जब सभी राजनीतिक दल लोकसभा चुनाव की तैयारियों में लग गए हैं, तब कांग्रेस के सामने नित नये संकट उत्पन्न हो रहे हैं। विशेषकर पिछले कुछ दिनों से मध्यप्रदेश में वरिष्ठ एवं युवा नेता कांग्रेस को छोड़कर भाजपा सहित अन्य राजनीतिक दलों का रुख कर रहे हैं। फिलहाल सुरेश पचौरी एवं उनके समर्थक नेताओं द्वारा भाजपा का दामन थामने से कांग्रेस को जोर का झटका लगा है। भले ही सुरेश पचौरी जमीनी नेता नहीं हैं, उन्होंने कभी कोई भी चुनाव नहीं जीता है लेकिन मध्यप्रदेश कांग्रेस में उनकी मजबूत पकड़ है। कांग्रेस के प्रमुख गुटों में एक गुट पचौरी का भी रहा है। पचौरी कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की नजरों में रहे हैं, इसलिए उन्हें चार बार राज्यसभा भेजा गया, केंद्र में मंत्री बनाया गया और पार्टी में प्रदेश अध्यक्ष सहित कई दायित्वों का निर्वहन उन्होंने किया है। कांग्रेस में उनका एक महत्वपूर्ण स्थान सदैव रहा है। यदि उनके जैसे कद्दावर नेता पार्टी छोड़ रहे हैं, तब यह प्रश्न स्वाभाविक ही उठता है कि आखिर कांग्रेस के भीतर क्या गड़बड़ी चल रही है कि निष्ठावान नेता भी पार्टी छोड़ रहे हैं। कांग्रेस में जब से राहुल गांधी का वर्चस्व हुआ है, तब से वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार कर दिया गया है। ऐसे ही उपेक्षित वरिष्ठ नेताओं के एक समूह को जी-23 समूह की उपमा मिली हुई है। बात केवल उपेक्षा और अपेक्षा की नहीं है अपितु राहुल गांधी ने कांग्रेस की राजनीति को जिस ओर मोड़ दिया है, वह कांग्रेस की विचारधारा के अनुकूल कतई नहीं है। मौजूदा समय में कांग्रेस पर कम्युनिस्टों का कब्जा हो गया है। भाजपा की सदस्यता लेते समय सुरेश पचौरी ने कहा भी कि कांग्रेस की वर्तमान राजनीति से वे निराश हैं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस को श्रीराम मंदिर में श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव का निमंत्रण नहीं ठुकराना चाहिए था। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के इस एक निर्णय से हजारों कांग्रेसियों के हृदय पर चोट लगी है। कई स्थानीय नेताओं एवं कार्यकर्ताओं ने भी राम मंदिर प्रकरण के बाद पार्टी से दूरी बना ली है। सुरेश पचौरी ने एक और महत्वपूर्ण बात कही कि कांग्रेस ने जातिगत राजनीति को बढ़ावा देकर जातीय संघर्ष को उत्पन्न कर दिया है। एक दौर था जब कांग्रेस का नारा था- ‘जात पे न पात पे, मोहर लगेगी हाथ पे’। वहीं, अब कांग्रेस के नेता राहुल गांधी आए दिन जातिगत जनगणना और जिसकी जितनी आबादी, उसकी उतनी हिस्सेदारी, जैसे नारे लगाते रहे हैं, जो साफ तौर पर जातिगत द्वेष को बढ़ानेवाले कारक साबित हो सकते हैं। याद हो कि मध्यप्रदेश में सुरेश पचौरी को कांग्रेस में ब्राह्मणों का नेता माना जाता है। कांग्रेस के खाते से ब्राह्मण वोट पूरी तरह खिसकता दिखायी दे रहा है। यह भी याद रहे कि सुरेश पचौरी अकेले भाजपा में नहीं आए हैं, उनके साथ धार के पूर्व कांग्रेस सांसद गजेंद्र सिंह राजूखेड़ी, इंदौर के विधायक संजय शुक्ला, अतुल शर्मा, विशाल पटेल, पूर्व विधायक अर्जुन पलिया जैसे कद्दावर नेता भी आए हैं। उल्लेखनीय है कि सबसे पहले कमल नाथ और उनके बेटे नकुल नाथ के बारे में खूब अफवाह उड़ी कि वे कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जा रहे हैं। हालांकि कमल नाथ एवं उनका परिवार तो भाजपा में नहीं गया लेकिन छिंदवाड़ा के सात पार्षदों ने कांग्रेस का साथ छोड़ दिया। लेकिन सुरेश पचौरी के भाजपा में आने के बाद से एक बार फिर चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया है कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस के एकमात्र सांसद नकुल नाथ भी जल्द ही भाजपा का कमल थाम सकते हैं। कांग्रेस को सोचना चाहिए कि उसके भीतर यह भगदड़ क्यों मची है? शीर्ष नेतृत्व ने प्रदेश की कमान जीतू पटवारी को सौंपी है। कांग्रेस में मची भगदड़ का एक कारण जीतू पटवारी को अध्यक्ष बनाया जाना भी हो सकता है। यदि इसी प्रकार कांग्रेस के नेताओं का पार्टी से पलायन जारी रहा तो जीतू पटवारी पर असफल एवं निष्प्रभावी अध्यक्ष होने का ठप्पा लग जाएगा।
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