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सियासी निशाने पर श्वेत पत्र का तीर

उमेश चतुर्वेदी
कुशल योद्धा अपने तरकश के तीरों को संभाल कर रखता है। उसे पता होता है कि किस तीर का इस्तेमाल कब करना है? संसदीय लोकतंत्र के चुनावों की तुलना हम प्राचीन काल के मैदानी युद्धों से कर सकते हैं। मैदानी युद्धों में राजा, सेनापति और उसके सैनिक लड़ते थे और आज के संसदीय चुनावों में राजनीति और उसके रणनीतिकार आमने-सामने होते हैं। संसदीय लोकतंत्र में यूं तो जनता का व्यापक समर्थन उसे ही मिलता है, जिस पर लोक का भरोसा ज्यादा होता है। इसी भरोसे को कमाने और विपक्षियों की अमृत नाभि पर वार करने की कुशल रणनीति ही आज की राजनीति का लक्ष्य है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आधुनिक राजनीति के कुशल रणनीतिक योद्धा ही हैं। उन्हें पता है कि लोक विश्वास कैसे हासिल किया जा सकता है और विपक्ष की कमजोर नस को कब दबाना है। लोकसभा में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन यानी यूपीए के दस साल के कार्यकाल के आर्थिक कुप्रबंधन पर केंद्रित श्वेत पत्र पेश करना मोदी की उसी रणनीति का उदाहरण है।
ऐन चुनावों के ठीक पहले के संसद सत्र में पेश श्वेत पत्र ने एक तरह से सोनिया गांधी की अगुआई वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार की खामियों और आर्थिक कुप्रबंधन को ही उजागर किया है। चुनावों के ठीक पहले इसके उजागर होने के चलते एक तरह से कांग्रेस पर ही सवाल उठे हैं। कांग्रेस को लगता है कि इससे उसे लेकर वोटरों की धारणा में नकारात्मक बदलाव हो सकता है। इस वजह से उसका बिलबिलाना स्वाभाविक है। बदले में उसका काला पत्र लाना इसी बिलबिलाहट का नतीजा है। जिसमें उसने मोदी सरकार के दस साल के कार्यकाल में बढ़ी बेरोजगारी और मुद्रास्फीति को मुद्दा बनाने की कोशिश की है।
श्वेत पत्र पहली बार 1922 में ब्रिटिश सरकार लेकर आई थी। हालांकि वह भी भारत से जुड़े मसले पर ही केंद्रित था। तब ब्रिटिश सरकार ने 1919 में भारत आए साइमन कमीशन की सिफारिशों के आधार पर भारत में पहला ‘संवैधानिक सुधार’ लाने की तैयारी की थी। पहला श्वेत पत्र इसी पर केंद्रित था। जिसे ब्रिटिश संसद की संयुक्त चयन समिति के सामने विचार के लिए पेश किया गया था। इसी श्वेत पत्र में भारत में संघीय सरकार प्रणाली की स्थापना का प्रावधान शामिल था।
श्वेत पत्र की राजनीति पर चर्चा से पहले हमें जानना चाहिए कि इसके जरिए संयुक्त प्रगतिशील सरकार के दौरान हुई किन गड़बड़ियों को उजागर किया गया है। 59 पृष्ठों के इस श्वेत पत्र में कहा गया है कि तब भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की पांच बदतर अर्थव्यवस्थाओं में शामिल थी। अंग्रेजी की एक शब्दावली ‘फ्रेजाइल फाइव’ भारत के आर्थिक कुप्रबंधन का प्रतीक बन गई थी। उसी दौरान देश में बारह दिनों का राष्ट्रमंडल खेल आयोजित हुआ, जिसमें घोटालों की भरमार रही। श्वेत पत्र में कहा गया है कि जब साल 2014 में मोदी की सरकार आई, तब भारतीय अर्थव्यवस्था बेहद नाजुक स्थिति में थी,। उस वक्त अत्यधिक कुप्रबंधन और वित्तीय अनुशासनहीनता व्याप्त थी। चौतरफा भ्रष्टाचार का बोलबाला था। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था बेहद संकट में थी। सवाल उठता है कि जब हमारी अर्थव्यवस्था ऐसी थी, तब श्वेत पत्र क्यों नहीं लाया गया? इसके जवाब में सरकार का कहना है कि अगर ऐसा किया जाता तो भारत को लेकर दुनिया में नकारात्मक धारणा बनती, जिससे निवेशकों सहित सबका विश्वास डगमगा जाता। श्वेत पत्र में एनडीए और यूपीए सरकार की तुलना भी की गई है। इसमें कहा गया है कि यूपीए सरकार के दौरान बैंकिंग व्यवस्था सबसे ज्यादा कुप्रबंधन की मार झेल रही थी। इसी में कहा गया है कि वाजपेयी सरकार के कार्यभार संभालते वक्त सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का एनपीए करीब 16.0 प्रतिशत था। वाजपेयी सरकार ने बैंकिंग व्यवस्था को दुरूस्त किया और छह साल बाद जब उसे जाना पड़ा, तब यह एनपीए घटकर महज 7.8 प्रतिशत रह गया था। लेकिन यूपीए सरकार के कार्यभार संभालने के बाद फिर कुप्रबंधन बढ़ा और सितंबर 2013 आते-आते सरकारी क्षेत्रों के बैंकों का एनपीए अनुपात 12.3 प्रतिशत तक बढ़ गया। इसकी वजह यह रही कि सरकारी क्षेत्र के बैंकों को ऋण देने के लिए राजनीतिक हस्तक्षेप बढ़ गया। उन चहेती कंपनियों को कर्ज दिए गए, जिनसे वापसी की गारंटी नहीं थी।
श्वेत पत्र के मुताबिक, इसी वजह से जब साल 2014 में मोदी सरकार ने कामकाज संभाला, बैंकिंग सेक्टर संकट से जूझ रहा था। श्वेत पत्र के मुताबिक, जहां 2004 में सरकारी क्षेत्र के बैंकों का कुल बकाया सिर्फ 6.6 लाख करोड़ रुपये था, जो राजनीतिक हस्तक्षेप की वजह में मार्च 2012 में बढ़कर 39.0 लाख करोड़ रुपये हो गया। श्वेत पत्र में मार्च 2014 में प्रकाशित क्रेडिट सुइस रिपोर्ट का भी हवाला दिया गया है। जिसके अनुसार एक से कम ब्याज कवरेज अनुपात वाली टॉप-200 कंपनियों पर बैंकों का लगभग 8.6 लाख करोड़ रुपये तब तक बकाया था। तब 2जी घोटाला हुआ, जिसमें स्पेक्ट्रम की बंदरबांट हुई थी। यूपीए के ही दौरान कोयला घोटाला हुआ, जिसकी वजह से देश को हजारों करोड़ के राजस्व का नुकसान हुआ। सोना के आयात के लिए कुछ ही लोगों को अनुमति दी गई। श्वेत पत्र में कहा गया है कि आर्थिक प्रबंधन के मोर्चे पर बेहतरी का ही नतीजा है कि अब भारत फ्रेजाइल फाइव से दुनिया की पांच बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो गया है। अब हमारा योगदान वैश्विक विकास में तीसरे सबसे बड़े भागीदार के रूप में है। अब स्थिति यह है कि देश में सबसे कम दरों वाली नेटवर्क कवरेज है, जो 2जी की बजाय 4जी और 5जी तक की यात्रा कर चुकी है। आज निवेश बढ़ा है। भारत के सामने अब विदेशी मुद्रा संकट नहीं रहा, बल्कि अब देश के बाद भारत के पास 620 अरब अमेरिकी डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है। अब महंगाई दर एक अंक में है। मुद्रास्फीति घटकर पांच प्रतिशत के आसपास है। आर्थिक नीतियों का ही कमाल है कि भारत में स्टार्टअप तेजी से बढ़े हैं और देश में निवेश एवं रोजगार के मौके बढ़े हैं। चुनावी साल में विपक्ष की ओर से इस श्वेत पत्र का जवाब न आता तो ही हैरानी होती। कांग्रेस ने जवाबी ब्लैक यानी काला पत्र जारी किया है। जिसमें कहा गया है कि 2012 के एक करोड़ बेरोजगारों की तुलना में 2022 में 4 करोड़ लोग बेरोजगार थे। इसमें कहा गया है कि सरकारी विभागों में 10 लाख स्वीकृत पद खाली पड़े हैं। ब्लैक पत्र में आरोप लगाया गया है कि करीब एक तिहाई ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट बेरोजगार हैं। इसमें कहा गया है कि दो बेरोजगार प्रति घंटे आत्महत्या कर रहे हैं। ब्लैक पेपर के मुताबिक, मई 2014 की तुलना में 2024 में कच्चे तेल के दामों में 20 फीसद गिरावट हुई, इसके बावजूद एलपीजी, पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कमी नहीं हुई, बल्कि बढ़ती रही।

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