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अमेठी से चुनाव क्यों नहीं लड़ते राहुल गाँधी

  • प्रभुनाथ शुक्ल
    कांग्रेस अमेठी और रायबरेली को लेकर असमंजस में है। अपनी परम्परागत सीट पर अपना उम्मीदवार तय नहीं कर पाई है। अमेठी और रायबरेली को लेकर मंथन जारी है। कहा यह जा रहा है कि यहाँ पांचवें चरण में वोटिंग होगी इसलिए पर्याप्त समय है। लेकिन सम्भवत: सच यह है कि अभी राहुल गाँधी एवं प्रियंका खुद तय नहीं कर पाए हैं कि उन्हें चुनावी मैदान में उतरना है या नहीं। फिलहाल दिखावे के लिए यह फैसला पार्टी अध्यक्ष खरगे पर छोड़ दिया गया है। पार्टी राहुल और प्रियंका को उम्मीदवार बनाने में डर क्यों रही है यह समझ से परे है। उन्हें क्या हार का भय भयभीत कर रहा या फिर वे चुनाव लड़ना नहीं चाहते हैं। ऐसा नहीं है तो उन्हें पार्टी का उम्मीदवार घोषित करना चाहिए कांग्रेस में संगठन या फिर गाँधी परिवार का फैसला सर्वमान्य है। मुझे तो ऐसा नहीं लगता क्योंकि अगर बात पार्टी स्तर पर होती तो अब तक फैसला हो गया होता।
    मुझे लगता है इसमें राहुल और प्रियंका गांधी का निजी निर्णय है जिसकी वजह से पार्टी फैसला नहीं ले पा रही है। क्योंकि प्रियंका गांधी ने कई बार संकेत दिया है वह चुनाव नहीं लड़ना चाहती हैं। लेकिन वर्तमान समय में जो स्थिति है वह कांग्रेस पार्टी के लिए बेहद चुनौती पूर्ण है। लेकिन अमेठी और रायबरेली के लिए यह स्थिति गाँधी परिवार के लिए कम से कम चुनौतीपूर्ण नहीं मानते हैं। क्योंकि अभी तक वहां से सोनिया गाँधी संसद पहुँचती रही हैं। कांग्रेस के लिए हार जीत के मायने से कहीं अधिक महत्वपूर्ण अमेठी और रायबरेली की जनता का सम्मान है क्योंकि दोनों अहम सीट गांधी परिवार की परंपरागत विरासत रही है। यह अलग बात है कि अमेठी से भजपा की स्मृति ईरानी चुनाव जीतने में सफल रहीं हैं। कांग्रेस राजनीति के संक्रमण काल से गुजर रही है लेकिन गांधी परिवार की अहमियत कांग्रेस और देश के लिए उतनी ही अहम है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने सियासी हमले के लिए सीधे तौर पर कांग्रेस को चुनते हैं। प्रधानमंत्री मोदी को अच्छी तरह मालूम है कि भाजपा का विकल्प कांग्रेस ही है।
    दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है। उत्तर प्रदेश में अगर गांधी परिवार की उपस्थिति शून्य है तो यह राजनीति के विश्लेषण का विषय है। लोकतंत्र में जय पराजय का खेल कोई मायने नहीं रखता क्योंकि यह फैसला जनता के हाथ में होता है। यह वही रायबरेली और अमेठी है जहां से श्रीमती इंदिरा गांधी को भी चुनाव हारना पड़ा। कांग्रेस विरोधी लहर में राज नारायण, जनता पार्टी से इंदिरा गाँधी के खिलाफ चुनाव जीत गए। राहुल गांधी के खिलाफ स्मृति ईरानी जीत गई। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि यह सीट कांग्रेस के हाथ से छिन गई। लोकतंत्र में हमेशा प्रयोग का विकल्प खुला रहता है। रायबरेली ने उन्हीं इंदिरा गांधी को फिर चुनकर दिल्ली भेजा। इसलिए हार जीत के डर से चुनाव न लड़ना गांधी परिवार की राजनीतिक कमजोरी होगी।
    उत्तर प्रदेश बड़ा हिंदी भाषी राज्य है। गांधी परिवार मूल रूप से उत्तर प्रदेश से आता है। उत्तर प्रदेश से ही उसकी राजनीतिक शून्यता बौद्धिक राजनीति का संकेत नहीं देती। गांधी परिवार के लिए रायबरेली और अमेठी अहम सीट रही है। लेकिन हाल यह है कि इस सीट पर गांधी परिवार को अपना राजनैतिक उत्तराधिकारी नहीं मिल पा रहा है।

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