उत्तरकाशी की सिलक्यारा-डंडालगांव टनल में फंसे 41 मजदूरों को सकुशल बाहर निकालकर प्रशासन ने राहतकार्य में बड़ी सफलता प्राप्त की है। विश्वभर के प्रमुख बचाव कार्यों में इस अभियान को भी शामिल किया जा सकता है। इस बचावकार्य में शामिल रही सभी संस्थाओं के साथ ही विशेष धन्यवाद के पात्र वे 12 रैट माइनर हैं, जिन्होंने साहस दिखाते हुए देशी तकनीक से अभियान को सफल बनाया। उन श्रमिकों के धैर्य, संयम और जीवटता की भी सराहना करनी चाहिए, जो 17 दिन तक उस अंधेरी सुरंग में एक विश्वास के साथ डटे रहे। उन्होंने सरकार और उसके प्रयासों पर भरोसा जताया। एक भी दिन अपना धैर्य नहीं खोया। अपितु एक स्थिति के बाद तो उन्होंने प्रशासन के सामने प्रस्ताव भी रखा कि यदि अंदर से किसी प्रकार के सहयोग की आवश्यकता हो, तो उन्हें बता दिया जाए, वे यहाँ से काम करने में सक्षम है। यह आत्मविश्वास ही उन्हें कठिनतम परिस्थितियों से निकालकर लाया है। एक तरह से हम कह सकते हैं कि यह श्रमिकों का नया जीवन है। उनके परिवार ने सही मायनों में 28 नवंबर को दीपावली मनायी है क्योंकि उनके अपने राम 17 दिन का ‘सुरंगवास’ काटकर वापस लौटे हैं। उत्तराखंड में फंसे इन श्रमिकों के लिए समूचे भारत में प्रार्थनाओं का दौर चल रहा था। यह बताता है कि हमारा देश किस प्रकार एक ही धागे से जुड़ा हुआ है। प्रत्येक दिन आम लोगों के बीच यह चर्चा होती थी कि ये श्रमिक आज बाहर आ पाएंगे या नहीं? क्योंकि अभियान आसान भी नहीं था। इसलिए ही मजदूरों को बाहर निकालने में 17 दिन का समय लगा। हाँ, संतोषजनक बात यह है कि सरकार ने किसी भी प्रकार के दबाव में आकर जल्दबाजी नहीं की। तकनीक, विज्ञान और विश्वास के आधार पर जो उचित उपाय थे, उन्हें ही अपनाया गया। भले ही कुछ प्रयास असफल हुए फिर भी प्रशासन ने उतावलापन नहीं दिखाया। विपक्षी दलों ने अवश्य ही इस घटनाक्रम में विवाद खड़ा करने का प्रयास किया लेकिन उसका भी प्रभाव प्रशासन ने बचावकार्य पर नहीं पड़ने दिया। प्रशासन स्वतंत्रता से काम कर सका तो इसका श्रेय भी अंदर फंसे श्रमिकों को जाता है, जिन्होंने प्रशासन को पूरा सहयोग दिया। इसलिए जब श्रमिक सुरंग से बाहर निकले तब उनके चेहरे पर हताशा नहीं थी, बल्कि एक मुस्कान थी, आत्मविश्वास था, विजिगीषु वृत्ति का भाव था। उन्होंने सरकार के प्रयासों की सराहना की। उत्तराखंड की धामी सरकार और केंद्र की मोदी सरकार का धन्यवाद दिया। देर रात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी सभी मजदूरों से फोन पर बात की और उनके आत्मविश्वास की प्रशंसा की। देश के मुखिया का इस तरह बात करना, निश्चित ही श्रमिकों का साहस बढ़ाएगा। उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार लगातार इस मामले पर नजर बनाए हुई थी। केंद्रीय मंत्री वीके सिंह तो आखिरी के दिनों में घटनास्थल पर ही रुक गए। इसी तरह उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सराहना करनी होगी कि उन्होंने श्रमिकों को बाहर निकालने के लिए हरसंभव प्रयास किया। किसी प्रकार की अव्यवस्था निर्मित नहीं होने दी। उन्होंने भी अपना अस्थायी कार्यालय घटनास्थल पर ही बना लिया था। कुल मिलाकर कहना होगा कि राज्य और केंद्र सरकार कैसे समन्वय बनाकर बेहतर परिणाम दे सकती हैं, इस बात का भी सर्वोत्तम उदाहरण यह अभियान है।
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