कोरोना रोधी टीके को लेकर भ्रम का वातावरण बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। विशेषतौर से राजनीतिक लाभ उठाने के लिए यह प्रोपेगेंडा किया जा रहा है। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि कांग्रेस की प्रमुख नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी एक सभा में कोरोनारोधी वैक्सीन को लेकर जनता को भ्रमित करने का प्रयास किया है। याद रखें कि जनप्रतिनिधि का कार्य जनता को भ्रमित करना या उनमें डर का माहौल पैदा करना नहीं है। एक जिम्मेदार जनप्रतिनिधि को जनता के भय का निवारण करना चाहिए। याद रखें कि लगभग प्रत्येक एलोपैथी दवा के कुछ न कुछ दुष्प्रभाव होते ही हैं। लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं है कि हम उनको लेकर प्रोपेगेंडा खड़ा करें। वैसे भी ये दुष्प्रभाव अत्यंत दुर्लभ होते हैं। पेरासिटामोल विश्व में सबसे अधिक प्रयोग की जाने वाली कष्ट निवारण दवाओं में से एक है, जिसके सेवन से उनींदापन, थकान, चकत्ते और खुजली की सामान्य समस्या के साथ लीवर और गुर्दे में घातक दुष्परिणाम होने से रोगी की मृत्यु भी हो सकती है। ऐसे में क्या इसका उपयोग प्रतिबंधित किया गया है? इसी प्रकार कोविशील्ड वैक्सीन को लेकर भी है। यदि इसके गंभीर दुष्प्रभाव होते तो अब तक अनेक लोगों इसके प्रभाव में आ चुके होते। भारत में ही 175 करोड़ से अधिक डोज कोविशील्ड के लगाए गए हैं, लेकिन इसके अनुपात में कितने मामले दुष्प्रभाव के आए हैं। इस आधार पर ही हमें अपना मानस बनाना चाहिए। यह बात सही है कि कोविशील्ड वैक्सीन बनानेवाली कंपनी ने एक रिपोर्ट में यह माना है कि वैक्सीन के दुर्लभ साइडइफेक्ट हो सकते हैं। लेकिन कंपनी ने स्पष्ट कहा है कि ये मामले दुर्लभ हैं। उनके मुताबिक वैक्सीन के लाभ बहुत हैं। वैक्सीन ने करोड़ों लोगों का जीवन बचाया है। महामारी को फैलने एवं उसको घातक स्वरूप लेने से भी रोका है। यह बातें हमें नहीं भूलनी चाहिए। अच्छी बात यह है कि जहाँ नेता तुच्छ राजनीति के लिए भ्रम का वातावरण बना रहे हैं और लोगों को डरा रहे हैं वहीं वैज्ञानिक एवं चिकित्सकों ने लोगों को जागरूक करने की भूमिका को निभाना शुरू कर दिया है। स्वाभाविक ही है कि वैज्ञानिक जब सत्य और तथ्य जनता के सामने रखेंगे तब नेताओं का प्रोपेगेंडा विफल हो जाएगा। आईसीएमआर के पूर्व वैज्ञानिक ने वैक्सीन को लेकर उड़ रही अफवाहों को लेकर सच्चाई को समाज के सामने रखा है। उन्होंने स्पष्ट कहा है कि वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स बहुत कम मामलों में ही होते हैं, इसलिए घबराने की जरूरत नहीं है। इसी तरह, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के पूर्व वैज्ञानिक डॉ. आर गंगा केटकर ने कहा है कि खून के थक्के जमने जैसी परेशानी पैदा करने वाला ‘थ्रॉम्बोसिस विथ थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम’ (टीटीएस) सिर्फ वैक्सीन लेने के 5 से 30 दिनों के अंदर ही हो सकता है। अब इससे साइडइफेक्ट नहीं होंगे। उन्होंने इस बारे में भी जागरूक किया कि वैक्सीन के लाभ, नुकसान से कहीं अधिक हैं। जितने ज्यादा लोग वैक्सीन लेंगे, टीटीएस का खतरा उतना ही कम होता जाता है। स्मरण रखें कि वैक्सीन बनने के बाद भी वैज्ञानिक इसकी सुरक्षा पर नजर रखते हैं। किसी भी दवाई या वैक्सीन के कुछ दुर्लभ साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं, लेकिन हमें फायदों को भी ध्यान में रखना चाहिए। समाज के जिम्मेदार लोगों को अपनी भूमिका का निर्वहन करते हुए वैक्सीन को लेकर अफवाहों को दूर करना जरूरी है ताकि समाज में डर का वातावरण न बने। वैक्सीन के दुष्प्रभाव से अधिक खतरनाक लोगों का भयाक्रांत करना है। लोगों को डराएंगे तो वे परेशान होकर गूगल करते हैं और गलत जानकारी का शिकार हो जाते हैं। अगर वे नकारात्मक सोच रखेंगे तो ये बचपन के टीकाकरण को भी प्रभावित कर सकता है। बिना सोचे-समझे फैलाए जाने वाले अवैज्ञानिक तर्क समाज में सिर्फ डर बढ़ाते हैं, और इन्हें रोका जाना चाहिए।
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