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छोटी जीत पर ‘बड़े बोल’

लोकसभा चुनाव में आंशिक सफलता मिलने से कांग्रेस का उत्साह इतना अधिक है कि वह अपनी स्थिति का वास्तविक मूल्यांकन नहीं कर पा रही है। 543 में केवल 99 सीटें जीतने पर कांग्रेस के नेता एवं प्रवक्ता इस कदर आक्रामक हैं कि मानो उन्होंने कोई बड़ी जीत प्राप्त कर ली हो। कहीं यह खुशफहमी कांग्रेस को भारी न पड़ जाए। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को जो मजबूती मिली है, उसका मूल्यांकन करके संगठन को मजबूती देने का प्रयास करना चाहिए। लेकिन कांग्रेस के नेता कभी भाजपा को, तो कभी एग्जिट पोल एजेंसी और कभी मीडिया को निशाना बना रहे हैं। कांग्रेस नेता केवल भाजपा पर ही हमलावर नहीं हैं अपितु पत्रकारों पर झूठे आरोप लगाकर उनकी छवि खराब करने के प्रयास कर रहे हैं। इंडिया टीवी के पत्रकार रजत शर्मा जैसे सौम्य व्यक्तित्व पर कांग्रेस की प्रवक्ता ने बहुत ही ओछा आरोप लगाया है। प्रथम दृष्टया वीडियो में कहीं भी अभद्र भाषा का उपयोग करते हुए रजत शर्मा दिखायी नहीं दे रहे और कांग्रेस प्रवक्ता का आरोप है कि उन्हें गाली दी गई। वैज्ञानिक जाँच में सब दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। जब यह सच सामने आएगा कि रजत शर्मा ने कोई गाली नहीं दी, तब क्या कांग्रेस की प्रवक्ता और कांग्रेस के अन्य नेता एक पत्रकार की छवि खराब करने के लिए सार्वजनिक माफी माँगेंगे? ‘छोटी जीत पर बड़े बोल’ के मामले में कांग्रेस के मुख्य नेता राहुल गांधी के हाल के बयानों को भी देखना चाहिए। बीते दिन ही उन्होंने कहा कि यदि प्रियंका गांधी काशी से चुनाव लड़ती तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 2-3 लाख मतों से हारते। अब सवाल यह है कि प्रियंका गांधी वाड्रा को लड़ने से किसने रोका था? यदि राहुल गांधी को प्रियंका गांधी पर इतना अधिक विश्वास था, तब उन्हें अपने सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी के विरुद्ध उन्हें मैदान में उतारना ही चाहिए था। जीत के प्रति आश्वस्त होते हुए भी दमदार प्रत्याशी नहीं उतारकर राहुल गांधी ने कांग्रेस पार्टी के लिए एक सीट का नुकसान किया है। किसी भी पार्टी में इस प्रकार के रणनीतिकार हों, तब उस पार्टी का विकास कैसे हो सकता है? जो राहुल गांधी स्वयं अमेठी में स्मृति ईरानी का मुकाबला करने से पीछे हट गए हों, उन्हें दूसरों की हार-जीत की कल्पना नहीं करना चाहिए। अमेठी के कांग्रेस के कार्यकर्ता राहुल गांधी को चुनाव लड़ने के लिए आमंत्रित करते रह गए लेकिन पिछली बार मिली पराजय का दर्द उनके कदमों में बंधन की तरह पड़ गया। अपनी जीत को सुनिश्चित करने के लिए उन्होंने रायबरेली की राह पकड़ना उचित समझा। जबकि उस सीट पर जनता प्रियंका गांधी वाड्रा को प्रत्याशी के रूप में देख रही थी। परंतु माँ की राजनीतिक विरासत पर बेटी को उत्तराधिकारी कैसे बनाया जा सकता था? कांग्रेस के लिहाज से भी अच्छा होता, यदि राहुल गांधी अमेठी से और प्रियंका गांधी रायबरेली से मैदान में उतरतीं। बहरहाल, जब कांग्रेस के पास अवसर था, तब राहुल गांधी ने अमेठी और रायबरेली तो छोड़िए काशी की सीट पर भी प्रियंका गांधी वाड्रा को चुनाव नहीं लड़ाया। अब जबकि सिर्फ खयाली पुलाव ही पकाए जा सकते हैं, तब वे बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हैं। यह ठीक बात है कि अपने कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ाने के लिए कोई भी राजनेता इस तरह के दावे कर सकता है लेकिन जिन्होंने प्रियंका गांधी वाड्रा को कहीं से भी चुनाव नहीं लड़ने दिया हो, उन्हें कम से कम अब उनको प्रत्याशी के रूप में प्रस्तुत नहीं करना चाहिए। यदि वाकई राहुल गांधी प्रियंका गांधी को प्रत्याशी बनाने के मामले में ईमानदार हैं तब उन्हें 2029 में अपनी हसरत पूरी कर लेनी चाहिए। बहरहाल, यह राहुल गांधी का एकाधिकार है कि वे क्या दावे करते हैं, यहाँ इस बात की चर्चा का केवल इतना ही पक्ष है कि अवसर बीत जाने के बाद कही गई बातों का कोई अर्थ नहीं होता। उससे कहीं अधिक अच्छा होगा कि कांग्रेस अपनी स्थिति का ईमानदारी से मूल्यांकन करें।

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