लोकसभा चुनाव के सातवें एवं अंतिम चरण से ठीक पहले पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने पत्र लिखकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को घेरने का प्रयास किया है और कांग्रेस के पक्ष में मतदान करने का आह्वान किया है। अंतिम चरण में पंजाब की सभी 13 सीटों पर मतदान होना है। ऐसे में भाजपा का आरोप उचित ही जान पड़ता है कि कांग्रेस ने पंजाब के चुनाव को ध्यान में रखकर पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से पत्र लिखवाया है। यानी एक तरह से कांग्रेस ने उनका राजनीतिक उपयोग किया है। हालांकि यह किसी भी राजनीतिक दल की रणनीति होती है कि उसे किस नेता से कहाँ और कैसे प्रचार कराना है। परंतु कांग्रेस का पाखंड देखिए कि उसकी ओर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के स्वामी विवेकानंद शिला स्मारक में ध्यान करने का विरोध किया जा रहा है और वहीं पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन से चिट्ठी लिखवायी जा रही है। क्या मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए चिट्ठी लिखवाकर कांग्रेस के पक्ष में मतदान करने का आह्वान करना राजनीति नहीं है? बहरहाल, पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. सिंह के पत्र के बिन्दुओं को पढ़कर यही कहा जा सकता है कि कांग्रेस की स्थिति ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’ की है। पूर्व प्रधानमंत्री ने वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी पर ‘हेट स्पीच’ का आरोप लगाया है। उन्होंने पत्र में दावा किया है कि उन्होंने अपने जीवन में कभी भी एक समुदाय को दूसरे समुदाय से अलग नहीं किया। वह एकमात्र कॉपीराइट भाजपा का है। जबकि वास्तविकता यही है कि मनमोहन सिंह की सरकार के समय में तुष्टीकरण चरम पर था। उनका वह भाषण आज भी चर्चाओं में रहता है, जिसमें उन्होंने देश के संसाधनों पर पहला अधिकार मुसलमानों का बताया था। इस चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस की हिन्दू-मुस्लिम करने की मानसिकता की कलई खोलने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के इसी भाषण का जिक्र किया था। संभ्रांत मुस्लिमों को अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल करने और उनको आरक्षण का लाभ लेने की नीति पर भी मनमोहन सिंह के कार्यकाल में पहलकदमी हुई। सांप्रदायिक दंगों का सारा दोष हिन्दुओं के माथे पर मढ़ने के उद्देश्य से लाया गया ‘लक्षित हिंसा निरोधक कानून’ के मसौदे को कौन भूल सकता है? यदि उसके विरुद्ध जनांदोलन खड़ा नहीं होता, तब प्रत्येक दंगे के बाद हिन्दू समाज ही पुलिस की कार्रवाई का शिकार होता। पूर्व प्रधानमंत्री ने अर्थव्यवस्था पर भी प्रश्न उठाए हैं। देश की जनता को भली प्रकार याद है कि उनका कार्यकाल आर्थिक भ्रष्टाचार और बड़े-बड़े घोटालों के लिए कुख्यात हो गया था। जबकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के समय में एक भी बड़ा घोटाला सामने नहीं आया है। अपितु घोटालेबाज नेताओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई हो रही है। सरकार इतनी अधिक सजग है कि भ्रष्ट नेताओं के घरों से नोटों के पहाड़ बरामद किए जा रहे हैं। कोविड-19 जैसी महामारी झेलने के बाद भी भारत की अर्थव्यवस्था बेहतर प्रदर्शन कर रही है, तो इसका श्रेय मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों को ही जाता है। वैश्विक संस्थाएं भी भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर आशान्वित हैं। जबकि मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भारत की अर्थव्यवस्था बहुत पीछे थी। यहाँ तक कि भारत को अपना सोना गिरवी रखना पड़ा था। अपने तीन पृष्ठ के पत्र में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने किसान आंदोलन समेत बड़ी घटनाओं का जिक्र किया। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार ने पंजाब, पंजाबियों और पंजाबियत को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जबकि वास्तविकता यह है कि प्रधानमंत्री मोदी ने पंजाब, पंजाबियों एवं पंजाबियत के साथ ही सभी वर्गों की प्रतिष्ठा को सर्वोपरि रखा है। पंजाब के विकास में सरकार ने सदैव सहयोग दिया। जलियांवाला बाग जैसे स्मारकों का विकास कराया है। श्री गुरु गोबिंद सिंह के साहिबजादे जोरावर सिंह, फतेह सिंह, बाबा अजीत सिंह और बाबा जुझार सिंह की स्मृति में राष्ट्रीय स्तर पर वीर बालक दिवस मनाना प्रारंभ कराया है। और भी उदाहरण एवं प्रसंग है, जो डॉ. मनमोहन सिंह के आरोपों को क्षुद्र राजनीति से प्रेरित सिद्ध करते हैं। माना कि राजनीति में प्रतिद्वंद्वी को घेरना होता है, लेकिन कोई भी आरोप लगाने से पहले कम से कम अपने मन में तो झांक लेना चाहिए। देश की जनता को सब पता है। इसलिए इस प्रकार के आरोपों एवं बयानों को जनता ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’ की श्रेणी में ही रखती आई है।
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