राज्यसभा की 15 सीटों के लिए चुनाव के परिणाम बता रहे हैं कि चुनावी प्रबंधन में भारतीय जनता पार्टी बाकी सभी राजनीतिक दलों से बहुत आगे है। उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव नाक ऊंची करके घूमते रह गए और हिमाचल के मुख्यमंत्री सुक्खू के कारण कांग्रेस को तगड़ा झटका लग गया। वहीं, भाजपा ने दोनों ही राज्यों में राजनीतिक प्रबंधन करके दो अतिरिक्त सीटें जीत लीं। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले विपक्षी दलों को लगे ये झटके उनके कार्यकर्ताओं के मनोबल को चोट पहुँचाएंगे जबकि शानदार जीत से भाजपा का उत्साह बढ़ गया है। वैसे तो राज्यसभा के चुनाव के प्रभाव का सीधा संबंध लोकसभा चुनाव से नहीं जुड़ता है लेकिन एक मनोवैज्ञानिक बढ़त अवश्य ही भाजपा को मिली है। इससे एक और बात ध्यान में आती है कि विपक्षी दल अपने नेताओं को एकजुट रखने और उनका विश्वास बनाए रखने में पूरी तरह असफल साबित हो रहे हैं। मतदान के दौरान अखिलेश यादव ने जिस प्रकार से क्रॉस वोटिंग की आशंका पर बयान दिया है, उससे उनकी हताशा साफ झलक रही थी। वहीं, कथित तौर पर देश को जोड़ने के लिए यात्रा पर निकले राहुल गांधी भी अपनी पार्टी को ही नहीं जोड़ पा रहे हैं। आए दिन कोई न कोई बड़ा नेता कांग्रेस को छोड़कर जा रहा है। सपा और कांग्रेस के विधायकों ने भाजपा के पक्ष में मतदान केवल किसी कथित दबाव के करण नहीं दिया अपितु उसके पीछे अनेक कारण हैं। प्रत्याशियों का चयन भी एक प्रमुख वजह है। सपा ने जब राज्यसभा के लिए अपने प्रत्याशी घोषित किए थे, तब से ही बगावत के सुर बुलंद होने लगे थे। इसी प्रकार, हिमाचल में भाजपा के विजयी प्रत्याशी हर्ष महाजन एक समय में कांग्रेस के ही कद्दावर नेता थे। लेकिन कांग्रेस ने उनकी अनदेखी की तो वे भाजपा में चले आए। कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने क्षमतावान नेताओं की अनदेखी करके अपनी ही पार्टी का नुकसान किए है। आज अनेक स्थानों पर कांग्रेस को उसके ही पूर्व नेताओं से चुनौती मिल रही है। बहरहाल, हिमाचल कांग्रेस में हुई बड़ी बगावत से अब वहाँ सत्ता उलट-पलट की अटकलें भी तेज हो गई हैं। ठंड और बर्फबारी के बाद भी वहां राज्यसभा चुनाव के परिणाम के चलते सियासी गर्माहट साफ दिख रही है। कांग्रेस और भाजपा के दो उम्मीदवारों के बीच आसान एवं एकतरफा दिख रहा मुकाबला, कब कांटे का हो गया, यह बात स्वयं मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू भी नहीं समझ पाए। वह तो यह भी नहीं समझ पाए कि कब उनके नाक के नीचे से कांग्रेस के छह विधायक खिसक गए और भाजपा को वोट कर आए। तीन निर्दलीय विधायकों का समर्थन भी भाजपा को मिल गया। कुल मिलाकर 40-25 से एक तरफ दिख रहा मुकाबला 34-34 तक पहुँच गया। हिमाचल में कांग्रेस की यह स्थिति देखकर न केवल मुख्यमंत्री सुक्खू की नींद उड़ गई है अपितु केन्द्रीय नेतृत्व भी भौंचक है। लेकिन कांग्रेस करे भी तो क्या, क्योंकि उसके प्रमुख नेता तो एक बार फिर महत्वपूर्ण अवसर पर विदेश यात्रा पर चले गए हैं। राज्यसभा चुनाव के परिणाम से कर्नाटक से लेकर उत्तरप्रदेश और हिमाचल तक सभी राजनीतिक दलों की लोकसभा चुनाव की तैयारियां भी दिख गई हैं। सबको स्पष्ट दिख रहा है कि भाजपा की तैयारियां अधिक सुदृढ़ और सुनियोजित हैं।
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