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नागरिकता संशोधन कानून पर भारत का स्पष्ट जवाब

पड़ोसी देशों से प्रताड़ित होकर भारत में शरण लिए हिन्दू, सिख, जैन, बौद्ध और ईसाई समुदाय के बंधुओं को नागरिकता देने के लिए नागरिकता संशोधन कानून जैसा मानवीय कदम मोदी सरकार ने उठाया है। भारत विरोधी ताकतों द्वारा मानवता की रक्षा करनेवाले इस कानून को लेकर भारत में ही भ्रम फैलाने की साजिशें नहीं हो रही हैं अपितु अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी वितंडावाद खड़ा करने के प्रयास हो रहे हैं। परंतु, अच्छी बात यह है कि भारत की सरकार मुखर होकर सबको जवाब दे रही है, जिसके कारण भारत विरोधी ताकतों के नैरेटिव टिक नहीं पा रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह देखना महत्वपूर्ण है कि अपने आपको महाशक्ति समझने वाले कुछ देश आदतन आदर्शों एवं सिद्धांतों की आड़ में दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में बेमतलब टिप्पणी कर दबाव बनाने की कोशिश करते रहते हैं। नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) पर अमेरिका का आपत्तिजनक बयान ऐसा ही एक प्रयास है। भारत में अमेरिका के राजदूत एरिक गार्सेटी ने कहा है कि सीएए को लेकर अमेरिका चिंतित है और इसके लागू होने की प्रक्रिया पर उसकी नजर है। उन्होंने यह भी जताने की कोशिश की है कि यह कानून सिद्धांतों से भटकाव है। इस निरर्थक टिप्पणी पर विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने उचित ही कड़ी आपत्ति दर्ज करायी है और कहा है कि हमारे भी सिद्धांत हैं, जिनमें से एक सिद्धांत है विभाजन में पीछे छूट गये लोगों के प्रति दायित्व। अमेरिका के साथ-साथ कुछ अन्य देशों के ऐसे बयानों का जवाब देते हुए भारत के विदेश मंत्री ने उन्हें याद दिलाया है कि भारत का त्रासद विभाजन हुआ था और उसके परिणामस्वरूप कई समस्याएं पैदा हुईं। नागरिकता संशोधन कानून ऐसी ही कुछ समस्याओं के समाधान का प्रयास है। विभाजन के समय भारत के नेताओं ने नये बने पाकिस्तान के अल्पसंख्यक समुदायों से यह वादा किया था कि अगर उन्हें कोई परेशानी होती है, तो भारत उनका स्वागत करेगा। लेकिन इस वादे पर अमल की कोई कोशिश नहीं हुई, जबकि पाकिस्तान और उससे टूटकर बाद में बने बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के साथ दुर्व्यवहार, उनके दमन और उत्पीड़न का अंतहीन सिलसिला रहा। अफगानिस्तान में भी यही स्थिति रही। वहाँ अल्पसंख्यक किन परिस्थितियों में रह रहे हैं, इसकी पड़ताल अमेरिका के मानवाधिकार आयोग को करनी चाहिए और उन देशों पर दबाव बनाना चाहिए जो धर्म के आधार पर गैर-इस्लामिक समुदायों का शोषण कर रहे हैं या होने दे रहे हैं। अत्याचार इस हद तक है कि गैर-मुस्लिमों को पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से अपनी जमीन-जायदाद छोड़कर भागना पड़ रहा है। ऐसे लोगों को स्वाभिमान से जीने का अधिकार है या नहीं? अमेरिका जैसे देश या अंतरराष्ट्रीय संगठनों को इनके मानवाधिकों एवं संवैधानिक अधिकारों की चिंता करनी चाहिए या नहीं? नागरिकता संशोधन कानून में यह प्रावधान किया गया है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से शरणार्थी के रूप में 31 अगस्त 2014 तक भारत आये लोगों को नागरिकता देने की प्रक्रिया को गति दी जायेगी। इसमें कहीं भी यह नहीं लिखा गया है कि इन देशों या दुनिया के दूसरे हिस्सों से आये लोगों द्वारा नागरिकता हासिल करने के आवेदन पर विचार नहीं होगा। इस कानून में या किसी अन्य नियमन में किसी व्यक्ति, चाहे वह किसी भी धार्मिक समुदाय का हो, की नागरिकता समाप्त करने का भी कोई नियम नहीं बनाया गया है। विदेश मंत्री जयशंकर ने उचित ही रेखांकित किया है कि अमेरिका समेत अनेक पश्चिमी देशों में विश्व युद्ध के बाद नागरिकता देने की प्रक्रिया की गति तेज की गयी थी। उन्होंने कहा कि इस तरह की कोशिशों से जो लोग वंचित रह गये, उनके प्रति भारत का एक नैतिक दायित्व है। वैश्विक मंचों पर भारत जिस बेबाकी से अपना पक्ष रख रहा है, यह उसकी पहचान बन गई है।

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