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प्रलोभन की राजनीति पर लगे रोक

उत्तरप्रदेश से लेकर कर्नाटक तक कांग्रेस कार्यालयों के सामने जिस प्रकार से महिलाओं की कतार लग रही है, उसको चुनाव आयोग और न्यायपालिका को गंभीरता से लेना चाहिए। राजनीतिक दलों की ओर से मतदाताओं को अपने पक्ष में मतदान करने के लिए नकद आर्थिक सहायता का प्रलोभन देने का अभ्यास बढ़ गया है। इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने महिलाओं और बेरोजगार युवाओं को मासिक आर्थिक सहायता देने की गारंटी देकर उन्हें अपने पक्ष में करने का प्रयास किया था। कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने तो अपनी चुनावी सभाओं में पूरे विश्वास से कहा कि उनकी सरकार बनेगी तो 5 जून से महिलाओं और बेरोजगारों के खाते में ‘खटाखट-खटाखट’ पैसे आएंगे। वहीं, कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने प्रचार अभियान के दौरान महिलाओं एवं युवाओं को समझाया कि कांग्रेस को जिताने पर उनके खातों में पैसा आने लगेगा। महिलाओं को विश्वास दिलाने के लिए उनसे ‘कांग्रेस गारंटी कार्ड’ भी भरवाया गया। कांग्रेस की ओर से मतदाताओं के बीच वितरित किए गए गारंटी कार्ड में यह भी दावा किया गया कि युवा न्याय के तहत एक लाख रुपये वेतन मिलेगा। हर शिक्षित युवा की पहली नौकरी पक्की होगी। संभवत: कांग्रेस के उसी प्रचार अभियान का परिणाम है कि महिलाओं, विशेषकर मुस्लिम महिलाओं ने कांग्रेस के पक्ष में जमकर मतदान किया। जिसका परिणाम उत्तरप्रदेश में दिखायी दे रहा है।
पैसों के लालच में मतदान करनेवाली महिलाएं अब कांग्रेस के कार्यालयों पर कतार लगाकर उस गारंटी फॉर्म को दिखा रही है, जिसमें उन्हें मासिक 8500 रुपये दिए जाने का वादा किया गया है। चुनाव आयोग और सर्वोच्च न्यायालय को इस मामले में संज्ञान लेना चाहिए। जरा सोचिए कि मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए उन्हें नकद राशि देने की गारंटी देना लोकतंत्र और संविधान के हित में है क्या? क्या इस प्रकार से चुनाव प्रक्रिया प्रभावित नहीं होगी? यदि समय रहते इस प्रकार के प्रयोगों को रोका नहीं गया, तब यह और बढ़ जाएगा। यह कहने में कोई संकोच नहीं कि आर्थिक सहायता के लोभ में एक बड़ी आबादी वास्तविक मुद्दों से मुंह मोड़कर मतदान करती है। इस प्रकार का मतदान देश के विकास की प्रक्रिया में बाधक बन सकता है। सोशल मीडिया पर चल रहे वीडियो और कांग्रेस के गारंटी कार्ड को आधार बनाकर भारतीय जनता पार्टी को भी न्यायालय में याचिका दायर करनी चाहिए। प्रलोभन देकर जनता को भ्रमित करनेवाली राजनीति पर रोक लगाकर ही सही अर्थों में लोकतंत्र और संविधान की रक्षा की जा सकती है। कांग्रेस कार्यालयों पर लग रही भीड़ साफ संकेत करती है कि ‘खटाखट योजना’ के नाम पर कांग्रेस ने मतदाताओं को गुमराह किया। चुनाव आयोग या फिर न्यायालय को स्वतंत्र समिति बनाकर जाँच करानी चाहिए कि मतदाताओं को किस प्रकार झूठ बोलकर भ्रमित किया गया? जिन सीटों पर कांग्रेस जीती है, वहाँ उसके पक्ष में हुए मतदान के वास्तविक कारण क्या हैं? अगर मतदाता को किसी प्रकार से झूठ बोलकर या भ्रमित करके अपने पक्ष में किया गया है, तब ऐसी स्थिति के बारे में न्यायालय को विचार करना चाहिए। प्रलोभन की राजनीति भारतीय लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं है।

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