विपक्षी गठबंधन आईएनडीआईए में शामिल विभिन्न राजनीतिक दलों की ओर से जिस प्रकार अपने-अपने नेता को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाये जाने की मांग की जा रही है, उससे कहावत ‘एक अनार-सौ बीमार’ ही चरितार्थ होती दिख रही है। कांग्रेस के नेता राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के सबसे उपयुक्त उम्मीदवार के तौर पर प्रस्तुत करते हैं, तो विपक्षी दलों को राहुल गांधी की उम्मीदवारी स्वीकार नहीं होती और वे अपने-अपने नेता का नाम आगे बढ़ा देते हैं। अपने सिद्धांतों को छोड़कर कांग्रेस और राकांपा के साथ सरकार में गए उद्धव ठाकरे को उनकी पार्टी प्रधानमंत्री बनने देखना चाहती है। यह और बात है कि एक मुख्यमंत्री एवं पार्टी अध्यक्ष के रूप में वे बुरी तरह असफल रहे हैं। वहीं, आम आदमी पार्टी ने तो इस गठबंधन के लिए असहज स्थितियां पैदा करने का जैसे दायित्व ले रखा है। आगामी विधानसभा चुनावों में स्वतंत्र पार्टी के रूप में मैदान में उतरने का संकेत करके पहले ही उसने कांग्रेस के कान खड़े कर दिए हैं, अब अरविन्द केजरीवाल को प्रधानमंत्री पद का सबसे योग्य उम्मीदवार बताया जाने लगा है। राकांपा के शरद पवार की स्थिति भी विपक्षी गठबंधन को कमजोर करनेवाली है। एक ओर शरद पवार प्रधानमंत्री पद के दावेदार बताए जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर उन्हें उनके ही भतीजे अजीत पवार ने उलझा कर रख दिया है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भले ही किसी भी पद के दावेदार के रूप में स्वयं को प्रस्तुत करने से बच रहे हों लेकिन उनकी स्थिति ‘मन-मन भावे, मुडी हिलावे’ कहावत के पात्र जैसी है, जो मन ही मन प्रधानमंत्री और गठबंधन का संयोजक बनना चाहता है लेकिन दिखाने के लिए सिर हिलाकर इनकार कर रहा होता है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कहाँ पीछे रहतीं, उन्हें भी प्रधानमंत्री पद का दावेदार बताया जा रहा है। इस प्रतीक्षा सूची या कहें कि दावेदारी में और भी अनेक नाम शामिल हैं। सोचिए, प्रधानमंत्री पद के लिए दावेदारी की यह स्थिति है, तब सीटों के बंटबारे के लिए क्या हालात बनेंगे? दरअसल, इस गठबंधन का कोई ठोस साझा कार्यक्रम नहीं है। गठबंधन में शामिल सभी 26 राजनीतिक दल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को रोकने के नाम पर एकसाथ आ गए हैं। भारतीय राजनीति का इतिहास साक्षी है कि इस प्रकार के गठबंधन लंबे नहीं चल पाते हैं। बहरहाल, आईएनडीआईए गठबंधन की दो दिवसीय बैठक मुंबई में चल रही है, जिसके परिणाम आज सामने आ सकते हैं। उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विपक्षी गठबंधन आईएनडीआईए की पिछली बैठक को कट्टर भ्रष्टाचारियों का सम्मेलन करार दे चुके हैं। उनका कहना गलत भी नहीं है क्योंकि गठबंधन में शामिल दलों के नेताओं के नामों पर नजर घुमाएंगे तो पाएंगे कि इनमें कई ऐसे हैं जो घोटाले या अन्य मामलों का सामना कर रहे हैं तो कई ऐसे भी हैं जोकि जमानत पर बाहर चल रहे हैं। मंच पर बैठे नेताओं की तस्वीरें देखते जाइये और उनसे जुड़े मामलों के बारे में खोजबीन करते जाइए, ध्यान आ जाएगा कि ये सब एकसाथ क्यों आ गए हैं? देश में चल रही भ्रष्टाचार विरोधी कार्रवाईयों का विरोध अकसर ये नेता एवं दल एकसाथ करते ही हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने इस गठबंधन को ‘घमंडिया गठबंधन’ का नाम भी दिया है। बीते दिन बसपा प्रमुख मायावती ने कहा भी कि जो इनके साथ हैं, उन्हें ही ये सेकुलर मानते हैं बाकी सब पर अनेक प्रकार के आरोप लगाए जाते हैं। उनकी यह बात सत्य सिद्ध हो गई। जब उन्होंने आईएनडीआईए गठबंधन का हिस्सा होने से मना कर दिया तो कांग्रेस की ओर से उन पर जोरदार हमले किए जाने लगे हैं। यानी एक दिन पहले तक जिन्हें गठबंधन का हिस्सा बनाने के प्रयास किए जा रहे थे, उन्हें ही अब भला-बुरा कहना शुरू कर दिया है। बहरहाल, देखना होगा कि अपनी मुंबई बैठक के बाद किसी ठोस रणनीति पर यह गठबंधन पहुँच पाता है या नहीं?
73