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भटक गया है किसान आंदोलन

पंजाब और हरियाणा के किसाना संगठनों की ओर से आयोजित आंदोलन राह भटक गया है। किसानों के तौर-तरीके देखकर कोई भी यह नहीं कह सकता कि यह एक शांतिपूर्ण किसान आंदोलन है। जेसीबी, फोकलेन मशीन, ट्रैक्टर-ट्रॉली एवं अन्य प्रकार की मशीने लेकर दिल्ली कूच करने की नीयत पर संदेह उठना स्वाभाविक है। यदि किसानों को लगता है कि उनकी माँगें देशभर के किसानों हितों का प्रतिनिधित्व करती हैं, तब वे जहाँ हैं, वहीं शांतिपूर्ण धरने पर क्यों नहीं बैठ जाते? शांतिपूर्ण धरने का क्या प्रभाव होता है, यह अन्ना हजारे के आंदोलन ने हम सबको बताया है। इसलिए यह भी नहीं कहा जा सकता कि शांति से अपनी बात कहनेवालों की सरकार सुनती नहीं है। लेकिन पंजाब-हरियाणा के किसान संगठनों के आंदोलन के तौर-तरीके देखकर तो यही लगता है कि उन्हें उग्र प्रदर्शन के लिए पीछे से उकसाया या समर्थन किया जा रहा है। यह आंदोलन एक तरह से राजनीति से प्रेरित और पोषित भी लगता है। अन्यथा क्या कारण था कि केन्द्र सरकार की ओर से पाँच फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य के बेहतरीन प्रस्ताव को ठुकराया जाता। जिस जल्दबाजी के साथ किसान संगठनों ने केंद्र सरकार के समझौते के प्रस्ताव को इनकार किया है, उस देखकर यह भी कहा जा सकता है कि प्रदर्शनकारी किसानों ने समूचे देश के किसानों का नुकसान किया है। यह उजागर तथ्य है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य का सर्वाधिक लाभ पंजाब और हरियाणा के किसान ही लेते हैं, जिन्होंने अन्य फसलों को उगाना बंद करके गेंहू और चावल की फसल पर ही खेती को केंद्रित कर दिया है। याद रखें कि इन फसलों के लिए सबसे अधिक पानी लगता है। जिन क्षेत्रों में पानी के प्राकृतिक स्रोत नहीं है और वहाँ चावल की खेती बहुतायात में की जाती है, इससे भू-जलस्तर का संकट खड़ा होने लगा है। पंजाब ही नहीं, कई अन्य राज्यों में भी खेती से जुड़ा एक बड़ा संकट गिरता भू-जलस्तर है, जिसकी वजह से सिंचाई करना मुश्किल होता जा रहा है। किसान दूसरी फसलों को उगाने के लिए प्रोत्साहित हो इसलिए ही सरकार ने दाल, मक्का और कपास सहित पाँच फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य देने का प्रस्ताव दिया। इस प्रस्ताव से उन किसानों को भी मिलता, जहाँ पंजाब की तरह सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता नहीं है। जो भौगोलिक स्थितियों के कारण कम पानी की फसलें करने के लिए मजबूर हैं। क्या ऐसे किसानों को आर्थिक सुरक्षा नहीं मिलनी चाहिए? प्रदर्शनकारी किसानों ने सरकार के प्रस्ताव को ठुकराकर एक प्रकार से देश के बहुसंख्यक किसानों के हितों पर हमला किया है। किसानों को समझना होगा कि सभी फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी की माँग किसी भी प्रकार से व्यवहारिक नहीं कही जा सकती है। अनेक कृषि विशेषज्ञ एवं किसान संगठनों के प्रमुख भी इस बात को कह रहे हैं कि न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी से किसानों का भला नहीं होगा। बहरहाल, किसानों को अपनी माँगों एवं सरकार के प्रस्ताव पर ईमानदारी से पुनर्विचार करना चाहिए। हम सब भली प्रकार जानते हैं कि मोदी सरकार किसानों के हितों को प्राथमिकता के साथ देखती है। यह पहली सरकार है जिनसे कमजोर आयवर्ग के किसानों को सीधे आर्थिक सहायता देना प्रारंभ किया। सरकार ने कृषि क्षेत्र को मजबूत करने के लिए अनेक प्रयत्न किए हैं। प्रदर्शनकारी किसानों को केन्द्र सरकार के टकराने की अपेक्षा बातचीत के प्रयास अधिक करने चाहिए।

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