भारत की ओर से लगातार इस विषय को उठाया जा रहा है कि बदली हुई वैश्विक परिस्थिति में अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में भी बदलाव आवश्यक है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को प्रभावी बनाने और वैश्विक संतुलन साधने के लिए उनकी सदस्य संख्या पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। भारत जैसे प्रभावशाली देश को सुरक्षा परिषद का हिस्सा होना चाहिए। भारत के इस विचार को संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुतारेस ने भी समर्थन दिया है। हाल ही में उन्होंने कहा कि वैश्विक संस्थाओं में आज की वैश्विक स्थिति दिखाई देनी चाहिए न कि 80 साल पहले की। सोशल मीडिया एक्स पर लिखते हुए उन्होंने दक्षिण अफ्रीका को स्थायी सदस्यता नहीं मिलने का जिक्र किया था। लेकिन टेस्ला कंपनी के संस्थापक इलॉन मस्क ने इसे नया संदर्भ देते हुए कहा कि दुनिया की सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश होने के बावजूद भारत को सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता नहीं मिली है, जो ठीक नहीं है। उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र का गठन द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद की स्थितियों में हुआ था। यह आज तक 80 साल पहले के उसी शक्ति समीकरण को प्रदर्शित कर रहा है। इस बीच हालात में जमीन-आसमान का अंतर आ चुका है। अगर सुरक्षा परिषद के वीटो पावर प्राप्त पांच स्थायी सदस्य राष्ट्रों पर ही नजर डाल ली जाए तो आज का ब्रिटेन उस समय के ब्रिटेन की छाया मात्र रह गया है। रूस को लीजिए तो इसे सुरक्षा परिषद में सोवियत संघ की जगह भले दे दी गई हो, शक्ति और प्रभाव में उसका सोवियत संघ से कोई मुकाबला नहीं। वहीं, भारत के रूप में अगर दुनिया का सबसे बड़ी जनसंख्या और पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश इससे बाहर है तो दक्षिण अफ्रीका को स्थायी सदस्यता न मिलना भौगोलिक पूर्वाग्रह दर्शाता है। इसी तरह दक्षिण अमेरिका भी इससे वंचित है औऱ यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी भी। इन असंगतियों का परिणाम यह हुआ है कि सुरक्षा परिषद अंतरराष्ट्रीय संस्था के तौर पर प्रभावी भूमिका निभाने में लगातार नाकाम साबित हो रहा है। सभी स्थायी सदस्य राष्ट्र अपनी वीटो पावर का इस्तेमाल अपने संकीर्ण हितों के लिए करते हैं। यही वजह है कि संयुक्त राष्ट्र यूक्रेन और गाजा युद्ध रुकवाने में कोई भूमिका नहीं निभा पाया है। वर्तमान परिस्थिति ने अनुसार, यह तय है कि जब भी सुरक्षा परिषद में सुधार का मामला आएगा, भारत की पहली दावेदारी बनेगी। न केवल संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुतारेस बल्कि अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस भी भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन करते रहे हैं। लेकिन यह भी लगभग तय माना जा रहा है कि सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य राष्ट्र चीन ऐसे किसी भी प्रस्ताव को हर हाल में रोकना चाहेगा। चीन जैसे देशों की भूमिका को देखकर भी सुरक्षा परिषद में बदलाव की आवश्यकता है। चीन ने अकसर अपने प्रभाव का गलत ढंग से उपयोग किया है। यहां तक कि मानवता के लिए खतरा बनने वाले आतंकवादियों को ढाल देने का भी प्रयास चीन ने किया है। ऐसी स्थिति में वैश्विक कल्याण का विचार रखने वाले भारत को प्रभावशाली अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में प्रभावशाली भूमिका में रहना ही चाहिए। यह बात भी वैश्विक शक्तियों को स्मरण रखना होगा कि अगर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को प्रासंगिक बनाना है तो उसमें भारत जैसे देशों को समुचित जगह मिलनी चाहिए। अच्छा होगा कि इस विचार को अब विमर्श के आगे बढ़ाकर धरातल पर क्रियान्वित किया जाए।
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