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भारत-बांग्लादेश के रिश्ते और मजबूत

एशिया में अपना दबदबा बनाने के लिए चीन लगातार प्रयासरत है। श्रीलंका से लेकर नेपाल तक को वह अपनी ओर खींचने का प्रयास कर रहा है। यही प्रयास पिछले कुछ समय से उसने बांग्लादेश के साथ शुरू किए हैं। लेकिन भारत की कूटनीति, विदेश नीति एवं पड़ोसी देशों के साथ आत्मीय संबंध चीन की विस्तारवादी सोच को सफल नहीं होने देते हैं। एक बार फिर भारत ने चीन के मंसूबों पर पानी फेर दिया है। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की दो दिवसीय भारत यात्रा ने दोनों देशों के रिश्तों के विश्वास को न केवल मजबूत किया है बल्कि दोनों देशों के आपसी संबंधों में दरार डालने की कोशिश कर रही ताकतों को आईना भी दिखाया है। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच 10 समझौतों और सहमतिपत्रों पर हस्ताक्षर हुए हैं। इन समझौतों में तीस्ता नदी के संरक्षण और प्रबंधन पर भारत द्वारा तकनीकि दल भेजे जाने के प्रस्ताव पर बनी सहमति विशेष रूप से उल्लेखनीय है। यह सहमति भारत के पड़ोसी देशों में अपना दखल बढ़ाने की चीनी प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण मानी जा रही है। तीस्ता नदी जल बंटवारा दोनों देशों के बीच एक जटिल मुद्दा माना जाता रहा है। वर्ष 2011 में ही दोनों देशों के बीच तीस्ता जल बंटवारे के एक सूत्र पर सहमति बन गई थी, लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के विरोध के चलते उस पर बात आगे नहीं बढ़ सकी। इस पृष्ठभूमि में चीन ने 2020 में तीस्ता नदी के प्रबंधन और संरक्षण में दिलचस्पी दिखानी शुरू की। इससे जुड़ी भारत की चिंताओं के संदर्भ में मामले की संवेदनशीलता को सभी पक्ष समझते थे। लेकिन मुद्दे के समाधान में कोई पहलकदमी नहीं हुई। लेकिन पिछले साल दिसंबर में ढाका में चीन के राजदूत ने फिर से इस मामले को उठाया। इस बार चीन ने बांग्लादेश के सामने एक संशोधित प्रस्ताव भेजा, जिसमें लागत पहले के मुकाबले कम दिखाई गई थी। श्रीलंका, नेपाल, मालदीव जैसे देशों के उदाहरणों की रोशनी में देखें तो चीन का यह रुख नया नहीं था। लेकिन बांग्लादेश के साथ भारत के करीबी रिश्तों के मद्देनजर तीस्ता जल बंटवारे को लेकर उभरी असहमति ऐसी नहीं थी कि उससे दोनों देशों के बीच संदेह और अविश्वास की गुंजाइश बनती। स्वाभाविक ही दोनों पक्षों ने समय रहते अलग-अलग स्तरों पर द्विपक्षीय बातचीत के जरिए अपनी इस समझ को मजबूती दे दी कि साझा हितों से जुड़े मसलों पर तीसरे पक्ष को प्रवेश करने देना ठीक नहीं। दोनों देशों की यही साझा सोच तीस्ता नदी के संरक्षण और प्रबंधन के मसले पर भारत के तकनीकि दल के बांग्लादेश जाने पर बनी सहमति में नजर आती है। भारत का तकनीकि दल इस सवाल पर भी विचार करेगा कि मानसून से मिलने वाले अतिरिक्त पानी के रखरखाव के लिए किसी जलाशय के निर्माण की वास्तव में जरूरत है भी या नहीं। समझा जाता है कि चीन की ओर से बांग्लादेश को यही प्रस्ताव किया गया था। लेकिन भारत की सक्रियता और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की समझदारी ने इस मामले में चीन को किनारे कर दिया है। उम्मीद है कि बांग्लादेश का नेतृत्व आगे भी इसी सोच के साथ आगे बढ़ेगा। दोनों देशों के बीच आपसी रिश्ते में विश्वास और सहयोग बना रहे, यह दोनों देशों के लिए ही बेहतर है। चीन सहायता के नाम पर बाद में किस प्रकार का बर्ताव करता है, यह समझने के लिए श्रीलंका, नेपाल और पाकिस्तान की ओर देख लेना चाहिए।

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