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‘संप्रभुता’पर घिरी कांग्रेस

कांग्रेस पार्टी अकसर अपने राजनीतिक बयानों के कारण कटघरे में खड़ी हो जाती है। कांग्रेस के नेताओं की ओर से इस प्रकार के बयान दिए जाते हैं, जिससे न केवल भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस की मंशा पर सवाल खड़ी करती है अपितु आम जनता के मन में भी अनेक प्रश्न पैदा हो जाते हैं। इस बार तो कांग्रेस की मौजूदा समय की सबसे बड़ी नेता एवं पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा कर्नाटक चुनाव प्रचार के दौरान राज्य के लिए ‘संप्रभुता’ शब्द का उपयोग करने से विवाद खड़ा हो गया है। जहाँ भाजपा इसे कांग्रेस की विभाजनकारी मानसिकता का परिचायक बता रही है वहीं आमजन भी कांग्रेस से सवाल कर रहे हैं कि आखिर एक राज्य संप्रभु कैसे हो सकता है, क्योंकि संप्रभु तो राष्ट्र होता है। संविधान में भारत के लिए एक राष्ट्र के तौर पर संप्रभु विशेषण का उपयोग किया गया है। हमारा संविधान प्रत्येक नागरिक से अपेक्षा करता है कि वह भारत संप्रभुता को बनाए रखने में अपना योगदान देगा। सोनिया गांधी की ओर से यह कहना- “उनकी पार्टी किसी को भी कर्नाटक की प्रतिष्ठा, संप्रभुता या अखंडता के लिए खतरा पैदा नहीं करने देगी”- स्वाभाविक तौर पर प्रश्न पैदा करता है कि स्वतंत्र राष्ट्र के लिए उपयोग किए जानेवाले विशेषणों का उपयोग एक राज्य के लिए क्यों किया गया है? भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की बात तो सभी नागरिक करते हैं लेकिन राज्य की संप्रभुता, एकता और अखंडता का विचार कहाँ से आया? यह भी याद रखें कि वर्ष 2018 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले भी कांग्रेस सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कर्नाटक के एक नये राज्य ध्वज को स्वीकृति दी थी। कभी कर्नाटक को अलग ध्वज देने तो कभी उसे संप्रभु बताने का यह विचार कांग्रेस को कौन दे रहा है? क्या यह विचार उस दृष्टिकोण से आया है जिसमें कांग्रेस के प्रमुख नेता राहुल गांधी ने कहा था कि भारत एक राष्ट्र नहीं बल्कि राज्यों का संघ है? राहुल गांधी ने जोर देकर संसद से लेकर लंदन तक भारत के संदर्भ में अपने इस दृष्टिकोण को रखा है। उस समय भी कांग्रेस को आम जनता के आक्रोश का सामना करना पड़ा था। राहुल गांधी ने तो यहाँ तक दावा किया था और चुनौती दी थी कि उनके विचार का विरोध करनेवाले पहले संविधान पढ़े, संविधान में कहीं भी भारत को ‘राष्ट्र’ नहीं कहा गया है। तब देश के विभिन्न राज्यों से देशभक्त नागरिकों ने राहुल गांधी के इस विचार का विरोध किया था और संविधान की प्रस्तावना का चित्र साझा किया था, जहाँ भारत को राष्ट्र कहा गया है। तब देशभर से एकसुर में एक ही आवाज सुनायी दी थी- “भारत एक राष्ट्र है”। कांग्रेस ने तब भी राहुल गांधी के दृष्टिकोण पर कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया था और अभी भी सोनिया गांधी के मत पर चुप्पी साध रखी है। इतना अधिक विवाद होने पर कांग्रेस को अवश्य ही स्पष्ट करना चाहिए कि उसके लिए संप्रभुता का क्या अर्थ है? उसे यह भी बताना चाहिए कि कांग्रेस भारत को एक ‘राष्ट्र’ मानती है या ‘राज्यों का संघ’? उल्लेखनीय है कि अधिकतर राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि वर्तमान समय में कांग्रेस के विचारों में कम्युनिज्म विचार की झलक दिखायी दे रही है। यह सर्वविदित है कि कम्युनिज्म विचार कभी रूस से पोषित होता था, वर्तमान में उसकी प्रेरणा का केंद्र चीन है। यह विचार भारत भूमि और संस्कृति से जुड़ा नहीं है। कांग्रेस को एक बार अपनी वैचारिक दिशा पर पुनर्विचार करना चाहिए।

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