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फिर परिवारवाद

जैसा कि माना जा रहा था कि कांग्रेस के मुख्य नेता राहुल गांधी केरल की लोकसभा सीट वायनाड से त्यागपत्र देंगे और रायबरेली का प्रतिनिधित्व बरकरार रखेंगे। कांग्रेस ने वैसा ही निर्णय लिया है। उत्तरप्रदेश में कांग्रेस का अस्तित्व बचाए रखने एवं पार्टी को विस्तार देने के लिए यह निर्णय अपेक्षित भी था। भले ही भाजपा यह कहे कि राहुल गांधी ने केरल के नागरिकों के साथ धोखा किया है। उन्होंने आखिर तक यह छिपाए रखा कि वे दो स्थानों से चुनाव लड़ेंगे। कांग्रेस केरल को एटीएम समझ रही है। भाजपा के यह आरोप एक हद तक तार्किक भी हैं। राहुल गांधी ने यदि पहले ही दो स्थानों से चुनाव लड़ने की घोषणा की होती, तब संभव है कि वायनाड की जनता किसी ओर को चुन लेती। यह अवसर उसके पास उपचुनाव में भी रहेगा। परंतु, सच यह है कि वायनाड का जनसंख्या विभाजन जिस प्रकार का है, उसमें कांग्रेस के लिए यह सीट जीतना आसान है। मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक, वायनाड जिले में जनसंख्या लगभग 49.5 प्रतिशत हिंदू और 21 प्रतिशत क्रिश्चियन और 28.8 प्रतिशत मुसलमान हैं। जब परिसीमन में बनाई गई वायनाड लोकसभा सीट की बात की जाए तो क्षेत्र में 48 प्रतिशत मुस्लिम और 41 प्रतिशत हिंदू मतदाता हैं। क्रिश्चियन मतदाताओं की अनुमानित जनसंख्या 15 प्रतिशत आंकी जाती है। इसलिए जब कांग्रेस की ओर से वायनाड से प्रियंका गांधी वाड्रा को चुनावी प्रत्याशी घोषित कर दिया गया है, तब एक बार फिर कांग्रेस परिवारवाद के आरोपों में घिर गई है। एक सुरक्षित सीट का प्रतिनिधित्व किसी स्थानीय कांग्रेसी नेता को न सौंपकर प्रियंका गांधी को वहाँ से उम्मीदवार बनाना, इन आरोपों की पुष्टी करता है। एक प्रकार से यह भी कहा जा सकता है कि कांग्रेस ने पारिवारिक गढ़ के तौर पर अब तीन स्थान विकसित कर लिए हैं। वायनाड की सीट पर उन कांग्रेसी नेताओं/कार्यकर्ताओं का दावा अधिक बनता है, जो वहाँ जमीनी स्तर पर पार्टी के विस्तार एवं उसकी मजबूती के लिए संघर्ष करते हैं। तीन दशक से राजनीति में सक्रिय प्रियंका गांधी वाड्रा अपना पहला चुनाव लड़ने जा रही हैं, जिसमें उनकी जीत लगभग सुनिश्चित है। यदि सबकुछ ठीक रहा तो आनेवाले समय में नेहरू परिवार के तीनों सदस्य संसद में दिखायी देंगे। माँ- सोनिया गांधी राज्यसभा की सांसद हैं। उनका बेटा राहुल गांधी उनकी ही सीट रायबरेली से लोकसभा में सांसद है और बेटी प्रियंका गांधी वाड्रा वायनाड से लोकसभा सांसद हो जाएंगी। ऐसी स्थिति में कौन नहीं कहेगा कि कांग्रेस में नेहरू परिवार का वर्चस्व है। पार्टी में इस परिवार की चिंता सर्वोपरि है। कांग्रेस के इस निर्णय से कम्युनिस्ट पार्टियों को भी झटका लगा होगा। उल्लेखनीय है कि केरल में एक-दूसरे के लिए विरुद्ध चुनाव लड़नेवाली कांग्रेस एवं कम्युनिस्ट पार्टियां केंद्र में आईएनडीआईए का हिस्सा हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान सीपीआई की नेता एवं महासचिव डी राजा की पत्नी एनी राजा को राहुल गांधी ने बड़े अंतर से पराजित किया था। कम्युनिस्टों ने शुरू से वायनाड से राहुल गांधी के चुनाव लड़ने का विरोध किया था। अब एक बार फिर कांग्रेस ने नेहरू परिवार के वंश को वायनाड से उम्मीदवार बनाकर राष्ट्रीय राजनीति में अपनी सहयोगी कम्युनिस्ट पार्टियों को झटका दिया है। कांग्रेस चाहती तो एनी राजा के लिए यह सीट छोड़ सकती थी। इससे कांग्रेस के नेतृत्व के प्रति अन्य विपक्षी दलों का विश्वास भी बढ़ता। परंतु कांग्रेस को गठबंधन की राजनीति से अधिक ‘प्रथम परिवार’ की चिंता थी।

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