भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनाव के लिए अपने उम्मीदवारों की पहली सूची जारी करके बड़ी जीत का संदेश देने का प्रयास किया है। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा था कि भाजपा बड़े पैमाने पर चेहरे बदलेगी। नये चेहरों को अवसर दिया जाएगा। सत्ता में रहनेवाला राजनीतिक दल ऐसा इसलिए भी करता है ताकि ‘एंटी-इंकम्बेंसी’ के प्रभाव को कम किया जा सके लेकिन भाजपा ने अपनी पहली सूची से स्पष्ट कर दिया कि मोदी सरकार को लेकर ‘एंटी-इंकम्बेंसी’ नहीं बल्कि ‘प्रो-इंकम्बेंसी’ का वातावरण है। भाजपा ने अपने उन सभी चेहरों को फिर से अवसर दिया है, जिनके जीतने की संभावनाएं अधिक हैं। भाजपा ने केवल 20 प्रतिशत सांसदों का टिकट काटा है। 195 में से 115 नेताओं को फिर से मैदान में उतारा है यानी 60 प्रतिशत उम्मीदवारों पर फिर से भरोसा दिखाया है। कुछ राज्यों में तो 100 प्रतिशत पुराने नेताओं को ही प्रत्याशी बनाया है। इनमें उत्तराखंड, अरुणचाल प्रदेश, दमन और दीव, जम्मू-कश्मीर और गोवा शामिल हैं। जबकि उत्तरप्रदेश में 51 में से 46 नेताओं को फिर से विजय सुनिश्चित करने के लिए रणभूमि सौंपी है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि भाजपा ने जीतने वाले नेताओं को ही आगे किया है। यदि भाजपा की पहली सूची का विश्लेषण किया जाए तो ध्यान आता है कि भाजपा ने अपनी सरकार के 34 केंद्रीय मंत्रियों को टिकट दिया है। यानी भाजपा संदेश देना चाहती है कि जनता मोदी सरकार और उसके मंत्रियों के कामकाज से प्रसन्न है। इस सूची में 28 महिलाएं, 27 अनुसूचित जाति, 18 अनुसूचित जनजाति और 57 अन्य पिछड़ा वर्ग के नाम हैं। भाजपा ने केरल से एक मुस्लिम प्रत्याशी को भी टिकट दिया है। अकसर भाजपा पर आरोप लगाए जाते हैं कि वह मुस्लिम नेताओं को टिकट नहीं देती है। हालाँकि यह आरोप तथ्यहीन है। भाजपा ने राष्ट्रीय विचार के कई मुस्लिम नेताओं को आगे बढ़ाया है और स्थापित भी किया है। अब मुस्लिम समुदाय के सामने बड़ी जिम्मेदारी है कि वह केरल से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले मुस्लिम प्रत्याशी को विजयी बनाएं। बहरहाल, भाजपा ने अपनी पहली सूची से सबको साथ लेकर चलने का संदेश भी दिया है। वहीं, सबसे पहले उम्मीदवारों की सूची जारी करके भाजपा ने विपक्षी दलों पर मनोवैज्ञानिक बढ़त भी हासिल कर ली है। यह विडम्बना ही है कि विपक्ष भाजपा से लड़ना चाहता है लेकिन अभी तक वह अपने उम्मीदवार ही तय नहीं कर सका है। तथाकथित विपक्षी गठबंधन में तो सब जगहों पर सीटों के बंटवारे को लेकर ही स्थिति स्पष्ट नहीं हो सकी है। भाजपा से मुकाबला करने के लिए विपक्षी दल के उम्मीदवारों को अधिक मेहनत और संपर्क करना होगा लेकिन यह तब संभव है जब पर्याप्त समय रहते उम्मीदवारों की घोषणा हो। कांग्रेस की अदूरदर्शी सोच का उदाहरण है, चुनावी तैयारियों के समय में तथाकथित भारत जोड़ो न्याय यात्रा का संचालन। उस पर भी राहुल गांधी के विदेशी दौरे या अन्य जगहों पर प्रवास के कारण यात्रा बीच-बीच में रोकी जा रही है। यदि कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दल अपने उम्मीदवारों की घोषणा करने में पिछड़ते हैं, तब वे भाजपा से चुनावी दौड़ में बहुत पीछे रह जाएंगे। देखना होगा कि भाजपा द्वारा घोषित प्रत्याशियों के मुकाबले कांग्रेस की क्या रणनीति रहेगी।
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