Home » जी-7 और भारत की भूमिका

जी-7 और भारत की भूमिका

इटली की मेजबानी में सम्पन्न हुए जी-7 शिखर सम्मेलन में भारत की उपस्थिति महत्वपूर्ण रही। भारत इस समूह का सदस्य नहीं है, इसके बाद भी वह इसके सम्मेलनों का हिस्सा बनता रहा है। इटली में आयोजित सम्मेलन में भारत को मिले विशेष महत्व के दो कारण रहे। एक, भारत और इटली की आपसी संबंध। दो, वैश्विक पटल पर भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बढ़ता प्रभाव। इस समूह में भारत की लगातार उपस्थिति के बाद हम कह सकते हैं कि भारत एक तरह से जी-7 का अभिन्न अंग बन चुका है। इसे 11 बार सम्मेलन में आमंत्रित किया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं पांच बार इसमें शामिल हो चुके हैं तथा उन्होंने प्रमुख वैश्विक चुनौतियों पर अपने विचार व्यक्त कर बैठकों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद उनका इटली दौरा पहली विदेश यात्रा है। प्रधानमंत्री मोदी और प्रधानमंत्री मेलोनी के कार्यकाल में दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है। इटली की प्रधानमंत्री जॉर्ज मेलोनी का सदैव प्रयास रहा है कि भारत और इटली के संबंधों में प्रगाढ़ता आये। दोनों देश व्यापक रणनीतिक साझेदारी के लिए कोशिश कर रहे हैं। भारत-मध्य-पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा दोनों देशों के हितों की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है, हालांकि इस्राइल-हमास संघर्ष की वजह से अभी इस मामले में प्रगति बाधित हुई है। उल्लेखनीय है कि अफ्रीका, भू-मध्यसागर के क्षेत्र तथा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भी जी-7 और भारत के बीच सहयोग की बड़ी संभावनाएं हैं। यह सम्मेलन इसलिए भी महत्वपूर्ण रहा क्योंकि यह ऐसे समय में आयोजित हुआ, जब महत्वपूर्ण बदलावों से गुजर रही दुनिया के सामने कई बड़ी चुनौतियां खड़ी हैं। इनमें यूरोप और मध्य-पूर्व में जारी दो युद्ध विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं, जो जी-7 देशों- अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, इटली, जर्मनी, ब्रिटेन और जापान- की भूमिका पर सवाल उठा रहे हैं। बहुपक्षीय व्यवस्था एवं संस्थाओं को अनसुना कर ये देश एकतरफा फैसले लेते रहे हैं, मनमाने ढंग से आर्थिक एवं वित्तीय पाबंदियां लगायी जाती रही हैं तथा ऐसे उपाय किये जाते रहे, जिनका अनुपालन ये देश स्वयं भी नहीं करते हैं। यह कहा जाना चाहिए कि नये विकल्प के बीज बहुत हद तक इनके द्वारा ही बोये गये हैं। जी-7 की स्थापना 1975 में की गयी थी, जब 1973 के अरब-इस्राइल युद्ध और उसमें अमेरिका की भूमिका की वजह से अरबों ने तेल की आपूर्ति रोक दी थी और सामुद्रिक आवाजाही बाधित हुई थी, जिसके कारण बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को भारी झटका लगा था। पांच दशकों के बाद 50वीं बैठक के सामने भी कुछ उसी तरह की चुनौतियां रहीं, जो कोरोना महामारी, रूस-यूक्रेन युद्ध तथा इस्राइल-हमास संघर्ष के कारण पैदा हुई हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध तथा इस्राइल-हमास संघर्ष बड़े क्षेत्रीय युद्ध का रूप ले सकते हैं, जिनकी चपेट में आकर समूची दुनिया झुलस सकती है। साथ ही, चीन आज जी-7 समूह के लिए एक अस्तित्वगत चुनौती बन चुका है। चीन के प्रभाव को रोकने की कोशिश में समूह द्वारा जो तौर-तरीके और उपाय अपनाये जा रहे हैं, उनके कारण रूस और चीन के बीच नजदीकी बढ़ती जा रही है, जो पश्चिम के वर्चस्वादी व्यवहार का प्रतिकार करने का प्रयास कर रहे हैं। इसीलिए ये दोनों देश अपने तरीके से एक नयी विश्व व्यवस्था का प्रचार कर रहे हैं, जिसमें बहुपक्षीय संस्थाओं की प्रमुखता के बारे में कहा जा रहा है। ऐसा विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र के बारे में कहा जा रहा है, जो खुद ही लाचार और बेहाल हो चुका है। लेकिन इस वैकल्पिक व्यवस्था में ब्रिक्स, शंघाई सहयोग संगठन और यूरेशिया क्षेत्र पर जोर देना एक वास्तविकता है। भू-राजनीतिक रूप से विभाजित शीत युद्ध के दूसरे संभावित संस्करण में जी-7 समूह एक खेमे के रूप में उभरा है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि भू-आर्थिक दृष्टि से नयी विश्व व्यवस्था में आर्थिक शक्ति के अनेक केंद्र होंगे। इसमें भी कोई संदेह नहीं है कि पलड़ा पूर्व और दक्षिण की ओर झुका है, जिसमें भारत न केवल एक बड़ी अर्थव्यवस्था होने के नाते, बल्कि पूर्व और पश्चिम तथा उत्तर और दक्षिण के बीच पुल निर्माता एवं ग्लोबल साउथ की एक भरोसेमंद आवाज के रूप में भी एक ठोस भूमिका निभायेगा। सिद्धांत आधारित विदेश नीति और रणनीतिक स्वायत्तता से भारत की शक्ति बढ़ी है, जिसमें ‘भारत प्रथम’ की सोच के साथ विश्व की भलाई एवं कल्याण की भावना प्रमुख तत्व है। उलझी-बिखरी व्यवस्था में इसकी अपनी सीमाएं हो सकती हैं, पर आशा का एक दीप बनने की नैतिक क्षमता भारत में है। विश्व की बड़ी शक्तियों की आपसी खींचतान और तनातनी के बीच भारत की ओर उम्मीद से देखा जा रहा है। ऐसे में यह सवाल पैदा होता है कि क्या भारत एक संपर्क-सूत्र की भूमिका निभा सकता है। भारत ने अपनी कूटनीतिक क्षमता, सार्वभौमिक कल्याण और चिंताओं का प्रदर्शन जी-20 की अध्यक्षता के दौरान बखूबी किया है, जिससे यह इंगित हुआ कि भारत दुनिया की भलाई के लिए सभी को साथ लेकर चलने का आकांक्षी है।प्रधानमंत्री मोदी ने बैठक के दौरान नेताओं से द्विपक्षीय वार्ता में वैश्विक शांति एवं सहकार के संबंध में भारत की सोच को सामने रखा। भारत सदैव शांति और सहअस्तित्व के सिद्धांत में विश्वास रखकर चलता है।

Swadesh Bhopal group of newspapers has its editions from Bhopal, Raipur, Bilaspur, Jabalpur and Sagar in madhya pradesh (India). Swadesh.in is news portal and web TV.

@2023 – All Right Reserved. Designed and Developed by Sortd