कतर की जेल से आठ पूर्व भारतीय नौसैनिकों की रिहाई को भारत की बड़ी कूटनीतिक विजय के तौर पर देखा जाना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने वैश्विक प्रभाव एवं संबंधों का उपयोग करते हुए भारतीय नागरिकों की रिहाई के लिए कतर अमीर को सहमत किया। इन भारतीय नागरिकों को कथित तौर पर जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किया गया था, जिन्हें कतर की अदालत ने मृत्युदंड की सजा सुना दी थी। उस समय भारत में ही मोदी विरोधी गिरोह ने अतिउत्साहित होकर इसे भारत की कूटनीतिक हार बताया और भारत की विदेश नीति पर सवाल उठाए। यहाँ तक कहा गया कि भारतीय नागरिकों को मुक्त कराने में प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार असफल रहेगी। दरअसल, उनका यह विचार तार्किक सोच पर आधारित नहीं था अपितु इसके पीछे मोदी विरोध की पराकाष्ठा थी, जो एक तरह से भारत विरोध का स्वर था। मोदी विरोधी इस समूह की इच्छा तो यही थी कि इस प्रकरण में भारत की कूटनीतिक हार हो जाए, ताकि इस मुद्दे के आधार पर प्रधानमंत्री मोदी की छवि को कमतर किया जा सके। परंतु, भारत ने पिछले कुछ वर्षों में अपनी जो वैश्विक छवि बनायी है, प्रधानमंत्री मोदी ने दूसरे देश के राजनेताओं से जिस प्रकार के आत्मीय संबंध बनाए हैं, उनका लाभ अकसर भारत को मिलता है। इस प्रकरण में भी प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार की सक्रियता ने सबसे पहले तो आठों भारतीय नागरिकों की मौत की सजा को कारावास में परिवर्तित कराया और बाद में उनकी रिहाई के लिए प्रयास प्रारंभ किए। स्मरण रखें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुबई में कॉप-28 शिखर सम्मेलन के अवसर पर कतर के अमीर शेख तमीम बिन हमद अल-थानी से मुलाकात की थी। इस भेंट में उन्होंने द्विपक्षीय साझेदारी और कतर में रहने वाले ‘भारतीय समुदाय की भलाई’ पर चर्चा की थी। भारतीय समुदाय की भलाई के मुद्दे पर उन्होंने कतर में रह रहे भारतीय नागरिकों के हितों को लेकर बात करने के साथ ही आठों बंदियों की मुक्ति के लिए भी अमीर को सहमत किया। प्रधानमंत्री मोदी की इस भेंट ने इस प्रकरण का सारा दृश्य ही बदल दिया। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने अब तक के कार्यकाल में अरब देशों के साथ भारत के संबंधों को अधिक प्रगाढ़ किया है। उसके बाद राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने भी पर्दे के पीछे प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कतर की जेल से मुक्त होकर भारत लौटे नौसैनिकों ने भी यह स्वीकार किया है कि यदि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी न होते, तो वे कभी भी अपने देश लौटकर नहीं आ पाते। हम सब जानते हैं कि कतर की कानून व्यवस्था में कठोरता है। वह अपने हिसाब से चलती है। याद रखें कि आठों पूर्व नौसैनिकों की गिरफ्तारी एवं उनकी सजा के पीछे के कारणों को कभी भी कतर ने उजागर नहीं किया। बहरहाल, भारत के सामर्थ्य पर प्रश्न उठानेवाले लोग भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत पर चुप्पी साधकर बैठ गए हैं। चुप्पी से उनकी नीयत उजागर होती है। पूर्व नौसैनिकों की रिहाई से मोदी विरोधी अवश्य ही मायूस होंगे लेकिन शेष समस्त भारतवासी आज गर्वित हैं। वैश्विक पटल पर इसे भारत की बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा जा रहा है। इस कूटनीतिक जीत से अब दुनिया में भारतीय नागरिकों को देखने का दृष्टिकोण बदल जाएगा। भारत के लोग विदेशी भूमि पर भी स्वाभिमान एवं विश्वास के साथ काम कर पाएंगे कि किसी भी मुश्किल घड़ी में उनका देश उनके पीछे खड़ा है।
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