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युवा मतदाता अपने अधिकार के प्रति संवेदनशील

  • डॉ. निशा शर्मा
    चुनाव में 18 वर्ष के ऊपर के सभी मतदाता अपने मत का प्रयोग करते ही हैं परन्तु हम सभी जानते हैं कि भारत युवाओं का देश है, यंगिस्तान कहे जाने वाले अपने भारत में आज लगभग 66% युवा मतदाता हैं | मतदाताओं का ये प्रतिशत किसी भी राष्ट्र की दशा और दिशा बदलने के लिए पर्याप्त है | आज भारत का युवा पहले के मुकाबले अपने राष्ट्र के प्रति और अधिक जागरूक और सक्रिय हो गया है | इसका अंदाजा अपने इर्द गिर्द हो रही कुछ घटनाओं को देखकर लगाया जा सकता है | उदाहरण के लिए जैसे गत वर्ष महिला समन्वय की तरफ से ब्रज प्रान्त में महिला सम्मलेन और इस वर्ष उसी क्रम में तरुणी और युवा सम्मेलनों का आयोजन कई स्थानों पर कराया गया था |
    सम्मेलनों में संख्या विशेषकर तरुणियों की बढ़ती संख्या इस बात की ओर इशारा तो कर रही थी कि कहीं न कहीं हमारा युवा मतदाता अपने राष्ट्र की उन्नति को लेकर बेहद संवेदनशील रवैया अपना रहा है | फैशन, कैरियर, टेक्नोलॉजी के साथ अब भारत का युवा अपनी संस्कृति और राष्ट्र के हित को लेकर भी जागरूक है | इस बात पर पक्की मुहर तब लग गयी जब चुनाव आयोग ने इस वर्ष के आंकड़े जारी किये और उसमे मतदाता सूची के पुनरीक्षण में स्पष्ट किया गया कि 18 से 29 साल के आयु वर्ग में 2.63 करोड़ नये मतदाताओं ने पंजीकरण कराया है। इसमें भी महिला मतदाताओं की संख्या पुरुष मतदाताओं से अधिक रही | ये बड़े ही हर्ष का विषय है कि युवाओं विशेषकर महिलाओं में अपने राष्ट्र के प्रति ये विजन देखने को मिल रहा है |
    समाज में आज युवा-वर्ग भारत की हर राष्ट्रीय और अन्तरर्राष्ट्रीय स्थिति, परिस्थिति और इसके साथ ही इन सभी में भारत की भूमिका को देखते हुए बहुत गंभीरतापूर्वक विचार कर रहा है| अब वह समय नहीं जब युवा अपने सिलेबस से बाहर की बात कहकर अनदेखा कर दिया करता था बल्कि इसके उलट अब वह समाज में सामाजिक कार्यों से जुड़कर किस प्रकार की भूमिका हमारी होनी चाहिए? इस बात पर विचार करता है| किसी भी राष्ट्र को तभी पूरी दुनिया सम्मान से देखती है और सम्मान देती है जब वह अपनी संस्कृति, विरासत पर गर्व करते हुए आगे बढ़ता है | यह बात अब भारत का युवा जान चुका है और इसमें कोई संदेह भी नहीं कि युवा ही हमारे राष्ट्र का भविष्य हैं | आज भारत युवा शक्ति संपन्न राष्ट्र है, इतनी युवा शक्ति तो भारत के पास तब भी नहीं थी जब हमने आज़ादी पायी थी |
    ज़रा विचार कीजिये, इतनी विशाल युवा-शक्ति यदि कुछ करने की ठान ले तो वह भारत को किस उचाई पर ले जा सकती है | आज का युवा देश की तरक्की देख रहा है। सम्पूर्ण विश्व में भारत की साख पर गर्व भी महसूस कर रहा है | इसके साथ ही एक और शक्ति को भी अपने अन्तर्मन में महसूस कर रहा है वो है भारत की आध्यात्मिक शक्ति | यह स्पष्ट है कि युवा शक्ति, आध्यात्मिक शक्ति को महसूस कर पूर्ण सम्मान के साथ उसका समर्थन भी कर रही है| ये दोनों विश्व की महानतम शक्तियां हैं और इतिहास साक्षी है कि जब जब दो पावन शक्तियों का संयोग हुआ है तब तब इतिहास रच गया है | यह हमारा सौभाग्य ही है कि ये दो महान शक्तियां केवल भारत के पास ही हैं |
    विवेकानंद द्वारा रचित कर्मयोग में कर्म के रहस्य का ज्ञान का वर्णन किया गया है जिसमें सत्व, रजो और तम इन तीनों गुणों का सम्बन्ध मुख्यतः कर्मयोग से बताया गया है | कर्मयोग ही हमें यह शिक्षा देता है कि तीनो गुणों का उचित उपयोग किस प्रकार किया जा सकता है , हम अपना कार्य अच्छी प्रकार कैसे करें साथ ही यदि हम लोग सुसंस्कृत , सुशिक्षित हैं तो हमें चिंतन, दर्शन, कला और विज्ञान में आनंद मिलता है। इसके साथ ही धार्मिक चिंतन के अभ्यास में भी अलग ही आनंद है बल्कि स्वामी विवेकानंद ने तो अध्ययन के रूप में भी धर्म को अत्यंत आवश्यक माना है क्योंकि यह सर्वविदित है कि युवा सहज ही चिंता, तनाव, अवसाद से घिर जाता है तब अध्यात्म ही सबसे उपयुक्त मार्ग है जिसके माध्यम से सकारात्मक सोच और रचनात्मक द्रष्टिकोण प्राप्त किया जा सकता है। आध्यात्मिक होने का मतलब ये कदापि नहीं कि आपको संन्यास की ओर ले जाया जा रहा है बल्कि आध्यात्म के माध्यम से जीवन को बेहतर बनाने का तरीका हमारे शास्त्रों में बताया गया है | आज का युवा भी इन्ही सब आध्यात्मिक बातों का निरंतर चिंतन करते हुए आगे बढ़ रहा है |

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