यह बात सभी जानते हैं कि नेताओं को बहुत सोच-समझकर बोलना चाहिए। इसके बावजूद कई बार नेता ऐसे बयान दे जाते हैं, जिनसे न केवल उनकी छवि को नुकसान होता है अपितु उनकी पार्टी भी कठघरे में खड़ी होते हैं। पाकिस्तान से संबंधित बयान देकर कांग्रेस के नेता अकसर अपनी पार्टी की किरकिरी कराते हैं परंतु इस बार तो कांग्रेस के मुख्य नेता राहुल गांधी ने ही पार्टी के सामने संकट खड़ा कर दिया है। अपनी भारत जोड़ो न्याय यात्रा में राहुल गांधी ने ‘बेरोजगारी दर’ के मामले में भारत की तुलना पाकिस्तान से करके भारत को पाकिस्तान से कमतर दिखाने का प्रयास किया। भारत को पाकिस्तान से कमतर दिखाना, यह कोई अपरिपक्व नेता ही कर सकता है। भारत का कौन नागरिक राहुल गांधी की इस बात को स्वीकार करेगा कि रोजगार के मामले में भारत से बेहतर स्थिति पाकिस्तान की है। जिस देश के नागरिक और नेता स्वयं ही स्वीकार कर रहे हों कि भारत में नागरिक जीवन एवं अवसर बेहतर हैं, उस देश के बारे में यह तथ्य बेमानी ही है कि वहां भारत के मुकाबले रोजगार ज्यादा हैं। यह भी प्रश्न है कि पाकिस्तान में किस प्रकार और स्तर के काम को लोगों ने रोजगार के रूप में शामिल किया है? संभव है कि पाकिस्तान के नागरिकों के लिए रोजगार की परिभाषा और मायने अलग हों। पाकिस्तान की दुर्दशा किससे छिपी है? जिस देश के नागरिक आटे-दाल के लिए परेशान हों, उसके लिए यह कहना कि वहां भारत से अधिक रोजगार हैं, हास्यास्पद ही है। ईमानदार तथ्य तो यह है कि पाकिस्तान किसी भी मामले में भारत के सामने नहीं टिकता है। माना कि राहुल गांधी ने किसी वैश्विक संस्था के आंकड़े के आधार पर भारत को पाकिस्तान से कमतर बताया है, लेकिन यह भी तो सत्य है कि वैश्विक संस्थाओं के शोध के पैमानों में भारी विसंगति रहती है। पूर्व में भारत को कुपोषण के मामले में भी पाकिस्तान और श्रीलंका से पीछे दिखाया गया, जबकि वहाँ के नागरिक किस प्रकार की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, इसके समाचार कई बार हमारे सामने आते रहते हैं। यही विडम्बना मीडिया की स्वतंत्रता संबंधी सूचकांक में दिखायी देती है। भारत को उन देशों से भी पीछे दिखाया जाता है, जहाँ मीडिया सरकार के इशारे पर कार्य करता है। जिस देश में मीडिया का पूरी तरह सरकारीकरण हो, उससे पीछे हम कैसे हो सकते हैं? बहरहाल, लोकसभा चुनाव से ठीक पहले राहुल गांधी ने अपनी टिप्पणी से कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। भाजपा ने राहुल गांधी की टिप्पणी पर आक्रामक पलटवार किया है। भाजपा की ओर से राहुल गांधी को ‘अपरिपक्व राजनेता’ कहा जा रहा है। बहुत हद तक यह बात सही भी है क्योंकि कोई भी परिपक्व नेता अपने देश को कम से कम पाकिस्तान से कमतर बताने की गलती तो नहीं करता। भले ही किसी भी अंतरराष्ट्रीय संस्था का डेटा कुछ भी कहता हो। भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान इससे भी पूर्व राहुल गांधी अपने वक्तव्यों के लिए विवादों में आ चुके हैं। वाराणसी के युवाओं पर ‘शराबी’ संबंधी टिप्पणी और पत्रकार से उसकी जाति पूछना इत्यादि ऐसे अनेक अवसर हुए हैं, जब राहुल गांधी ने कांग्रेस की खूब किरकिरी करायी है। वैसे तो किसी भी नेता को सदैव ही बहुत संभलकर अपने विचार प्रकट करने चाहिए लेकिन कम से कम चुनावी वातावरण में तो कुछ भी बोलने से पहले बहुत विचार करना चाहिए।
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