ऐसा प्रतीत होता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर नकारात्मक टिप्पणियां करना कांग्रेस की नीति बन गई है। प्रधानमंत्री मोदी के लिए शीर्ष नेतृत्व से लेकर राज्यों के नेता एवं छुटभैये कार्यकर्ताओं की भाषा-बोली एकजैसी दिखायी पड़ती है। ऐसा हो भी क्यों नहीं, राजनीति में कार्यकर्ता अपने नेतृत्व का ही अनुसरण करते हैं। एक ओर कांग्रेस के मुख्य नेता राहुल गांधी विदेश में जाकर प्रधानमंत्री मोदी का उपहास उड़ा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर भारत में भी अलग-अलग जगहों पर कांग्रेसी नेताओं द्वारा यह किया जा रहा है। विगत दिन पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस विधायक कांतिलाल भूरिया ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तुलना तानाशाह हिटलर और सद्दाम हुसैन से कर दी। विधानसभा चुनाव निकट आने के साथ ही प्रधानमंत्री मोदी के प्रति यह छींटाकसी बढ़ने की पूरी आशंका है। विचारों में यह कर्कशता रुकने का सवाल इसलिए नहीं है क्योंकि आलाकमान को यही पसंद है। परंतु कांग्रेसी नेताओं को यह समझना चाहिए कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को देश की जनता बहुत आदर के साथ देखती है और वह पिछड़ा वर्ग से भी आते हैं। ऐसे में उनके विरुद्ध नकारात्मक टीका-टिप्पणी आलाकमान को तो खुश कर सकती हैं, परंतु कहीं जनता के मन में आक्रोश पैदा न हो जाए। कांग्रेस ने एक और आरोप लगाना शुरू किया है कि भाजपा सरकार लोकतंत्र को खत्म करने में लगी है। आज देश में लोकतंत्र नहीं है। सभी संवैधानिक व्यवस्थाओं पर भाजपा का कब्जा हो गया है। इन बेबुनियाद आरोपों से भी कांग्रेस की जगहंसाई हो रही है। यदि इन आरोपों में जरा भी सच्चाई होती तब कांग्रेस हिमाचल और कर्नाटक के चुनाव नहीं जीत पाती। भाजपा के शासन में लोकतंत्र की स्थिति यह है कि यहाँ हर कोई अपनी बात कहने में स्वतंत्र है। यहाँ तक कि लंबे प्रदर्शन करने से भी लोगों/समूहों को रोका नहीं जा रहा। लोकतंत्र को खत्म करना क्या कहते हैं, यह कांग्रेस के नेता भली प्रकार जानते हैं। चुनी हुई सरकारों को भंग करने से लेकर मौलिक अधिकारों को छीनने तक का काम कांग्रेस की सरकारों ने किया है। अभी भी जहाँ कांग्रेस की सरकारें हैं, वहाँ लक्षित करके कार्यवाहियां की जा रही हैं। कर्नाटक में तो मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की आलोचना करने मात्र पर ही एक शिक्षक को निलंबित कर दिया गया। राजनीतिक गलियारों में यह भी सुगबुगाहट सुनायी दे रही है कि कर्नाटक की कांग्रेस सरकार उन सभी कर्मचारियों को लक्षित करेगी, जिनका झुकाव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे राष्ट्रीय विचार के समाजसेवी संगठन के प्रति है। क्या यह सब लोकतांत्रित तौर-तरीके हैं? इसलिए लोकतंत्र को खत्म किया जा रहा है या संभाला जा रहा है, इस पर कम से कम कांग्रेस के नेताओं को तो उपदेश नहीं ही देना चाहिए। बहरहाल, भारत की राजनीति में संवाद की समृद्ध परंपरा है। यहाँ विभिन्न विचारधाराओं के नेता एक-दूसरे का सम्मान करते रहे हैं। एक-दूसरे के प्रति आदर का भाव व्यक्त करते रहे हैं। संवाद में मर्यादा को बनाए रखा गया है। भारत की यह परंपरा समृद्ध होनी चाहिए। इसलिए एक-दूसरे के प्रति राजनैतिक आक्रमण करते समय सभी दलों के राजनेताओं को भारत की संवाद परंपरा का ध्यान रखना चाहिए। प्रतिद्वंद्वी नेता के प्रति अपशब्दों या अमर्यादित तुलनाओं से समाज की सहानुभूति नहीं मिलती अपितु समाज में नकारात्मक छवि बनती है।
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