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विभाजनकारी सोच

अब तक भारत के राष्ट्रभक्त लोग 1947 का विभाजन और उसकी त्रासदी को भूले नहीं है लेकिन हमारे देश में अब भी ‘भारत विभाजन की मानसिकता’ के लोग हैं। अंतरिम बजट पर प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस के सांसद डीके सुरेश ने ऐसा ही विचार प्रकट किया, जिससे विभाजनकारी सोच की बू आती है। कांग्रेस सांसद डीके सुरेश ने कहा है कि “दक्षिण भारत के साथ अन्याय हो रहा है। जो पैसा दक्षिण तक पहुंचना चाहिए था, उसे उत्तर भारत में बांटा जा रहा है। अगर इस अन्याय को दूर नहीं किया गया तो दक्षिणी राज्य एक अलग देश बनाने की मांग करने के लिए मजबूर होंगे”। भारत के प्रति निष्ठा रखनेवाला कोई भी व्यक्ति इस प्रकार की बात कहना तो दूर, मन में सोच भी नहीं सकता। ऐसा विचार ऐसे ही मन-मस्तिष्क में आ सकता है, जिसे भारत से प्रेम नहीं हो। अपने प्यारे देश को उत्तर भारत और दक्षिण भारत में बाँटने की यह सोच खतरनाक है। भारत का विचार यही कहता है कि यह देश उत्तर से दक्षिण तक और पूर्व से पश्चिम तक एक ही है। डीके सुरेश का यह आरोप मिथ्या है कि सरकार भारत के उत्तरी हिस्से पर अधिक ध्यान दे रही है। यदि भारत के दोनों ही हिस्सों को तुलनात्मक ढंग से देखें तो भारत का दक्षिणी हिस्सा अधिक विकसित और अग्रणी है। विकास के प्रतिमान भारत के दक्षिणी हिस्से में स्पष्ट दिखायी देते हैं। कांग्रेसी सांसद के इस विभाजनकारी बयान पर जितनी चर्चा होनी चाहिए थी, वह नहीं हुई। मामले को दबा दिया गया। इस तरह की सोच को दबाने की अपेक्षा इसकी निंदा की जानी चाहिए। दुर्भाग्यपूर्ण है कि डीके सुरेश का विरोध करने की जगह उसके बचाव में उतरे कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने कहा कि उन्होंने केवल जनता की राय व्यक्त की है। अपनी राय को जनता की राय बताने से अधिक चालाकी क्या होगी? यदि राज्य के कुछ भी इस प्रकार का विचार रखते हैं, तो स्थानीय नेता होने के कारण उनका मानस बदलना डीके बंधुओं की जिम्मेदारी है। लेकिन कांग्रेसी नेता जनता का प्रबोधन करने की जगह विभाजनकारी सोच को और भड़काने एवं प्रश्रय देने का काम कर रहे हैं। याद हो कि अकसर कांग्रेसी एवं वामपंथी नेता शरजील इमाम को जेल से छोड़े जाने की माँग करते हैं। शरजील इमाम ने भी दिल्ली दंगों के दौरान भारत विभाजन की मानसिकता को प्रकट करते हुए असम और पूर्वोत्तर को भारत से काटने की बात कही थी। एक तरह से देखा जाए तो शरजील इमाम से लेकर डीके सुरेश तक के बयान एक ही प्रकार की मानसिकता का प्रतिनिधित्व करते हैं। भले ही कर्नाटक के मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने अपने भाई डीके सुरेश का बचाव करने का प्रयास किया हो लेकिन मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा है कि अलग देश की मांग नहीं की जा सकती। इसी तरह जब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे संसद में अपना भाषण दे रहे थे, तब भाजपा के सांसदों ने डीके सुरेश के बयान पर चर्चा की माँग की। बचाव में खड़गे ने कहा कि “अगर कोई देश को तोड़ने की बात करेगा, तो हम इसे कभी सहन नहीं करेंगे। चाहे वह किसी भी पार्टी का हो। मैं खुद कहूंगा कि कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक हम एक हैं और एक रहेंगे”। एक ओर कांग्रेस के अध्यक्ष कह रहे हैं कि भारत विभाजन की बात करनेवालों को सहन नहीं किया जाएगा लेकिन दूसरी ओर डीके सुरेश पर किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं की गई। यदि खड़गे और कांग्रेस का विचार यही है कि ‘देश तोड़नेवालों को सहन नहीं किया जाएगा’ तब डीके सुरेश अब तक कांग्रेस में क्या कर रहे हैं? सांसद सुरेश को बाहर का रास्ता दिखाकर कांग्रेस एक अच्छा संदेश दे सकती थी। लेकिन, ऐसा प्रतीत होता है कि मामले को दबाने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष ने बयान देकर इतिश्री कर ली। कांग्रेस भूल जाती है कि आज के समय में देश की जनता इस प्रकार के बयानों को याद रखती है और अवसर आने पर अपना विरोध प्रकट कर देती है।

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