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आजाद को सुने कांग्रेस

वर्तमान समय में विश्व के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति अंध विरोध से भरे कांग्रेसी नेताओं को अपने ही पुराने साथी गुलाम नबी आजाद को ध्यान से सुनना चाहिए। अपनी आत्मकथा ‘आजाद’ के विमोचन से पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर उन्होंने जो विचार व्यक्त किए, उनको समझना समूची कांग्रेस के हित में हो सकता है। उनके वक्तव्य से राजनैतिक एवं वैचारिक विरोध और अंध विरोध के बीच के अंतर को समझा जा सकता है। प्रतिद्वंद्वी राजनैतिक दल में होने के कारण कांग्रेसी नेताओं का प्रधानमंत्री मोदी के साथ राजनैतिक एवं वैचारिक मतभेद होना स्वाभाविक है। यह स्वीकार्य हैं। परंतु जब राजनैतिक एवं वैचारिक मतभेद पर व्यक्तिगत द्वेष, घृणा और हताशा हावी हो जाती है तो वह अंध विरोध में परिवर्तित हो जाता है। ऐसी स्थिति में फिर मर्यादाएं टूटती हैं। अंध विरोध के चलते ही फिर मानहानिकारक भाषा का भी इस्तेमाल किया जाने लगता है। धीरे–धीरे यह अंधविरोध व्यक्ति से आगे बढ़कर उसके संगठन, जातीय एवं सामाजिक समूह के साथ उसकी अस्मिता से जुड़े कारकों तक पहुंच जाता है। बहरहाल, आज जो कांग्रेसी नेता प्रधानमंत्री मोदी को तानाशाह और बदले की राजनीति करनेवाला असहिष्णु नेता कहते नहीं थक रहे उनको आईना दिखाने का काम पूर्व कांग्रेसी नेता गुलाम नबी आजाद ने किया है। कांग्रेस से बगावत कर नई पार्टी बनाने वाले आजाद ने अपने 55 साल के राजनीतिक अनुभवों का स्मरण करते हुए कहा है कि प्रधानमंत्री मोदी एक राजनेता जैसा बर्ताव करते हैं, वे बदला लेनेवाले नेता नहीं बल्कि उदार राजनेता हैं। आजाद कहते हैं कि “मैंने प्रधानमंत्री के साथ जो किया, और उन्होंने जो व्यवहार मेरे साथ किया। इसका मोदी को श्रेय देना चाहिए। वह बहुत उदार हैं। विपक्ष के नेता के तौर पर मैंने उन्हें किसी भी मुद्दे पर नहीं बख्शा, चाहे वह अनुच्छेद 370 हो, नागरिकता संशोधन कानून हो या फिर हिजाब का मुद्दा। इसके बावजूद मोदी ने कभी बदले की भावना से काम नहीं किया। वो हमेशा एक नर्म दिल वाले राजनेता की तरह पेश आए”। यह बात सत्य है कि आजाद ने हमेशा एक तेजतर्रार विपक्षी नेता के तौर पर भाजपा और मोदी को घेरा। उनके विरुद्ध प्रदर्शनों का नेतृत्व किया। परंतु यह सब राजनीतिक और वैचारिक ही रहा, कभी व्यक्तिगत नहीं हुआ। इस बात को प्रधानमंत्री मोदी भी समझते थे, इसलिए जब संसद में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आजाद का आखिरी दिन था तब उन्हें विदाई देते समय प्रधानमंत्री मोदी की आंखें नम हो गई थीं। राजनैतिक विरोध की मर्यादा क्या होती है, इसको समझने के साथ ही आजाद को सुनना कांग्रेस के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि उन्होंने कांग्रेस के उन नेताओं की ओर भी संकेत किया है, जिन्होंने प्रमुख पदों पर रहकर खूब लाभ उठाया लेकिन पार्टी के हित में कुछ नहीं किया अपितु अपने अभिमान के चलते पार्टी को नुकसान ही पहुंचाया। इस संदर्भ में उन्होंने कांग्रेस के मीडिया प्रभारी जयराम रमेश और वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद के साथ हुए घटनाक्रम भी सुनाए। उम्मीद है कि उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘आजाद’ में ऐसे और भी घटनाक्रमों का जिक्र किया होगा जो कांग्रेस को आईना दिखाने का काम करेंगे। हालांकि यह भी उम्मीद है कि कांग्रेस और उसका वास्तविक नेतृत्व इन सब बातों से कोई सबक लेने को तैयार नहीं है।

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