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‘द केरल स्टोरी’ से सामने आए कई सच

लव जिहाद, कन्वर्जन, आतंकवाद और सांप्रदायिकता के मुद्दे पर बनी फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ को लेकर तथाकथित प्रगतिशील, मार्क्सवादी, माओवादी, लेनिनवादी और उनके साथ में कांग्रेसी विचारधारा के बुद्धिजीवी हो-हल्ला मचा रहे हैं। फिल्म को दर्शकों तक पहुँचने से रोकने के लिए इस वर्ग ने एड़ी-चोटी का जोर लगा लिया है। फिल्म दर्शकों के सामने न जाए इसलिए इस पर रोक लगाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में अपील की गई। अच्छी बात यह है कि सर्वोच्च न्यायालय ने सभी प्रकार के कुतर्कों को रद्द करते हुए ‘द केरल स्टोरी’ पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। कुल मिलाकर फिल्म अभी आई भी नहीं है, उससे पहले ही उसने तथाकथित सेकुलर गिरोह की कलई खोलकर रख दी है। अभिव्यक्ति और सिनेमाई स्वतंत्रता का झंडाबरदार यह समूह वास्तव में असहिष्णु और तानाशाही है। यह समूह वास्तव में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पक्षधर नहीं अपितु उसका विरोधी है। वर्षों तक प्रोपेगंडा फिल्मों का निर्माण/समर्थन करनेवाले ये लोग सच्ची घटनाओं को दिखानेवाली फिल्मों का रोकना चाहते हैं। जब भी किसी ने इस्लामिक सांप्रदायिकता का सच दिखाने का प्रयास किया है, यह वर्ग उसके विरोध में खड़ा हो जाता है। याद हो, जब कश्मीरी हिन्दुओं के नरसंहार पर विवेक अग्निहोत्री की फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ आई थी, तब भी इस गिरोह ने खूब हो-हल्ला मचाया था। जम्मू-कश्मीर में हिन्दुओं के साथ हुई त्रासदी को इस वर्ग ने ‘प्रोपेगंडा’ सिद्ध करने के लिए क्या-क्या धत्कर्म नहीं किए। ठीक वही रवैया इनका लव जिहाद का शिकार होनेवाली युवतियों के प्रति दिखायी दे रहा है। लव जिहाद का खिनौना चेहरा न्यायालय को दिख रहा है और अवैध ढंग से कन्वर्जन कर केरल को मुस्लिम बाहुल्य राज्य में बदलने की साजिश कम्युनिस्ट नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंदन को भी दिख रही है परंतु वर्तमान का तथाकथित सेकुलर गिरोह चाहता है कि सब इसे झूठ मान लें। शर्म आती है ऐसी सोच पर जिसे युवतियों की पीड़ा नहीं दिख रही, जिस युवतियों के विरुद्ध चल रही घिनौनी साजिश समझ नहीं आती है, जो कुख्यात आतंकी संगठन आईएसआईएस के सेक्स स्लैब से आती महिलाओं की चित्कार को नहीं सुन पा रहा है। यह गिरोह बेशर्मी से एक आंकड़े को लेकर लव जिहाद की मानसिकता का बचाव करने की कोशिश कर रहा है कि 32 हजार युवतियां लापता हैं, इसका सत्यापन किसने किया, यह आंकड़ा कहाँ से आया है? 32 हजार को छोड़ दीजिए, क्या ऐसी एक भी घटना को स्वीकार किया जा सकता है, जिसमें छल-बल से किसी युवती को प्रेम में फंसाया गया, उसका कन्वर्जन किया गया, शोषण किया गया, उसके बाद सांप्रदायिक एवं आतंकवादी गतिविधियों में झौंक दिया गया हो? क्या इस बात से इनकार किया जा सकता है कि ऐसी घटनाएं हो नहीं रही हैं? केरल की छोड़िए, अब तो समूचे देश में इस ढ़ग की घटनाएं सामने आ रही हैं, जिनमें नाम और पहचान बदलकर मुस्लिम लड़के/पुरुष गैर-मुस्लिम लड़कियों से दोस्ती करते हैं और शादी कर लेते हैं। लड़की को बाद में पता चलता है कि वह जिसे संजय समझ रही थी, वह सलीम है। ज्यादातर मामलों में लड़कियां एक ऐसे अंधे कुंए में फंस जाती हैं, जहाँ से वे बाहर नहीं निकल पाती हैं। उन पर अपना धर्म छोड़कर इस्लाम स्वीकार करने के लिए दबाव बनाया जाता है। जब ये लड़कियां इस साजिश का प्रतिरोध करती हैं, तब या तो उन्हें यूं ही छोड़ दिया जाता है या फिर हत्या कर दी जाती है। बहरहाल, ‘द केरल स्टोरी’ सच्ची घटनाओं पर आधारित ऐसी फिल्म है, जो समाज को झकझोरने का काम कर सकती है। यह फिल्म ऐसी गहरी साजिश की ओर सबका ध्यान खींच सकती है, अगर उस पर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया तो निकट भविष्य में भारतीय समाज छिन्न-भिन्न हो जाएगा। उम्मीद है कि ‘द केरल स्टोरी’ एक सकारात्मक संदेश देने में सफल होगी।

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