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- प्रणय कुमार
राजनीति भी व्यापक मानवीय संस्कृति का एक प्रमुख आयाम है। भारतीय जनमानस के लिए राजनीति कभी अस्पृश्य या अरुचिकर नहीं रही। स्वतंत्रता-आंदोलन के दौर से ही राजनीति जनसेवा एवं सरोकारों के निर्वाह का सशक्त माध्यम रही। स्वतंत्रता के बाद के प्रारंभिक दशकों में भी राजनीति जनसरोकारों को लेकर चली। बाद के दिनों में एक ऐसा कालखंड अवश्य आया जब जातिवाद, क्षेत्रवाद, वंशवाद एवं क्षद्म धर्मनिरपेक्षता की घोल पिलाकर मतदाताओं को लामबंद कर सत्ता बनाए रखने के कुचक्र रचे गए और उसमें कुछ दशकों तक राजनीतिज्ञ सफल होते भी दिखे। परंतु जैसे काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ाई जा सकती वैसे ही सफलता की गारंटी माने जाने वाले ये सूत्र भी विफल हुए। भारतीय जनमानस का इससे मोहभंग हुआ।
जातिवाद एवं छद्म पंथनिरपेक्षता का झुनझुना लोगों को दो वक्त की रोटी नहीं दे सकता, इसलिए लोग इससे विमुख होकर विकास और सेवा की राजनीति की आकांक्षा और स्वप्न संजोने लगे। आम मतदाताओं के इस मन और मिजाज को इक्कीसवीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए ही प्रधानमंत्री मोदी ने पढ़ और समझ लिया था। उन्होंने उसी दौर में विकास को राजनीति के केंद्र में स्थापित करना शुरू कर दिया था। तब गुजरात में विकास की रफ्तार को देखकर बाकी राज्यों को भी लगने लगा कि यदि दिशा, दृष्टि और इच्छाशक्ति हो तो जनभावनाओं एवं जनाकांक्षाओं को साकार किया जा सकता है। मुख्यमंत्री रहते हुए भी नरेंद्र मोदी की एक राष्ट्रीय अपील एवं छवि थी। राज्येतर जनाधार था। वे उसी कालखंड में राजनीति में एक उम्मीद बनकर उभरे। यदि हम तटस्थ एवं ईमानदार विश्लेषण करें तो यह निष्कर्ष अनुचित एवं अतिरेकी नहीं होगा कि भारतीय जनता पार्टी द्वारा उम्मीदवारी की औपचारिक घोषणा से पूर्व ही वे जनमानस द्वारा प्रधानमंत्री के स्वाभाविक उम्मीदवार या दावेदार मान लिए गए थे। वस्तुतः वे केवल दल के नहीं, अपितु सही अर्थों में जनता के प्रधानमंत्री हैं। एक भारत, श्रेष्ठ भारत, सशक्त भारत, विकसित भारत के लिए वे पूरी तरह समर्पित एवं प्रतिबद्ध हैं। राजनीति में उन्होंने कई साहसिक प्रयोग किए, जिन्हें जनता का अपार समर्थन मिला।
वे एक ऐसे प्रधानमंत्री के रूप में सामने आए, जो केवल शासन-प्रशासन के स्तर पर ही चाक-चौबंद नहीं रखते, अपितु जनसरोकारों से जुड़े लोकहित के छोटे-छोटे मुद्दों पर भी खुलकर अपनी राय रखते हैं और सरकार की भागीदारी सुनिश्चित करते हैं। नरेंद्र मोदी से पूर्व शायद ही किसी ने सोचा हो कि कोई प्रधानमंत्री स्वच्छता-अभियान को जन-आंदोलन में परिणत कर सकता है, घर-घर शौचालय का अभियान चला सकता है, छोटे-छोटे बच्चे जिसके अभियान के सैनिक और दूत बनकर बड़ों को राह दिखा सकते हैं! उनके कार्यकाल में लगभग 12 करोड़ घरों में शौचालय बनवाए गए। लगभग इतने ही लोगों के घरों तक नल से जल पहुँचाया गया है। प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत करोड़ों लोगों को आवास आवंटित किए जा चुके हैं। 50 करोड़ से अधिक लोगों का आयुष्मान योजना कार्ड बनवाकर उन्हें स्वास्थ्य-लाभ पहुँचाया जा रहा है।
उनके कार्यकाल में 18000 से अधिक गाँवों एवं हजारों बस्तियों में पहली बार बिजली पहुँची। उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद से अगस्त, 2018 तक 2.86 घर बिजली से जुड़े। इतनी कम समय-सीमा में बिजली पहुँचाने की दृष्टि से यह दुनिया के ऊर्जा क्षेत्र के इतिहास में सबसे बड़ा विस्तार था। भारत विद्युत ऊर्जा के क्षेत्र में तो आत्मनिर्भर हुआ ही है, सौर-ऊर्जा का भी सबसे बड़ा केंद्र बनता जा रहा है। मोदी सरकार द्वारा 400 वंदे भारत ट्रेन चलाने का लक्ष्य रखा गया है, इनमें 20 तो चल रही है। स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद के 68 वर्षों में 74 एयरपोर्ट बने थे, परंतु पिछले नौ वर्षों में 74 एयरपोर्ट और हेलीपैड बन गए हैं। सड़क निर्माण में 500 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। 2014 से पहले राष्ट्रीय राजपथ प्रतिदिन 12 किलोमीटर की दर से बनते थे, जो अब 37 किलोमीटर की दर से बन रहा है। 2014 तक के पाँच शहरों की तुलना में 15 शहरों में मेट्रो-सेवा का विस्तार हुआ है।
उनके द्वारा प्रारंभ की गई ‘जन-धन योजना’ गरीब कल्याण एवं विकास की दिशा में मील का पत्थर साबित हुई। इस योजना के अंतर्गत अब 49.50 करोड़ लोगों के खाते बैंक में खोले जा चुके हैं। ‘उज्ज्वला योजना’ महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक ठोस कदम सिद्ध हुआ। 9.5 करोड़ से भी अधिक महिलाएँ इस योजना का लाभ उठा चुकी हैं ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना ने गिरते शिशु लिंगानुपात पर रोक लगाई और कन्या भ्रूण हत्या जैसे नृशंस एवं मानवीय कुकृत्य पर अंकुश लगाने में बड़ी सफलता पाई। ‘सुकन्या समृद्धि योजना’ ने बेटियों को लक्ष्मी एवं शक्ति स्वरूपा मानने की दिशा में समाज को प्रेरित किया।
प्रधानमंत्री मोदी का अब तक कार्यकाल कई मायनों में ऐतिहासिक एवं उपलब्धिपूर्ण रहा है। उन्होंने अपने दूसरे कार्यकाल के पहले साल में ही जम्मू-कश्मीर से धारा 370 एवं अनुच्छेद 35A समाप्त कर अपने मज़बूत इरादे स्पष्ट कर दिए, तीन तलाक के खिलाफ क़ानून और नागरिकता संशोधन विधेयक पारित कर उन्होंने साफ़ संदेश दिया कि तमाम विरोधों एवं दबावों के बावजूद राष्ट्रहित के मुद्दों पर वे किसी प्रकार का समझौता नहीं करेंगें। जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख के विकास के लिए न केवल अनेकानेक परियोजनाओं पर तेज़ी से काम किया जा रहा है, बल्कि घाटी में लोकतंत्र की बहाली के लिए भी प्रयास जोरों पर है। परिसीमन की प्रक्रिया लगभग पूरी की जा चुकी है। अब वहाँ के किशोरों एवं युवाओं के हाथों में पत्थर नहीं, किताब-कॉपी-कलम हैं। जम्मू-कश्मीर आज शांति व प्रगति की राह पर तीव्रता से आगे बढ़ रहा है। उत्तर-पूर्व में विकास की बयार बह रही है। दशकों तक उपेक्षित रहने वाला उत्तर-पूर्व राष्ट्र का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा या केंद्रीय धुरी बनकर पहली बार उभरा है।
अफगानिस्तान की सत्ता पर तालिबान के कब्ज़े के बाद बड़ी संख्या में वहाँ से भारत आए सिख एवं कट्टरपंथी पाकिस्तान के उत्पीड़न से त्रस्त होकर आए हिंदू शरणार्थियों ने नागरिकता संशोधन क़ानून के औचित्य को भी प्रमाणित किया है। राम-मंदिर का विरोध कर रहे तमाम दलों नेताओं, एवं पंथनिरपेक्षतावादी तंत्र (ईको सिस्टम) को उन्होंने साफ़-साफ़ संदेश दिया कि राम-मंदिर उनकी पार्टी के लिए केवल एक चुनावी नहीं, अपितु सुदीर्ध-सुविचारित चिंतन से निःसृत सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय मुद्दा रहा है और उसे लेकर वे या उनकी सरकार किसी भ्रम या द्वंद्व की शिकार नहीं है। राम-मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर उन्होंने जन-जन की आस्था, प्रेरणा एवं आदर्श के प्रतीक श्रीराम के प्रति सच्ची श्रद्धा एवं भक्ति तो प्रदर्शित की ही, राष्ट्र के गौरव-बोध का भव्य भाव-मंदिर भी स्थापित किया। इतना ही नहीं केदारनाथ, काशी, उज्जैन जैसे तमाम तीर्थस्थलों तथा अनेक ऐतिहासिक स्थलों पर भव्य एवं दिव्य निर्माण कार्य सुसंपन्न करा उन्होंने जनसाधारण के मन में वर्षों से पल रहे स्वप्नों को साकार किया है। ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ न केवल कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल को दी गई एक सच्ची श्रद्धांजलि है, अपितु सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के किसानों के औज़ार और मिट्टी का उपयोग किए जाने के कारण यह ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की भावना की भी जीवंत अभिव्यक्ति है। (क्रमश:)