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लोकतंत्र और संविधान की हत्या का उदाहरण है आपातकाल

18वीं लोकसभा के पहले सत्र के पहले दिन ही कांग्रेस के नेता राहुल गांधी और अब उनकी अगुवाई में विपक्षी गठबंधन के नेता भी संविधान की प्रति लेकर ‘संविधान खतरे में’ और ‘संविधान की रक्षा’ के नारे लगा रहे थे। सही अर्थों में उन्हें आज ‘संविधान और लोकतंत्र की रक्षा’ का संकल्प अपनी पार्टी के नेताओं को दिलाना चाहिए। 25 जून भारतीय इतिहास की वह दिनांक है, जिसने सत्ता की भूख की खातिर देश में एक साथ लोकतंत्र और संविधान की हत्या को देखा है। देश में 25 जून, 1975 को आपातकाल की घोषणा की गई थी जो 21 मार्च, 1977 तक जारी रहा था। इस कालखंड को आम लोगों की स्वतंत्रता के निर्मम दमन के तौर पर देखा जाता है। आपातकाल के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपना विरोध करनेवाले नेताओं को गिरफ्तार करके जेल में डालवा दिया था। देश की जनता तक सच न पहुँच सके, इसके लिए रातोंरात समाचारपत्रों के कार्यालयों एवं मुद्रणालयों की बिजली काट दी गई थी। समाचारपत्रों में क्या प्रकाशित होगा और क्या नहीं, इसकी निगरानी के लिए सरकारी अधिकारी भी नियुक्त कर दिए थे। इसलिए जब कांग्रेस के नेता संविधान एवं लोकतंत्र बचाने का दम भरते हैं, तो अनायास ही लोगों को आपातकाल स्मरण हो उठता है। संविधान और लोकतंत्र की हत्या की इस भयावह घटना की आज 50वीं बरसी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आपातकाल का जिक्र करके संविधान की प्रति लेकर संविधान बचाने का ढोंग करनेवाले नेताओं को खूब आईना दिखाया। उन्होंने उचित ही आह्वान किया है कि “आपातकाल की 50वीं बरसी के अवसर पर देशवासी यह संकल्प लें कि भारत में फिर कभी कोई ऐसा कदम उठाने की हिम्मत नहीं करेगा। जो लोग इस देश के संविधान की गरिमा के प्रति समर्पित हैं, जो लोग भारत की लोकतांत्रिक परंपराओं पर विश्वास रखते हैं, वे 25 जून को कभी नहीं भूल सकते हैं। 25 जून, 1975 को भारत के लोकतंत्र पर जो काला धब्बा लगा था, उसके 50 साल हो रहे हैं”। यदि वास्तव में कांग्रेस संविधान और लोकतंत्र के प्रति संवेदनशील है, तब उसे देश पर आपातकाल थोपने, नागरिकों के मौलिक अधिकार छीनने और लोकतंत्र सेनानियों पर किए गए अत्याचारों के लिए प्रतिवर्ष माफी माँगनी चाहिए और सार्वजनिक संकल्प लेना चाहिए कि भविष्य में कभी भी संविधान और लोकतंत्र पर संकट नहीं आने देंगे। फिर से कभी आपातकाल थोपने की गलती नहीं दोहराएंगे। संविधान की रक्षा के प्रति कांग्रेस की सच्ची अभिव्यक्ति यही हो सकती है। कौन नहीं जानता कि आपातकाल में ही कांग्रेस ने संविधान की आत्मा कही जानेवाली ‘प्रस्तावना’ को भी बदल दिया था। आज संविधान के प्रथम पृष्ठ पर जो प्रस्तावना प्रकाशित है, वह संविधान निर्माताओं की कल्पना नहीं है। कांग्रेस जिस भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर संविधान एवं लोकतंत्र का विरोधी होने के आरोप लगाती है, उसके ही हजारों कार्यकर्ताओं ने देश में लोकतंत्र की बहाली एवं संविधान की रक्षा के लिए न केवल संघर्ष किया अपितु अत्याचार भी सहन किए। आपातकाल में जेल गए लोकतंत्र सेनानियों की मार्मिक कहानियां सुनने पर ध्यान आता है कि अपने ही नागरिकों पर अत्याचार करने के मामले में हमने अंग्रेजों को भी पीछे छोड़ दिया था। देश की जनता संविधान की प्रति लहराने की नौटंकी और संविधान की रक्षा के लिए किए गए संघर्ष को भली प्रकार जानती है। निश्चित ही 25 जून को सभी देशवासियों को यह संकल्प लेना चाहिए कि अब किसी को भी संविधान और लोकतंत्र को अंधकार में धकेलने की अनुमति एवं अवसर नहीं देंगे।

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