आम आदमी पार्टी के सर्वेसर्वा एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को यदि लगता है कि उन पर लगे आरोप मिथ्या हैं, तब भी उन्हें जेल से सरकार चलाने का नैतिक अधिकार नहीं है। भारतीय राजनीति में अनेक ऐसे उदाहरण हैं, जो राजनीतिक शुचिता का आदर्श प्रस्तुत करते हैं। भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख नेता लालकृष्ण आडवाणी ने हवाला कांड में नाम आने पर उस समय सक्रिय राजनीति से दूरी बनायी, जब भाजपा के विस्तार की कमान उनके हाथों में थी। उन्होंने न केवल लोकसभा की सदस्यता से त्यागपत्र दिया अपितु यह घोषणा भी कि जब तक वे स्वयं को निर्दोष साबित नहीं कर देंगे तब तक सदन में कदम नहीं रखेंगे। अपने संकल्प को पूरा करने के लिए उन्होंने 1996 का चुनाव भी नहीं लड़ा। वहीं अरविंद केजरीवाल हैं, जो नैतिकता और राजनीतिक शुचिता की बातें करके सत्ता में आए लेकिन जब नैतिकता प्रकट करने का अवसर आया है तब कुर्सी से चिपक कर बैठ गए हैं। उन्हें अपनी गिरफ्तारी से पूर्व ही मुख्यमंत्री के पद से त्यागपत्र दे देना चाहिए था। लेकिन उन्होंने तो सब प्रकार की नैतिकताओं को लांघते हुए जेल से ही सरकार चलाने का निर्णय कर लिया। कैसी विडम्बना है कि जेल के बाहर मंत्री अपने कामकाज की चिंता नहीं कर पा रहे, उनके कार्यक्षेत्र के संबंध में जेल में बैठे मुख्यमंत्री केजरीवाल आदेश जारी कर रहे हैं। दरअसल, अरविंद केजरीवाल को यह डर भी है कि किसी और को मुख्यमंत्री बनाने से कुर्सी सदैव के लिए उनके हाथ से न चली जाए। यही कारण है कि उनके जाने के बाद पार्टी का चेहरा बनकर उनकी पत्नी उभरी हैं, जबकि पार्टी में उनकी सक्रियता इससे पूर्व शून्य थी। ध्यान दीजिए जैसे ही मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को प्रवर्तन निदेशालय ने गिरफ्तार किया है, उसके बाद से उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल ने मोर्चा संभाला लिया है। वे उसी कुर्सी पर बैठकर अरविंद केजरीवाल के समर्थन में माहौल बनाने की कोशिश कर रही हैं, जिस पर मुख्यमंत्री बैठते हैं। एक तरह से वह यह भी संदेश देने की कोशिश कर रही हैं कि अरविंद केजरीवाल की कुर्सी पर उनका ही दावा है। यह घोर अनैनिक है कि कोई और मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे। सुनीता केजरीवाल की सक्रियता को देखकर आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल के प्रति सहानुभूति रखनेवाले लोग भी सवाल उठा रहे हैं। राजनीति में रुचि रखनेवाले लोगों ने पूछना शुरू कर दिया है कि क्या सुनीता केजरीवाल भी अपने पति की राह पर चल निकली हैं? क्या अरविंद केजरीवाल के जेल जाने के बाद पार्टी को संभालने वाला कोई नेता नहीं है, जो पत्नी ने मोर्चा संभाल लिया है? क्या अरविंद केजरीवाल के बाद उनकी पत्नी ही दिल्ली की मुख्यमंत्री बनेंगी? साफ दिख रहा है कि आम आदमी पार्टी में अरविंद केजरीवाल का वर्चस्व है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह राजनीतिक दल भी अन्य क्षेत्रीय दलों की भाँति परिवारवाद की चपेट में आ गया है। बहरहाल, यह देखना होगा कि जिस तरह न्यायालय के दखल के बाद मुख्यमंत्री केजरीवाल की गिरफ्तारी हुई है, क्या उसी तरह मुख्यमंत्री पद भी वे तभी छोड़ेंगे, जब न्यायालय कहेगा। फिलहाल तो न्यायालय ने इस मामले में दखल देने से इनकार कर दिया है लेकिन उनकी गिरफ्तारी एवं रिमांड में कोई राहत नहीं दी है। लगता है कि उन्हें भी शराब घोटाले में शिक्षा मंत्री मनीष सिसौदिया की तरह लंबा समय जेल में बिताना पड़ेगा। अच्छा होगा कि मुख्यमंत्री केजरीवाल नैतिकता दिखाते हुए अपना त्याग-पत्र दे दें।
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