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- ललित गर्ग
बेशक 31 मई 2022 को विश्व तम्बाकू विरोधी दिवस मनाया जा रहा है मगर ऐसे दिवस को मनाने की उपयोगिता तभी है जब नशे की अंधी गलियों में भटक चुके युवाओं को बाहर निकालना विश्व की हर सरकार का नैतिक एवं प्राथमिक कर्तव्य हो, क्योंकि युवा पीढ़ी नशे की गुलाम हो चुकी है। विश्व की गम्भीर समस्याओं में प्रमुख है तम्बाकू और उससे जुड़े नशीले पदार्थों का उत्पादन, तस्करी और सेवन में निरन्तर वृद्धि होना। नई पीढ़ी इस जाल में बुरी तरह कैद हो चुकी है। आज हर तीसरा व्यक्ति विशेषतः महिलाएं किसी-न-किसी रूप में तम्बाकू की आदी हो चुकी है। बीड़ी-सिगरेट के अलावा तम्बाकू के छोटे-छोटे पाउचों से लेकर तेज मादक पदार्थों, औषधियों तक की सहज उपलब्धता इस आदत को बढ़ाने का प्रमुख कारण है। इस दीवानगी को ओढ़ने के लिए प्रचार माध्यमों ने भी भटकाया है।
सरकार की नीतियां भी दोगली है। लेकिन तेलंगाना सरकार ने एक सराहनीय कदम उठाते हुए तंबाकू और निकोटीन युक्त गुटखा व पान मसाला पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है, वह सुखद है। ऐसे गुटखों या पान मसालों के निर्माण, भंडारण, वितरण, परिवहन और बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लग गया है। हालांकि, अभी यह पाबंदी एक वर्ष के लिए है, शायद आगे इसकी समीक्षा होगी और उसके बाद राज्य सरकार स्थायी प्रतिबंध का फैसला करेगी। ऐसे निर्णय केन्द्र सरकार एवं विभिन्न प्रांतों की सरकारों को भी लेने चाहिए। क्योंकि एक नशेड़ी पीढ़ी का देश कैसे आदर्श हो सकता है? कैसे स्वस्थ हो सकता है? कैसे प्रगतिशील हो सकता है? इस दुर्व्यसन के आदि लोग सुधरने को तैयार नहीं हैं। ऐसे में, तेलंगाना में लगा प्रतिबंध कितना कारगर होगा, यह देखने वाली बात है। तेलंगाना अगर अपनी सीमा में प्रतिबंध को कड़ाई से लागू करे, तो उसके पड़ोसी राज्यों तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र को भी सहयोग के लिए खड़ा होना पड़ेगा। नशे की गंभीरता एवं विकरालता को देखते हुए साल 1987 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सदस्य देशों ने एक प्रस्ताव पारित किया और हर 31 मई को विश्व तम्बाकू विरोधी दिवस मनाने का फैसला किया गया।
आज छोटे-छोटे बच्चे एवं महिलाएं नशे के आदि हो चुकी हैं। वे ऐसे नशे करती है कि रुह कांपती है। हर साल लाखों लोग नशे के कारण अपना जीवन दांव पर लगा रहे हैं। नशा आज एक फैशन बन चुका है। पूरे विश्व के लोगों को तंबाकू मुक्त और स्वस्थ बनाने के लिये तथा सभी स्वास्थ्य खतरों से बचाने के लिये तंबाकू चबाने या धूम्रपान के द्वारा होने वाले सभी परेशानियों और स्वास्थ्य जटिलताओं से लोगों को आसानी से जागरूक बनाने के लिये इस दिवस की महत्वपूर्ण भूमिका है। लेकिन यह विडम्बनापूर्ण है कि सरकारों के लिये यह दिवस कोरा आयोजनात्मक है, प्रयोजनात्मक नहीं। क्योंकि सरकार विवेक से नहीं, स्वार्थ से काम ले रही है। शराबबन्दी का नारा देती है, नशे की बुराइयों से लोगों को आगाह भी करती है और शराब, तम्बाकू का उत्पादन भी बढ़ा रही है। राजस्व प्राप्ति के लिए जनता की जिन्दगी से खेलना क्या किसी लोककल्याणकारी सरकार का काम होना चाहिए?
भारत में गुटखा सहित धुआं रहित तंबाकू का उपयोग एक खतरनाक कुचलन है, जिससे गंभीर किस्म की बीमारियां होती हैं। विशेष रूप से गुटखा से कैंसर का खतरा होता है और इसी वजह से साल 2002 से ही गुटखा पर नियंत्रण के प्रयास चलते रहे हैं। साल 2012 से भारतीय राज्यों द्वारा प्रतिबंधित होने के बावजूद गुटखा व्यापक रूप से उपयोग में है। गुटखा लॉबी देश भर में बहुत मजबूत है और इससे सरकारों व उनमें शामिल लोगों को गलत ढंग से भारी कमाई होती है। सबसे पहला राज्य मध्य प्रदेश है, जिसने गुटखा पर प्रतिबंध लगाया था, पर क्या वहां सफलता मिली? बिहार, गुजरात जैसे राज्य, जहां कहने को तो शराब प्रतिबंधित है, पर क्या वहां शराब का मिलना बंद हो गया है? ठीक इसी तरह से गुटखा के साथ हुआ है।