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मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री का सराहनीय निर्णय

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने उज्जैन-इंदौर संभाग को धार्मिक-आध्यात्मिक सर्किट के रूप में विकसित करने का सराहनीय निर्णय लिया है। यह निर्णय मध्यप्रदेश के विकास को नयी ऊंचाईयों पर ले जाने के साथ ही उसे बड़ी पहचान देगा। यह सर्वविदित है कि उज्जैन-इंदौर संभाग सांस्कृतिक, धार्मिक एवं ऐतिहासिक रूप से समृद्ध क्षेत्र है। इस संभाग में दो ज्योतिर्लिंग प्रकाशमान हैं- महाकाल एवं ओंकारेश्वर। जिनके दर्शन के लिए देशभर से श्रद्धालु पहुँचते हैं। महाकाल लोक के निर्माण के बाद से तो उज्जैन आनेवाले श्रद्धालुओं की संख्या में कई गुना बढ़ोतरी हो गई है। इसी संभाग के मंदसौर में पशुपतिनाथ मंदिर, नलखेड़ा में बगुलामुखी माई का मंदिर, खंडवा में दादा धूनीवाले, इंदौर में खजराना गणेश मंदिर सहित अनेक और स्थान ऐसे हैं, जो धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व के स्थान है। उज्जैन तो वह पवित्र नगरी है, जहाँ सांदीपनी आश्रम में भगवान श्रीकृष्ण ने शिक्षा प्राप्त की। वहीं, ओंकारेश्वर में आदि शंकराचार्य ने आचार्य गोविंद भगवतपाद् से दीक्षा प्राप्त की। यह भूमि शिक्षा-दीक्षा की भूमि है। यह विज्ञान की भी भूमि है। उज्जैन भारतीय कालगणना का केंद्र है। अभी हाल ही में उज्जैन में वैदिक घड़ी स्थापित की गई है, जिसकी सबदूर चर्चा है। यह सुशासन के प्रतीक महाराजा विक्रमादित्य की नीति भूमि भी है। कुल मिलाकर कहना चाहिए कि यह भारतीय ज्ञान-परंपरा की भूमि है। इसलिए पिछले सिंहस्थ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रेरणा से कुम्भ मेले के प्राचीन स्वरूप को पुनर्जीवित करने के प्रयत्न वैचारिक कुंभ के आयोजन के रूप में किए गए। स्मरण रहे कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने उज्जैन-इंदौर संभाग को धार्मिक-आध्यात्मिक सर्किट के रूप में विकसित करने की रूपरेखा 2028 में आयोजित होनेवाले महाकुम्भ सिंहस्थ की तैयारियों की समीक्षा बैठक में रखी है। चूँकि महाकुम्भ में विशाल जनसमुदाय शामिल होता है, इसलिए उसकी तैयारियां तीन-चार वर्ष पहले ही प्रारंभ करनी होती हैं। विगत सिंहस्थ में सरकार ने उत्तम व्यवस्था की थी। सिंहस्थ के सफल और परिणाममूलक आयोजन के लिए प्रदेश की भाजपा सरकार की सराहना भी की गई थी। परंतु ध्यान आता है कि सिंहस्थ के लिए की जानेवाली व्यवस्थाएं आयोजन के बाद धीरे-धीरे लुप्त हो जाती हैं। यदि सरकार ने उज्जैन-इंदौर संभाग को धार्मिक-आध्यात्मिक सर्किट के तौर पर विकसित करने का पक्का मन बना लिया है, तब सिंहस्थ के लिए की जानेवाली व्यवस्थाओं को बड़ी परियोजना को ध्यान में रखकर स्थायी तौर पर किया जाना चाहिए। सिंहस्थ के लिए खड़ी की जा रही अधोसंरचना इस प्रकार की हो कि वह मोहन सरकार के धार्मिक-आध्यात्मिक सर्किट की अवधारणा को साकार करने में सहयोगी बने। अभी सरकार ने उज्जैन-इंदौर संभाग के लगभग सभी जिलों को सिंहस्थ कार्ययोजना में सम्मिलित किया है। इस कार्ययोजना के अनुसार संभाग में 18 हजार 840 करोड़ रुपये की लागत से 523 विकास कार्य कराए जाएंगे, जिसमें परिवहन की सुगम व्यवस्था, सड़कों का चौड़ीकरण, नवीन सड़कों का निर्माण, शिप्रा के घाटों का विस्तार, शिप्रा का शुद्धिकरण, आवास एवं पर्यटन स्थलों का विकास इत्यादि शामिल है। सरकार को चाहिए कि वह इन कार्यों की गुणवत्ता को सुनिश्चित करने के लिए एक तंत्र विकसित करे, जो निर्माण एजेंसियों के कार्य की निगरानी करे और उसकी गुणवत्ता को सुनिश्चित करे। यह व्यवस्था अभी भी है लेकिन देखने में आता है कि वह निष्प्रभावी है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने एक बड़ा निर्णय लिया है, वह अन्य संभागों के लिए उदाहरण बने, यह आवश्यक है।

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