राजनीतिक प्रचार-प्रसार में भाषा का स्तर बहुत नीचे चला गया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का विरोध करते हुए सोशल मीडिया एक्स (ट्वीटर) पर ‘विथ कांग्रेस’ हैंडल से ‘मामा का श्राद्ध’ जैसा घोर आपत्तिजनक पोस्टर जारी किया गया। राजनीतिक विरोध में किसी व्यक्ति की मृत्यु की कामना करना, कितनी नकारात्मक सोच है। यह पोस्ट देखकर मुख्यमंत्री के पुत्र कार्तिकेय चौहान भी आहत हुए। उन्होंने इतना ही लिखा कि “कांग्रेस पर क्रोध करूं या दया? मुझे तरस भी आप लोगों पर आता कि कितना नीचे कांग्रेसी आज गिर चुके हैं”। किसी भी बच्चे के लिए यह चिंताजनक एवं दु:खद ही होगा कि जीते जी उसके पिता का श्राद्ध करने का पाप किया जा रहा हो। कांग्रेस की ‘मोहब्बत की दुकान’ से निकली यह घृणित पोस्ट मध्यप्रदेश की राजनीति में भूचाल ला सकती है। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी इसके लिए कांग्रेस पर जोरदार हमला बोल दिया है। प्रदेश के सामान्य नागरिक भी इस पोस्ट को पचा नहीं पा रहे हैं। यह कहने में अतिशयोक्ति नहीं कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से प्रदेश की बहुसंख्यक जनता बहुत प्रेम करती है। किसी के लिए वे मामा हैं, तो किसी के लिए पाँव-पाँव वाले भैया, बुजुर्गों के लिए श्रवण कुमार हैं तो अब महिलाओं के लिए उनके लाड़ले भैया के रूप में भी मुख्यमंत्री की पहचान बन गई है। उनकी रैलियों में उमड़नेवाली भीड़ भी इस बात की गवाही देती है कि वर्तमान समय में वे मध्यप्रदेश के सबसे लोकप्रिय राजनेता हैं। याद हो, जब कांग्रेस के नेताओं ने देश के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को मौत का सौदागर और नीच जैसे अपशब्द कहे, तो गुजरात से लेकर केंद्र तक की राजनीति में उसके क्या परिणाम आए। गुजरात के चुनाव में मजबूत स्थिति में नजर आ रही कांग्रेस को खाते पराजय ही आई। जनप्रिय नेताओं के विरुद्ध जब घृणित बयानबाजी की जाती है, तब जनता उसको स्वीकार नहीं करती है। मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में ‘मामा का श्राद्ध’ कांग्रेस को भारी पड़ सकता है। पहले से मजबूत दिख रही भाजपा को शिवराज सिंह चौहान के प्रति बन रही सहानुभूति की लहर का सीधा लाभ मिलेगा। भले ही कांग्रेस की ओर से सफाई में कहा जा रहा है कि ‘मामा का श्राद्ध’ पोस्टर उसकी ओर से जारी नहीं किया गया है लेकिन जनता उसकी सफाई पर कितना भरोसा करेगी, यह तो अंदाजा ही लगाया जा सकता है। यह बात ठीक है कि पोस्टर कांग्रेस के अधिकृत हैंडल से पोस्ट नहीं हुआ, लेकिन कई कांग्रेसी नेताओं ने उसे आगे बढ़ाया है। जनता के मन में यह बात भी बैठी हुई है कि सत्ता से बाहर रहने के कारण कांग्रेस की हताशा बढ़ती ही जा रही है। इसलिए उसके नेता अपने प्रतिद्वंद्वी नेताओं के विरुद्ध किसी भी हद तक जाकर बयानबाजी कर सकते हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों ने जब कांग्रेस की नीतियों से परेशान होकर पार्टी छोड़ी थी, तब उनके विरुद्ध किस तरह का नकारात्मक अभियान चलाया गया, अभी उसको भला कौन भूला होगा। इसी प्रकार की कामनाएं उस समय सिंधिया और उनके सहयोगी नेताओं के बारे में की गई थीं। बहरहाल, यह बात सत्य है कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस और सत्ता के बीच मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अकाट्य चट्टान की तरह खड़े हैं। एक साधारण पृष्ठभूमि एवं कृषक परिवार से आनेवाले पिछड़ा वर्ग के शिवराज सिंह चौहान ने मध्यप्रदेश की राजनीति का व्याकरण ही बदल दिया है। उन्होंने मध्यप्रदेश की सरकार को गरीब और अंत्योदय से जोड़ दिया है। मध्यप्रदेश को उन्होंने ‘बीमारू राज्य’ की छवि से बाहर निकालकर ‘समृद्ध प्रदेश’ तक पहुँचाया है। बहरहाल, राजनीतिक दलों को समझना होगा कि इस प्रकार की भाषा-शैली से जनता के दिल में जगह नहीं बनायी जा सकती। इस प्रकार की राजनीति समाज में भी दुष्प्रभाव छोड़ती है। इसलिए सभी राजनीतिक दलों को चुनाव प्रचार के दौरान नीतियों पर बात करनी चाहिए।
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