय की ओर दौड़ लगाई। कुछ भी करके सच को बदला तो नहीं जा सकता। उच्च न्यायालय ने भी मुस्लिम पक्ष की माँग को खारिज करके पूजा पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। ऐसा प्रतीत होता है कि मुस्लिम समुदाय अपनी मानसिकता में बदलाव लाने के लिए तैयार नहीं है। बहरहाल, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट के साथ ही एक और अच्छी खबर वाराणसी से आई। न्यायालय ने ज्ञानवापी परिसर के भूगर्भगृह में, जिसे व्यासजी तहखाना कहा जा रहा है, वहाँ पूजा करने की अनुमति दे दी है। न्यायालय ने प्रशासन को सात दिन का समय दिया था लेकिन प्रशासन ने उसी दिन से पूजा करने की व्यवस्था कर दी। इस निर्णय से सरकार-सरकार का फर्क दिखायी देता है। एक सपा सरकार थी, जिसने ज्ञानवापी में पूजा पर रोक लगावा दी थी, वहीं एक योगी सरकार है जिसने न्यायालय के निर्णय के बाद तत्काल पूजा शुरू करा दी। ज्ञानवापी परिसर के प्रकरण में भी हिन्दुओं की आस्था एवं भावनाओं के साथ भाजपा ही खड़ी दिखायी दे रही है जबकि अन्य राजनीतिक दल अभी भी दूर खड़े हैं। सब कुछ तथ्य उजागर होने के बाद भी हिन्दुओं की भावनाओं का साथ देने की अपेक्षा चुप्पी साधने को न्यायपूर्ण नहीं कहा जा सकता। कथित न्याय यात्रा निकाल रही कांग्रेस भी ज्ञानवापी प्रकरण पर न्याय की बात करती हुई दिखायी नहीं दे रही है। यदि सब राजनीतिक दल मिलकर प्रमाणों एवं तथ्यों के साथ खड़े दिखायी दें, तो संभव है कि मुस्लिम समुदाय के कट्टरपंथी धड़े के तेवर कमजोर पड़ जाएं और वहाँ भी उदारवादी मुस्लिमों को आगे आने का संबल मिल जाए। मुस्लिम पक्ष जिस सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल अयोध्या में स्थापित करने से चूक गया, उसे वह वाराणसी और मथुरा में कर सकता है। ईश्वर ने उसे एक मौका फिर से दिया है।
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