Home » अपनी विदेश यात्राओं में राहुल ने क्या खोया क्या पाया

अपनी विदेश यात्राओं में राहुल ने क्या खोया क्या पाया

  • अजय सेतिया
    राहुल गांधी की अमेरिका यात्रा में तो इतने विवादास्पद किस्से हो गए हैं कि उस पर एक किताब लिखी जा सकती है। अगर उनकी भाषण श्रंखला के आयोजकों के इतिहास और वर्तमान, कार्यक्रमों में मंच पर बैठे लोगों के कारनामों और राहुल गांधी के भाषणों की चीरफाड़ करने वाले लेख लिखे जाएं, तो कांग्रेस को जवाब देना मुश्किल हो जाए। उनके कार्यक्रमों के आयोजकों में ज्यादातर भारत विरोधी एनआरआई थे, जिन में कुछ कश्मीर की आज़ादी के आन्दोलन से जुड़े हैं, तो कुछ खालिस्तान की आज़ादी के आन्दोलन से जुड़े हैं। कार्यक्रमों के आयोजकों एक बड़ा तबका वह था, जो पाकिस्तान की गुप्तचर एजेंसी आईएसआई के साथ मिलकर अमेरिका में भारत विरोधी लाबिंग करता है। भारत में होने वाली हर घटना पर भारतीय दूतावास के सामने नारे लगाने वाले लोग राहुल गांधी के कार्यक्रमों में मौजूद थे। जब तक राहुल गांधी भारत लौटते हैं, भारत में उनके भाषणों से ज्यादा उनके कार्यक्रमों के आयोजकों की पृष्ठभूमि वाली खबरें भारत में उनकी छवि खराब कर चुकी होती हैं, जिसका कांग्रेस को लंबे समय तक जवाब देना पड़ता है।
    उनकी विदेश यात्राओं के को-आर्डिनेटर सैम पित्रोदा को यह गलतफहमी है कि वह विदेशों में मोदी सरकार के खिलाफ बोल कर भारत में वोट हासिल कर सकते हैं। बल्कि सैम पित्रोदा जैसे सलाहाकार राहुल गांधी का राजनीतिक नुक्सान कर रहे हैं। भारत के वाहर होने वाली हर यात्रा से राहुल गांधी नकारात्मक प्रचार हासिल कर रहे है, जबकि भारत में जब उन्होंने 40 दिन की भारत जोड़ो यात्रा की तो उन्हें सकारात्मक प्रचार मिला। जिस मीडिया को वह भारत से बाहर जा कर कोस रहे हैं, उसी मीडिया ने उनकी भारत जोड़ो यात्रा में उन्हें सकारात्मक प्रचार दिलाया। वह जब जब भारत से बाहर जाते हैं, उनकी सोच का दायरा सिकुड़ जाता है। वह सिर्फ वही मुद्दे ढूंढते हैं, जिन से भारत विरोधी लाबी से तालियां बजवाई जा सकें। जैसे अपने शुरुआती भाषण में ही उन्होंने कहा कि इस समय भारत के हर अल्पसंख्यक की हालत खराब है, उनका जीना हराम हो गया है। यह वही भाषा है, जिस का इस्तेमाल पाकिस्तान हर अंतर्राष्ट्रीय मंच पर कर रहा है। राहुल गांधी ने इस में मुसलमानों के साथ साथ सिखों और दलितों को भी जोड़ दिया।
    अगर वह हिन्दू सोच के होते, तो यह कभी नहीं कहते, क्योंकि हिन्दू सोच में सिख हिन्दुओं का ही अंग हैं, और दलित तो हिन्दू हैं ही। हिन्दुओं पर लागू होने वाले सारे क़ानून सिखों और दलितों पर भी लागू होते हैं, संविधान निर्माताओं ने सिखों, जैनियों को हिन्दुओं की ही शाखा माना था, राहुल गांधी को इतिहास का इतना ज्ञान तो होना चाहिए। हिन्दुओं में फूट डालने के लिए सिखों को 1993 में और जैनियों को 2013 कांग्रेस ने ही अल्पसंख्यकों की श्रेणी में रखा, लेकिन अब वह कह रहे हैं कि भारत में हर अल्पसंख्यक के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार हो रहा है, क्या यह सच है ? सिखों के साथ ऐसा क्या हो रहा है, जिसका उल्लेख उन्होंने अमेरिका में किया। क्योंकि उनके कार्यक्रम में खालिस्तान समर्थकों ने नारेबाजी शुरू कर दी थी, इसलिए उन्होंने उन खालिस्तानियों की हमदर्दी हासिल करने के यह बात कह दी। राहुल गांधी का यह बयान खालिस्तान आन्दोलन को हवा देने वाला है कि भारत में सिखों के साथ दुर्व्यवहार या भेदभाव हो रहा है।
    देश और दुनिया अच्छी तरह जानती है कि भिंडरावाले को किसने खड़ा किया था और क्यों खड़ा किया था। अकाली दल को कमजोर करने की छोटी राजनीतिक मानसिकता के कारण खालिस्तान आन्दोलन पंजाब के कांग्रेसियों के दिमाग की ही उपज थी। जिसने हिन्दुओं और सिखों में खाई पैदा करने का काम किया, जिसे भरने में अमरेन्द्र सिंह जैसे कांग्रेसियों को कई साल लगे। अब फिर पंजाब के सिखों ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया है, तो राहुल गांधी फिर सिखों को भडकाने वाले बयान दे रहे हैं, जबकि सिख यह कभी नहीं भूलेंगे कि 1984 में उनके साथ क्या हुआ था, और किसने किया था। सिखों के बारे में उनके इस बयान से भारत के बाहर खालिस्तान का आन्दोलन चलाने वालों को जरुर आक्सीजन मिलेगी, लेकिन पंजाब के सिखों पर उनके इस बयान का कोई असर नहीं होगा।
    राहुल गांधी ने अपने भाषणों की श्रंखला जय मीम से शुरू की और जय भीम पर खत्म की। एक समय में यह बहुजन समाज पार्टी का नारा था, अब असुदुद्दीन ओवेसी की पार्टी कसा नारा है। उतर प्रदेश में मुसलमानों को अपने साथ जोड़ने के लिए दलित समुदाय पर आधारित बसपा ने यह नारा लगाया था, ताकि मुस्लिम-दलित का गठबंधन बना कर सत्ता हासिल की जा सके। बसपा को इस नारे पर एक बार सत्ता हासिल हो भी गई थी, लेकिन यह नारा दुबारा नहीं चला। कर्नाटक में भी कांग्रेस इसी कम्बीनेशन से सत्ता हासिल करने में कामयाब रही है, इसलिए राहुल गांधी विदेशों में जा कर कांग्रेस को यह नारा लगाने के लिए कह रहे हैं। यहां जय मीम का मतलब मोमिन यानि मुस्लिम से है, और जय भीम का मतलन भीमराव आंबेडकर से है।

Swadesh Bhopal group of newspapers has its editions from Bhopal, Raipur, Bilaspur, Jabalpur and Sagar in madhya pradesh (India). Swadesh.in is news portal and web TV.

@2023 – All Right Reserved. Designed and Developed by Sortd