लोकसभा चुनाव के परिणाम से कांग्रेस इतनी अधिक उत्साहित है कि वह जनादेश को स्वीकार नहीं कर पा रही है। कांग्रेस के नेताओं की ओर से लगातार जनादेश का उपहास उड़ाया जा रहा है। कांग्रेस को न जाने क्यों ऐसा लग रहा है कि जनता ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार के खिलाफ जनादेश दिया है। यह माना कि भाजपा को अकेले बहुमत नहीं आया लेकिन भाजपा गठबंधन के साथ चुनाव लड़ रही थी और उसके गठबंधन को तीसरी बार सरकार बनाने के लिए स्पष्ट जनादेश मिला है। आश्चर्य है कि अपनी स्थिति का मूल्यांकन करने की अपेक्षा कांग्रेस भाजपा को बहुमत नहीं मिलने से अधिक खुश है। कांग्रेस को गंभीरता से चिंतन करना चाहिए कि उसके नेता राहुल गांधी ने दो बार ‘भारत जोड़ो यात्रा’ निकालकर माहौल बनाने की कोशिश की। मतदाताओं को अनेक प्रकार के लुभावने वायदे किए। यहाँ तक कि महिलाओं को प्रतिमाह साढ़े आठ हजार रुपये नकद भुगतान तक का प्रलोभन दिया। जिसका परिणाम यह हुआ कि उत्तरप्रदेश में कांग्रेस कार्यालयों पर महिला मतदाता हर महीने साढ़े आठ हजार रुपये पाने के लिए ‘कांग्रेस का गारंटी कार्ड’ लेकर पहुँच रही हैं। जाति की राजनीति का भरपूर उपयोग किया। मुसलमानों को भाजपा के विरुद्ध लामबंद करने में भी कांग्रेस सफल रही। इसके साथ ही आरक्षण खत्म करने और संविधान बदलने का डर दिखाया। इसके बाद भी कांग्रेस कहाँ पहुँची? सब प्रकार से आक्रामक रणनीति बनाने के बाद भी कांग्रेस दहाई के अंक को पार नहीं कर पायी। उसकी गाड़ी केवल 99 पर अटक गई। यदि देश की जनता प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के विरुद्ध जनादेश देती, तो कांग्रेस की झोली भर जाती। जिस प्रकार 2014 में देश की जनता ने कांग्रेसनीत यूपीए सरकार के विरुद्ध जनादेश दिया था। कांग्रेस को बहुमत तो छोड़िए, बहुमत से आधी सीटें भी नहीं मिली हैं। इसके बाद भी वह अंहकार के शीर्ष पर विराजमान हो गई है। बीते एक दिन में इस प्रकार का वातावरण बनाया कि कांग्रेस सहित विपक्षी गठबंधन के नेताओं को जोड़-तोड़ से सरकार बनाने के सपने आने लगे लेकिन उनकी आँखों से पर्दा तब हटा जब सब एकसाथ बैठे। उन्हें ध्यान आया कि बहुत कोशिश करेंगे तब भी बहुमत का आंकड़ा पार करना आसान नहीं होगा। इसलिए सरकार बनाने के सवाल पर कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को कहना पड़ा कि “सही समय पर सही फैसला लेंगे”। लोकतंत्र और संविधान की दुहाई देनेवाले किस प्रकार से सत्ता पाने का सपना देख रहे हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश तो लगातार टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू और जेडीयू के नेता नीतीश कुमार को पुराने बयान याद दिलाकर उन्हें भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ने के लिए उकसा रहे हैं। अगर बयानों को ही देखना है तब जयराम रमेश को आम आदमी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और वामपंथी दलों के नेताओं के बयानों को देख लेना चाहिए। उद्धव ठाकरे और शरद पवार ने पूर्व में कांग्रेस को लेकर क्या-क्या कहा है, यह भी उन्हें पता ही होगा। जयराम रमेश भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी को आईना दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि उन्हें बहुमत नहीं मिला है, इसलिए उन्हें नैतिक रूप से सरकार नहीं बनानी चाहिए। तब जयराम रमेश बताएं कि पूर्व में कांग्रेस ने 145 और 206 सीटें पाकर भी सरकार क्यों बनायी थी? तब नैतिकता का तकाजा कहाँ गया था? यदि अभी एनडीए सरकार नहीं बनाए तो कौन बनाएगा? क्या कांग्रेस को बहुमत मिला है? क्या उसके गठबंधन को बहुमत मिला है? जबकि विपक्ष के गठबंधन में शामिल कई पार्टियां तो गठबंधन से बाहर रहकर स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ी थीं। इसके बाद भी इंडी गठबंधन को तो अकेले भाजपा से भी कम सीटें आई हैं। लेकिन इसके बाद भी कांग्रेस न जाने किस खुमारी में है। संभव है कि कांग्रेस के नेता इतना अधिक उत्साह इसलिए भी दिखा रहे हों ताकि एक के बाद एक पराजय से उसके कार्यकर्ताओं में निराशा न आ जाए। झूठी खुशी से ही सही, कार्यकर्ताओं का उत्साह तो बना रहे। परंतु, इस प्रकार से कांग्रेस का भला नहीं होगा। कांग्रेस को चाहिए कि वह बनावटी खुशी से बाहर निकले और ईमानदारी से अपनी पराजय का विश्लेषण करे।
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