भ्रष्टाचार के विरुद्ध प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार की तीव्र कार्रवाइयों से विपक्षी राजनीतिक दल हलाकान हैं। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के नेता तो लगभग बौखलाए हुए हैं। भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्रवाइयों को वे न केवल राजनीतिक रंग देने का प्रयास कर रहे हैं अपितु भ्रष्टाचार के विरुद्ध खुलकर काम कर रही एजेंसियों को भी निशाना बना रहे हैं। इसी संदर्भ में 14 विपक्षी दलों ने सरकार पर केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग के आरोप लगाते हुए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की। हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाइयों पर रोक लगाने की जगह विपक्षी दलों की इस व्यर्थ की याचिका को ही सुनवाई के योग्य नहीं माना। एक तरह से न्यायालय ने विपक्षी दलों के आरोपों को सिरे से नकारकर उन्हें आईना दिखाया है। उल्लेखनीय है कि ऐसा संभवत: पहली बार हुआ होगा जब भ्रष्टाचार के विरुद्ध चल रही कार्रवाइयों को बाधित करने के लिए एक या दो नहीं अपितु 14 राजनीतिक दल केंद्र सरकार पर केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए सर्वोच्च न्यायालय तक चले गए। इससे साफ होता है कि विपक्षी दलों को यह समझ आ गया है कि भ्रष्टाचार को रोकने के लिए केंद्र सरकार बड़े पैमाने पर अभियान चला रही है और यदि सरकार को रोका नहीं गया तब उनकी स्थिति बदतर हो जाएगी। विपक्ष के आरोपों के संदर्भ में एक तथ्य अवश्य स्मरण रखना चाहिए कि केंद्रीय एजेंसिंया केवल विपक्षी दलों के नेताओं के विरुद्ध ही कार्यवाही नहीं कर रही हैं अपितु भाजपा और उसके सहयोगी भी उनकी कार्रवाइयों के दायरे में आए हैं। पिछले कुछ महीनों में भ्रष्टाचारी अधिकारियों एवं कर्मचारियों पर भी बड़ी संख्या में कार्रवाइयां हुई हैं। यह तथ्य विपक्षी दल भी जानते हैं लेकिन सच बताते नहीं हैं। कहना होगा कि विपक्षी दल भ्रष्टाचार पर हो रही कार्रवाई को रोकना भी चाहते हैं और भ्रष्टाचार के समर्थक भी नहीं दिखना चाहते। यह अंतर्विरोध उनकी याचिका में भी दिखायी देता है, जिसकी ओर न्यायालय ने भी संकेत किया है- “आप केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगा रहे हैं। साथ ही, यह भी कहते हैं कि नेताओं के लिए कोई विशेष सुविधा नहीं चाहते क्योंकि वे भी सामान्य नागरिक हैं। फिर आप ही बताइए कि न्यायालय केंद्रीय एजेंसियों को यह निर्देश कैसे दे सकती है कि नेताओं के मामलों में गिरफ्तारी से पहले खास प्रक्रिया अपनाए?” सर्वोच्च न्यायालय की बात सही है कि कानून हर नागरिक के लिए समान है। ऐसे में कोई भी ऐसी माँग कानून की कसौटी पर खरी नहीं उतर सकती, जिसमें किसी भी बहाने से खास लोगों के लिए विशेष व्यवहार की बात कही जाए। भारत का संविधान किसी के साथ अंतर करने की बात नहीं कहता है। प्रतीक के तौर पर हमने कानून की जो मूर्ति बनायी है, उसकी आँखों पर पट्टी इसलिए ही बांधी गई है ताकि यह संदेश जाए कि कानून चेहरा और हैसियत देखकर व्यवहार नहीं करता है, वह सबके लिए समान है। बहरहाल, विपक्षी दलों को यह भी समझना चाहिए कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध चल रही कार्रवाइयों पर आम जनता भी उनके तथाकथित तथ्यों एवं आरोपों को स्वीकार नहीं करेगी। देश के लगभग सभी नागरिक चाहते हैं कि भ्रष्टाचार पर कड़ी कार्रवाई हो और उसे समाप्त किया जाए।
35