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लोकतंत्र के महापर्व का शुभारंभ

भारत को लोकतंत्र की जननी कहा जाता है। वर्तमान परिदृश्य में भी भारत में दुनिया का सबसे बड़ी लोकतांत्रिक व्यवस्था है। हमारे यहाँ निर्वाचन को लोकतंत्र के उत्सव के तौर पर देखा जाता है। जिस प्रकार किसी सांस्कृतिक और धार्मिक उत्सव में हम आनंदपूर्वक सहभागिता निभाते हैं, ठीक उसी प्रकार लोकतंत्र के पर्व ‘निर्वाचन’ में भी उत्साह से शामिल होते हैं। शनिवार को चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव की घोषणा करके लोकतंत्र के महापर्व का शुभारंभ कर दिया। देश की सबसे बड़ी पंचायत लोकसभा की 543 सीटों के लिए मतदान की प्रक्रिया सात चरणों में सम्पन्न होगी। 19 अप्रैल से लेकर 4 जून को परिणाम के दिन तक यह प्रक्रिया थोड़ी अधिक लंबी हो गई है। इसको लेकर राजनीतिक पंडितों में चर्चा है कि लंबी चुनाव प्रक्रिया एक ऊब पैदा करती है। आचार संहिता लागू रहने से शासकीय कार्य भी रुके रहते हैं। चुनाव आयोग को यह प्रयास करना चाहिए कि निर्वाचन की प्रक्रिया को यथा संभव छोटा रखा जाए। हालांकि, यह विचार चुनाव आयोग के सामने भी रहता ही है लेकिन भारत जैसे बड़े देश में निष्पक्ष चुनाव कराना भी अपने आप में एक चुनौती है। चुनाव आयोग की प्राथमिकता भी यही रहती है कि देश में एक अच्छे वातावरण में, पारदर्शिता एवं ईमानदारी से निर्वाचन सम्पन्न हों। इस बार लगभग 96.88 करोड़ मतदाता 12 लाख से अधिक मतदान केंद्रों पर अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। इसमें 49 करोड़ 72 लाख पुरुष मतदाता हैं। वहीं, 47.1 करोड़ महिला वोटर हैं। भारत में अमेरिका की तुलना में लगभग चार गुना अधिक मतदाता हैं। देश में कुल मतदाताओं की संख्या यूरोप के देशों की कुल जनसंख्या से भी अधिक है। इस बार मतदाता सूची में 2.3 करोड़ नए मतदाता जुड़े हैं। उल्लेखनीय है कि चुनाव में जो दल पराजित हो जाते हैं, वे सबसे पहले चुनाव आयोग और सत्ता पक्ष को ही निशाने पर लेते हैं। हम देख ही रहे हैं कि कांग्रेस जैसे राजनीतिक दल ने भी ईवीएम को निशाने पर ले रखा है। अवैज्ञानिक सोच का प्रदर्शन करते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ और पढ़े-लिखे नेता भी ईवीएम को लेकर समाज में भ्रम का वातावरण बना रहे हैं। अच्छा हुआ कि निर्वाचन की घोषणा करते समय चुनाव आयोग ने ईवीएम पर भी अपनी ओर से स्पष्टीकरण दिया। ईवीएम से चुनाव कराना बैलेट की अपेक्षा कहीं अधिक पारदर्शी, कम खर्चीले और जल्दी परिणाम देनेवाले हैं। चुनाव आयोग ने ठीक ही विपक्षी दलों को आईना दिखाया कि जहाँ वे चुनाव जीत जाते हैं, वहाँ परिणाम को स्वीकार कर लेते हैं और जहाँ हार जाते हैं वहाँ ईवीएम पर संदेह करते हैं। यकीनन राजनीतिक दलों को अपने दोहरे आचरण का मूल्यांकन करना चाहिए। बहरहाल, लोकसभा चुनाव के साथ ही चार राज्यों में ओडिशा, आंध्र प्रदेश, सिक्कम और अरुणाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होंगे। ‘एक देश-एक चुनाव’ के अनुकरणीय विचार का विरोध करनेवाले राजनीतिक दलों को इससे भी सीख लेनी चाहिए। नि:संदेह, चारों राज्यों के मतदाताओं के लिए विधानसभा और लोकसभा चुनाव के मुद्दे अलग होंगे, इसलिए मतदान में भी विविधता दिखायी दे सकती है। यह चुनाव बहुत महत्व के हैं। अभी तक के रूझानों को देखकर कहा जा सकता है कि 4 जून को इतिहास बनना तय है। भाजपा एक बड़ी जीत के साथ केंद्र में सरकार बनाने की हैट्रिक बनाएगी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक बार फिर प्रधानमंत्री बनेंगे। प्रधानमंत्री मोदी पहले ऐसे गैर कांग्रेसी नेता होंगे, जो लगातार तीन बार प्रधानमंत्री पद के लिए चुने जाएंगे। बहरहाल, चुनाव आयोग के आग्रह को सभी राजनीतिक दलों को स्वीकार करते हुए राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप में मर्यादा को बनाए रखना चाहिए। चुनाव प्रचार में नकारात्मकता और व्यक्तिगत हमलों से बचाना चाहिए। बड़े नेताओं की जिम्मेदारी अधिक है कि वे अपनी पार्टी एवं नेताओं को दिशा दिखाएं। राजनीतिक प्रतिस्पर्धा को राजनीतिक कटुता में परिवर्तित न होने दें।

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