शांति की स्थापना और विकास के लिए सभी प्रकार के उग्रवाद को समाप्त करना आवश्यक है। केंद्र सरकार ने बाहर से होनेवाले आतंकी हमलों के साथ छत्तीसगढ़ और आसपास के क्षेत्र में फैले कम्युनिस्ट हिंसा पर भी नकेल कसने का लक्ष्य लिया है। जिसमें मोदी सरकार बहुत हद तक सफल रही है। उल्लेखनीय है कि गृहमंत्री अमित शाह अनेक अवसरों पर कम्युनिस्ट नक्सल एवं माओवाद को समाप्त करने का इरादे जाहिर कर चुके हैं। इसी क्रम में पिछले कुछ दिनों में नक्सल और माओवाद की कमर तोड़ने में मोदी सरकार को उल्लेखनीय सफलता मिली है। छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में बीते मंगलवार को माओवादियों से हुई मुठभेड़ में सुरक्षा बलों को मिली सफलता सामान्य नहीं है। मारे जाने वाले माओवादियों की बड़ी संख्या इसका सिर्फ एक पहलू है। जिस तरह से सुरक्षा बलों ने माओवादियों की उपस्थिति की सूचना प्राप्त की, अलग-अलग सूत्रों से उसकी पुष्टि कराई और जिस तरह से ऑपरेशन की योजना तैयार कर कुशलता से उसे लक्ष्य तक पहुंचाया, यह महत्वपूर्ण है। केंद्र से लेकर राज्य और जिला स्तर तक जिस तालमेल के साथ सुरक्षा बलों को सभी आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराई गईं- वह सब गौर करने लायक हैं। स्थानीय प्रशासन ने इस बात की पुष्टि की है कि बस्तर संभाग में यह माओवादियों के खिलाफ अब तक का सबसे बड़ा अभियान है। इस पूरे क्षेत्र के नजरिए से देखा जाए तो भी यह हाल के वर्षों के बड़े अभियानों में आता है। लेकिन इसका महत्व इस मामले में भी है कि कई ऐसे नाम एक साथ पुलिस कार्रवाई की जद में आ गए जो इस क्षेत्र में माओवादी अभियानों की अगुआई करने के लिए जाने जाते रहे थे। इस दृष्टि से यह सुरक्षा बलों की ओर से इस क्षेत्र में वामपंथी अतिवाद को दिया गया एक जोरदार झटका है। स्मरण रहे कि इस उपलब्धि को प्रशासन की तात्कालिक तैयारियों का ही परिणाम नहीं माना जा सकता। इसके पीछे कई वर्षों से किए जा रहे प्रयासों की भी भूमिका है। इस बीच न केवल माओवाद प्रभावित कई दुर्गम इलाकों को सड़कों से जोड़ने का काम किया गया है बल्कि खास तौर पर पिछले पांच-सात वर्षों में सुदूर इलाकों में पुलिस शिविर लगाए गए हैं। यह महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ है। इससे सुरक्षा बलों की टुकड़ियों को मौके पर पहुंचने के लिए ज्यादा दूरी नहीं तय करनी पड़ती। वे जल्दी पहुंच जाती हैं और माओवादियों को तैयारी करने का अधिक समय नहीं मिलता। इस संदर्भ में ध्यान देने वाली बात यह भी है कि पिछले कुछ समय से सुरक्षा बलों का रुख पहले के मुकाबले ज्यादा आक्रामक हुआ है। यह सुरक्षा बलों से मुठभेड़ में मारे जाने वाले माओवादियों की संख्या से भी स्पष्ट होता है। साल 2024 के इन साढ़े तीन महीनों में ही छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों के हाथों 79 माओवादी मारे जा चुके हैं जबकि 2023 में पूरे साल के दौरान यह संख्या महज 22 थी। पहले भी माओवादियों के खिलाफ बड़े अभियान हुए हैं। लेकिन एक बड़ा फर्क यह दिखता है कि माओवादियों की तरफ से वैसी जवाबी कार्रवाई नहीं हो रही जैसी पहले हुआ करती थी। इसे इस बात का संकेत माना जा रहा है कि माओवादियों की कमर टूट चुकी है। अगर यह सच है तो भी यह सुनिश्चित करना होगा कि यह दोबारा मजबूती न हासिल कर ले। और, इसके लिए सुरक्षा बलों की कार्रवाई काफी नहीं है। इसके साथ-साथ सरकार की कल्याणकारी योजनाओं की पहुंच भी बढ़ानी होगी। यह भी स्वीकार करना होगा कि एक समय में सरकार के भीतर भी नक्सलियों और माओवादियों के प्रति सहानुभूति रखनेवाले उनके मददगार शामिल रहते थे। अभी देश में जो सरकार है, उसका दृष्टिकोण स्पष्ट है कि देश के कानून और संविधान से ऊपर कोई नहीं हो सकता। देश एवं समाज को नुकसान पहुंचाने वाली ताकतों के प्रति सहानभूति रखना कतई उचित नहीं है।
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