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- शतरूपा
हाल में प्रकाशित इस समाचार ने कई लोगों का ध्यान खींचा कि कृत्रिम बुद्धि (आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस) का विकास करने वाले ज्योफ्री हिंटन ने गूगल से इस्तीफा दे दिया और अपने किए पर पछतावा जाहिर किया है। ‘कंप्यूटिंग का नोबेल पुरस्कार’ जीतने वाले हिंटन अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के खतरों के खिलाफ बोल रहे हैं। ज्योफ्री हिंटन कंप्यूटर वैज्ञानिक हैं जिन्होंने प्रसिद्ध चैटबॉट्स और बिंग को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने 2012 में टोरंटो विश्वविद्यालय में अपने दो स्नातक छात्रों के सहयोग से एआई के लिए मूल तकनीक बनाई थी। वह मानते हैं कि यह टेक इंडस्ट्री के लिए बड़ा कदम है। तकनीकी उद्योग जगत कृत्रिम बुद्धिमत्ता के संभावित प्रभाव के बारे में आशावादी है और इसे एक सफलता मानता है जो दवा अनुसंधान और शिक्षा जैसे विभिन्न क्षेत्रों को बदल सकती है। उसी तरह जैसे वेब ब्राउज़र ने 1990 के दशक की शुरुआत में बदलाव की शुरुआत की थी। हालांकि एलन मस्क जैसे आलोचकों को चिंता है कि जनरेटिव एआई गलत सूचना के लिए उपयोग किया जा सकता है और यह नौकरियों और यहाँ तक कि मानवता को भी खतरा पैदा कर सकता है।
यह विडंबना है कि आर्टिफिशियल इंटैलिजेंस को अब वही व्यक्ति गंभीर ख़तरा बता रहा है जिसको उसका जनक माना जाता है। हिंटन का कहना है कि एआई तकनीक पूरी दुनिया के लिए ख़तरा है। इस के कारण बहुत सी नौकरियां समाप्त हो जाएंगी। इस काम के लिए डाक्टर ज्याफ़्रे हिंटन ने स्वयं को ज़िम्मेदार बताया है। उन्होंने कहा कि इससे निबटना मुश्किल होगा। उन्होंने चैटबाट्स को भी बहुत ख़तरनाक बताया। उनका कहना था कि वर्तमान समय में बहुत सी कंपनियां एआई की दुनिया में नित नई खोेज कर रही हैं लेकिन इसके खतरे से निबटने के लिए उनके पास कोई योजना या विकल्प नहीं है। हिंटन पहले ऐसे व्यक्ति नहीं हैं जिनकी आत्मा काम कर चुकने के बाद जागी हो। परमाणु बम बनाने वाले ओपेनहाइमर के साथ भी ऐसा ही हुआ था और यदि हम गूगल पर खोजें तो ऐसे एक दर्जन आविष्कारकों की सूची सामने आ जाती है जिन्होंने अपनी उपलब्धि पर बाद में पछतावा जाहिर किया।
ओपेनहाइमर ने इस सिलिसले में भगवतगीता को भी उद्धृत किया था। उन्होंने वर्ष 1961 में एक साक्षात्कार में गीता को दोहराया- ‘अब मैं मृत्यु बन गया हूँ, संसार का नाश करने वाला।’ ऐसा ही लगभग डाइनामइट के आविष्कार को अनुभव हुआ। युद्ध में अपने इस आविष्कार के इस्तेमाल को देखकर इसके आविष्कारक अल्फ्रेड नोबेल बेहद हतोत्साहित हो गए थे। उन्हें महसूस हो गया था कि उनका ये आविष्कार युद्ध को बढ़ावा देगा। उन्होंने नुकसान की भरपाई के लिए नोबेल शांति पुरस्कार की शुरुआत की। हालांकि प्रथम विश्वयुद्ध में डायनामाइट के कारण जो तबाही हुई थी, वह देखने से पहले ही नोबेल की मृत्यु हो गई थी। उक्त प्रसंगों के प्रकाश में साफ है कि नया करने के जुनून में वैज्ञानिकों या आविष्कारकों ने मानवता का विचार नहीं किया किंतु जब उनके इन परिणामों का अहसास हुआ तो आत्मावलोकन की मुद्रा मेें आ गए । किंतु तब तक जो होना था, हो गया। उसके प्रयोग को रोका नहीं जा सकता था। इन सभी ने उस वक्त मानवता का विचार नहीं किया जब वे घातक आविष्कार पर काम कर रहे थे। दुनिया ऐसे आविष्कारों से होने वाले नुकसानों से नहीं बच सकी। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस इंसान की बुद्धि को जिस तरह कैद या भ्रष्ट करने जा रही है या दुनिया के सामने बेरोजगारी का जो संकट पैदा करने जा रही है, उसकी कल्पना भयावह है। हिंटन इसे रोक नहीं सकते। हिंटन को यदि पछतावा है तो उन्हें बड़े पैमाने पर इसके विरुद्ध जागरूकता के लिए काम करना ही अब एकमात्र सही रास्ता है।