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छिंदवाड़ा पर जोर

लोकसभा चुनाव में देशभर में कुछ ऐसी सीटें हैं, जो समूचे देश में चर्चा का केंद्र बनी हुई हैं। राजनीतिक दलों के अलावा राजनीति में रुचि रखनेवाले सभी लोगों की नजरें इन सीटों पर हैं। इन्हीं में से एक मध्यप्रदेश की छिंदवाड़ा सीट है, जिसे कमलनाथ का गढ़ कहा जाता है। कांग्रेस के नेता कमलनाथ और उनके परिवार के सदस्य लंबे समय से इस सीट पर जीतते चले आ रहे हैं। 70 से अधिक वर्षों से तक यह सीट कांग्रेस के पास रही है, जिसमें कमलनाथ परिवार ने 45 वर्ष यहाँ का प्रतिनिधित्व किया है। यह विरासत इतनी मजबूत है कि जनसंघ या भाजपा 1952 के बाद से इस सीट पर कभी नहीं जीत सके हैं, सिवाय 1997 के उपचुनाव के जब पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा ने कमल नाथ को 37,680 वोटों से हराया था। हालांकि अगले साल नाथ ने पटवा को पांच गुना बड़े अंतर से हराकर वापसी की। उल्लेखनीय है कि पिछले लोकसभा चुनाव में जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आँधी में मध्यप्रदेश से कांग्रेस हवा में उड़ गई थी, तब भी छिंदवाड़ा में कमलनाथ अड़े रहे। हालांकि कांग्रेस के नुकलनाथ लगभग 35 हजार मतों से ही जीत पाए थे, जबकि उस समय प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और स्वयं कमलनाथ मुख्यमंत्री थे। इसके साथ ही भाजपा की ओर से किसी बड़े नेता ने छिंदवाड़ा में न तो सभा की थी और न ही रैली निकाली थी। पिछले परिणामों से उत्साहित भाजपा ने इस बार मध्यप्रदेश की सभी 29 लोकसभा सीटों पर विजय का संकल्प लिया है। भाजपा अपने संकल्प को फलिभूत करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है। छिंदवाड़ा पर भाजपा का ध्वज फहराने के लिए पार्टी ने तगड़ी मोर्चाबंदी की है। भाजपा ने सबसे पहले वहाँ कमलनाथ को कमजोर करने के लिए उनके नजदीकी कार्यकर्ताओं को अपनी ओर शामिल किया। उसके बाद अपने बड़े-बड़े नेता चुनावी रैलियों में उतार दिए। राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्‌डा से लेकर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव तक भाजपा की विजय सुनिश्चित करने के लिए छिंदवाड़ा के मतदाताओं के बीच पहुँच रहे हैं। छिंदवाड़ा में 19 अप्रैल को मतदान होना है। चुनाव प्रचार के अंतिम दिन गृहमंत्री ने रोड शो करके माहौल बनाने का प्रयास किया है। कुल मिलाकर कहना होगा कि भाजपा ने साफ संकेत दिए हैं कि छिंदवाड़ा की सीट उनकी प्राथमिकता में हैं। मध्यप्रदेश की सभी सीटें जीतने के लिए जरूरी है कि छिंदवाड़ा में परिश्रम किया जाए। हालांकि भाजपा के नेताओं को यह भी ध्यान रखना होगा कि छिंदवाड़ा के अलावा भी प्रदेश की कुछ और सीटें हैं, जिन पर भाजपा को बहुत मेहनत करने की आवश्यकता है। जरा-सी अनदेखी भाजपा के सपने पर पानी फेर सकती है। ऐसा न हो कि भाजपा छिंदवाड़ा जीत जाए और राजगढ़ या दूसरी कोई सीट हार जाए। इसलिए भाजपा को मध्यप्रदेश की कुछ और सीटों पर अपना ध्यान केंद्रित करना होगा। उधर, छिंदवाड़ा को जीतने के लिए कांग्रेस की ओर से कमलनाथ ने भी अपनी पूरी ताकत झौंक दी है। कमलनाथ कतई नहीं चाहेंगे कि उनका यह गढ़ हाथ से निकल जाए। यदि कांग्रेस प्रत्याशी एवं कमलनाथ के पुत्र नकुलनाथ की पराजय होती है, तब उसके गंभीर नुकसार कमलनाथ को उठाने पड़ सकते हैं। पराजय की स्थिति में कांग्रेस में हासिए पर चल रहे कमलनाथ को पूरी तरह दरकिनार किया जा सकता है। इसलिए कमलनाथ भावनात्मक अपील भी मतदाताओं से कर रहे हैं। देखना होगा कि छिंदवाड़ा का मतदाता किसका साथ चुनता है- प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का या फिर एक बार और कमलनाथ परिवार का।

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