भारत में अभारतीय ताकतें हिन्दू समाज को लक्षित करके कन्वर्जन का बड़ा रैकेट चला रही हैं। ईसाई मिशनरीज हों या फिर कट्टरपंथी इस्लामिक संस्थाएं, अपने-अपने मत का प्रसार करने के लिए कन्वर्जन की प्रक्रिया का अपनाती हैं। इनके निशाने पर हिन्दू समाज के भोले-भाले समुदाय रहते हैं। ये संस्थाएं हिन्दुओं को विभिन्न प्रकार के बरगलाकर या धोखे में रखकर कन्वर्जन को अंजाम देते हैं। लंबे समय से राष्ट्रीय विचार के संगठन कन्वर्जन के गंभीर खतरे की ओर समाज और सरकार का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास करते आए हैं। अभी तक उनकी चिंता का उपहास उड़ाया जाता था। यह भी सुनियोजित ढंग से किया जाता है ताकि कन्वर्जन के मुद्दे पर समाज में गंभीर विमर्श खड़ा न हो जाए। लेकिन अब तो कन्वर्जन के गंभीर खतरे को लेकर न्यायालय ने भी अपनी चिंता जाहिर कर दी है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कन्वर्जन पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा है- “उत्तरप्रदेश में भोले-भाले गरीबों को गुमराह कर ईसाई बनाया जा रहा। अगर ऐसे ही धर्मांतरण (कन्वर्जन) जारी रहा तो एक दिन भारत की बहुसंख्यक जनसंख्या अल्पसंख्यक हो जाएगी”। कन्वर्जन के बहस के बीच न्यायालय की यह टिप्पणी बहुत गंभीर है और यह समय की आवश्यकता भी थी। हमारे देश में हिन्दुओं के बीच ही एक बड़ा वर्ग ऐसा है, जो अभारतीय ताकतों के प्रोपेगेंडा में फंसकर यह मान लेना है कि कन्वर्जन, लव जिहाद, जमीन जिहाद इत्यादि निरर्थक मुद्द हैं, जिनका समाज एवं देश से कोई लेना-देना नहीं है। कुछ संगठन जबरन ही इन मुद्दों को उठाते रहते हैं। कन्वर्जन एवं लव जिहाद जैसे मुद्दों पर बात करनेवाले संगठनों को कथित तौर पर ‘सांप्रदायिक संगठन’ कहकर भी इन मुद्दों पर चलनेवाली बहस को कमजोर करने का प्रयास किया जाता है। ऐसी स्थिति में न्यायालय की यह टिप्पणी भ्रमित हिन्दुओं की आँखें खोलने में प्रभावी भूमिका निभा सकती है। जनसांख्यकीय परिवर्तन को लेकर पूर्व में भी जानकारों द्वारा चिंता जताई जा चुकी है। किसी भी देश के लिए वह स्थिति ठीक नहीं होती है जब वहाँ का बहुसंख्यक समाज अल्पसंख्यक समाज में बदल जाए। भारत के विभिन्न हिस्सों में इसके गंभीर खतरों एवं चुनौतियों को समझा जा सकता है। अफगानिस्तान, पाकिस्तान एवं बांग्लादेश भारत से टूटकर अलग देश इसलिए ही बने क्योंकि इन हिस्सों में हिन्दू समुदाय अल्पसंख्यक हो गया था। परिश्चम बंगाल से लेकर केरल तक की स्थितियां हमारे सामने ही हैं। न्यायालय की टिप्पणी की गंभीरता को समाज के प्रत्येक व्यक्ति को समझना चाहिए। नागरिक संस्थाओं की जिम्मेदारी है कि न्यायालय की इस टिप्पणी पर समाज के विभिन्न वर्गों के बीच जागरूकता के कार्यक्रम कराएं। ताकि अधिकतम लोग जनसांख्यकीय परिवर्तन और कर्न्वन की चुनौतियों को समझ सकें। कन्वर्जन के खेल में अभारतीय ताकतें किस हद तक सक्रिय हैं, इसको इस बात से समझा जा सकता है कि उनके द्वारा बीमार, दिव्यांग और मानसिक तौर पर कमजोर लोगों का भी कन्वर्जन कर दिया जाता है। जिस मामले की सुनवाई के दौरान इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी की है, वह भी मानसिक रूप से बीमार युवक के कन्वर्जन का है। याद हो कि उत्तरप्रदेश में ही दो वर्ष पूर्व मूक-बधिर बच्चों के कन्वर्जन का मामला भी सामने आया था। यह तरीका बताता है कि यह कन्वर्जन संविधान विरोधी गतिविधि है। हैरानी की बात है कि संविधान का मजाक बनाने वाली ईसाई एवं इस्लामिक संस्थाओं के विरुद्ध एक भी टिप्पणी संविधान हाथ में लेकर घूमनेवाले नेताओं ने नहीं की है। न्यायालय की टिप्पणी की प्रकाश में केंद्र एवं राज्य सरकारों को कन्वर्जन के खेल को रोकने के लिए सख्त कदम उठाने चाहिए। यह सही बात है कि कन्वर्जन का धंधा इसी प्रकार चलता रहा, तब हिन्दू अल्पसंख्यक हो ही जाएंगे। देश के अनेक हिस्से इस बात के साक्षी हैं, जहाँ हिन्दू अल्पसंख्यक हो चुके हैं।
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