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- आशुतोष वार्ष्णेय
श्रीगणेश की पूजा भाग्य बदलने की शक्ति प्रदान करती है। मानसिक अशांति और मन की चंचलता पर काबू पाने के लिए इस पर्व पर चंद्रदेव की उपासना का भी विधान है। देवों की विशेषताएं हीं उन्हें और वंदनीय बनाती हैं पर्व विशेष पर उनके गुणों को आत्मसात करने के लिए पूजा-अर्चना करने का विधान है। देव आराधना के माध्यम से उन दिव्य गुणों का समावेश भक्त के अन्तर्मन में होता है, जिससे भक्त का कल्याण होने लगता है। वैशाख मास कृष्ण पक्ष की संकष्टी गणेश चतुर्थी के दिन श्रीगणेश के गुणों को व्रत, उपवास, मंत्र जप और विधि-विधान से आत्मसात करना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार, देवता बनकर ही देवता की पूजा करनी चाहिए, जिसका अभिप्राय यह है कि भक्त को अपने अंदर भी देव गुणों को विकसित करने का प्रयास करना चाहिए। श्रीगणेश चतुर्थी व्रत प्रत्येक मास में किया जाता है, ताकि व्रती के बुद्धि-विवेक निर्मल बने रहें। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जब किसी व्यक्ति की कुंडली में बुध ग्रह कमजोर स्थिति में हो तो उसे श्रीगणेश की पूजा, उपासना करनी चाहिए, ताकि सही निर्णय लेकर व्यक्ति जीवन में सफलता प्राप्त करे। मन के स्वामी चंद्रदेव हैं, चतुर्थी तिथि पर बुद्धिदाता देवता श्रीगणेश की पूजा के साथ चंद्रदेव को अर्घ्य देकर मानसिक संतापों को दूर कर शुभ मनोरथ पूर्ण किया जाता है। मानसिक अशांति और मन की चंचलता पर काबू पाने के लिए इस पर्व पर चंद्रदेव की उपासना का महत्व बताया गया है। संकष्टी चतुर्थी पर चंद्रदेव को अर्घ्य देने के पीछे सुख और शांति की ऐसी ही कामनाएं और भावनाएं जुड़ी हैं। पुराणों में चतुर्थी का विशेष महत्व बताया गया है। भगवान श्रीगणेश की अर्चना के साथ उन्हें चंद्रोदय के समय अर्घ्य दिया जाता है। श्रीगणेश को पंचामृत से स्नान कराने के बाद फल, लाल फूल, अक्षत, रोली, जनेउ, मौली अर्पित करना चाहिए, लड्डुओं का भोग लगाना चाहिए तथा गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ अवश्य करना चाहिए। श्रीगणेश की पूजा लिए बस मन सच्चा होना चाहिए। पूजा के समय गणेश जी की मूर्ति या चित्र न उपलब्ध होने पर भी एक सुपारी को ही गणेश जी मानकर पूजन कर लिया जाता है। पूर्ण श्रद्धा से गणपति का आहवान और पूजन करने से एक सुपारी भी आपका भाग्य बदल सकती है। कल्याण करने वाले श्रीगणेश की पूजा का विधान अत्यंत ही सरल और संक्षिप्त है। इसमें अधिक साधनों की आवश्यकता नहीं रहती है, किंतु आस्था और श्रद्धा की सर्वाधिक आवश्यकता है। गणेश जी के असंख्य गुणों में से एक गुण है बाहरी आडंबरों से दूर रहना। श्रीगणेश ने यह सिद्ध किया है कि एक बालक के लिए उसके माता-पिता ही ब्रह्मांड हैं। जब ब्रह्मांड की परिक्रमा करने की बात आई तो गणेश जी ने अपने माता-पिता शिव- पार्वती की परिक्रमा कर सभी देवों का आशीर्वाद प्राप्त किया। एक अन्य कथा के अनुसार, शंकर द्वारा श्रीगणेश का सिर काटे जाने पर मां पार्वती बहुत क्रोधित हुईं। गज का सिर लगाने के बाद भी जब वह शिव जी से रूठी रहीं तो भगवान ने उन्हें वचन दिया कि उनके पुत्र की पूजा सबसे पहले की जाएगी।