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भारत-नेपाल के संबंधों में लौटी आत्मीयता

भारत और नेपाल के आपसी संबंधों की जड़ें बहुत गहरी हैं। दोनों देशों के बीच सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक संबंधों की पुरानी और समृद्ध परंपरा रही है। इनके बीच पांच राज्यों- सिक्किम, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड- से लगती 1850 किलोमीटर लंबी सीमा है। सीमा के आर पार रोटी-बेटी का रिश्ता सदियों से बना हुआ है। हम कह सकते हैं कि दोनों एक ही संस्कृति के सूत्र से जुड़े हुए हैं। इसलिए भारत विरोध ताकतें चाहकर भी दोनों देशों के बीच लंबे समय तक कड़वाहट नहीं घोल सकतीं। पिछले दिनों नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहाल ‘प्रचंड’ की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के संबंधों के बीच की गर्माहट और आत्मीयता सबने अनुभव की। नि:संदेह, नेपाल के प्रधानमंत्री प्रचंड और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुलाकात द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूती देने की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण रहेगी। दोनों नेताओं के बीच ऊर्जा, संपर्क और व्यापार के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने को लेकर विस्तृत बातचीत हुई और कई क्षेत्रों में सहयोग की संभावनाओं को रेखांकित किया गया। इस बातचीत के दौरान एक विशेष और आवश्यक बात यह उभर कर आई कि दोनों देशों के संबंधों में पिछले कुछ समय से गर्मजोशी की जो कमी दिख रही थी, वह दूर हुई है। उल्लेखनीय है कि वर्षों के आत्मीय संबंधों के बाद भी भारत विरोध ताकतों के कुछ सामूहिक प्रयासों के कारण दोनों देशों के रिश्तों में असाधारण गिरावट देखी गई थी। जहां नेपाल में ऐसा वातावरण बना कि भारत उस पर हावी होना चाहता है और उसके क्षेत्रों को हड़पना चाहता है, वहीं भारत में यह धारणा मजबूत हुई कि नेपाल के कुछ नेता चीन के इशारे पर भारत के लिए परेशानी खड़े करने वाली नीति अपनाने पर तुले हुए हैं। इन कच्ची-पक्की अवधारणाओं के कारण दोनों देशों के संबंधों पर नकारात्मक बादल छा गए थे। परंतु अब यह बादल छंट गए हैं। अच्छा है कि वह दौर बीता और अनावश्यक टकराव के बजाय आपसी सौहार्द और सहयोग के जरिए विकास की गति तेज करने की इच्छा नीति निर्माण के केंद्र में आई। पिछले साल दिसंबर में पद ग्रहण करने के बाद से ही प्रचंड इस बात को लेकर सतर्क दिखे कि उनके किसी कदम से भारत में गलतफहमी न बने। संभवत: इसीलिए यहां आने से पहले उन्होंने चीन के ‘बोआओ फोरम फॉर एशिया’ का निमंत्रण ठुकरा दिया। भारत के लिए नेपाल की अहमियत द्विपक्षीय रिश्तों के संदर्भ में तो है ही, पूरे दक्षिण एशियाई क्षेत्र में शांति और सहयोग का माहौल बनाए रखने के लिहाज से भी है। प्रचंड की इस यात्रा में यह बात रेखांकित हुई कि परस्पर सहयोग, सम्मान और विश्वास का रिश्ता न केवल इन दोनों देशों के लिए बल्कि इस पूरे क्षेत्र में शांति और समृद्धि सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है। उदाहरण के लिए, बिजली को ही लें तो भारत तो नेपाल से बिजली खरीद ही रहा है, नेपाल भारत के रास्ते बांग्लादेश को भी बिजली की सप्लाई करना चाहता है। बांग्लादेश की भी दिलचस्पी इस परियोजना में है। यह परियोजना आगे बढ़ती है तो तीनों देश लाभान्वित होंगे। ऐसे अन्य मामले भी हैं। दोनों देशों को आपसी सहयोग और सामंजस्य बढ़ाने की नीति अपनाकर ही आगे बढ़ना चाहिए। विश्वास है कि दोनों देश आपसी समझदारी से अपने पारंपरिक रिश्तों को ‘हिमालय सी ऊंचाई’ देने में सफल होंगे।

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