Home » पानी को सहेजने से ही दूर हो सकता है जल संकट

पानी को सहेजने से ही दूर हो सकता है जल संकट

  • पंकज चतुर्वेदी
    इस बार अनुमान है कि मानसून की कृपा देश पर बनी रहेगीबरसात के विदा होते ही देश के बड़े हिस्से में बूंद-बूंद के लिए मारामारी शुरू हो जाती हैजानना जरूरी है कि नदी-तालाब-बावड़ी-जोहड़ आदि जल स्रोत नहीं हैं।
    इस बार अनुमान है कि मानसून की कृपा देश पर बनी रहेगी। ऐसा बीते दो साल भी हुआ, इसके बावजूद बरसात के विदा होते ही देश के बड़े हिस्से में बूंद-बूंद के लिए मारामारी शुरू हो जाती है। जानना जरूरी है कि नदी-तालाब-बावड़ी-जोहड़ आदि जल स्रोत नहीं हैं, ये केवल जल को सहेज रखने के खजाने हैं। जल स्रोत तो बारिश ही है और जलवायु परिर्तन के कारण साल दर साल बारिश का अनियमित होना, बेसमय होना और अचानक तेज गति से होना घटित होगा ही।
    आंकड़ों के आधार पर हम पानी के मामले में पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा समृद्ध हैं, लेकिन चिंता का विषय यह है कि पूरे पानी का कोई 85 फीसदी बारिश के तीन महीनों में समुद्र की ओर बह जाता है और नदियां सूखी रह जाती हैं। यह सवाल हमारे देश में लगभग हर तीसरे साल खड़ा हो जाता है कि ‘औसत से कम’ पानी बरसा या बरसेगा, अब क्या होगा? देश के 13 राज्यों के 135 जिलों की कोई दो करोड़ हेक्टेयर कृषि भूमि प्रत्येक दस साल में चार बार पानी के लिए त्राहि-त्राहि करती है। असल में इस बात को लोग नजरअंदाज कर रहे हैं कि यदि सामान्य से कुछ कम बारिश भी हो और प्रबंधन ठीक हो तो समाज पर इसके असर को गौण किया जा सकता है।
    हमारे यहां बरसने वाले कुल पानी का महज 15 प्रतिशत ही संचित हो पाता है. शेष पानी नालियों, नदियों से होते हुए समुद्र में जाकर मिल जाता है. जाहिर है कि बारिश का जितना हल्ला होता है, उतना उसका असर पड़ना चाहिए नहीं। हां, एक बात सही है कि कम बारिश में भी उग आने वाले मोटे अनाज जैसे ज्वार, बाजरा, कुटकी आदि की खेती व इस्तेमाल कम हुआ है, वहीं ज्यादा पानी मांगने वाले सोयाबीन व अन्य कैश क्राॅप ने खेतों में अपना स्थान बढ़ाया है। तभी थोड़ा भी कम पानी बरसने पर किसान रोता दिखता है।
    दु:खद है कि बरसात की हर बूंद को सारे साल जमा करने वाली गांव-कस्बे की छोटी नदियां बढ़ती गरमी, घटती बरसात और जल संसाधनों की नैसर्गिकता से लगातार छेड़छाड़ के चलते लुप्त हो गईं या गंदे पानी के निस्तार का नाला बना दी गईं। देश के चप्पे-चप्पे पर छितरे तालाब तो हमारा समाज पहले ही चट कर चुका है. कुएं तो भूली-बिसरी बात हो गए।
    बिहार जैसे सूबे की 90 प्रतिशत नदियों में पानी नहीं बचा. हम भूल जाते हैं कि प्रकृति जीवनदायी संपदा यानी पानी हमें एक चक्र के रूप में प्रदान करती है और इस चक्र को गतिमान रखना हमारी जिम्मेदारी है। इस चक्र के थमने का अर्थ है हमारी जिंदगी का थम जाना। प्रकृति के खजाने से हम जितना पानी लेते हैं उसे वापस भी हमें ही लौटाना होता है। इसके लिए जरूरी है कि विरासत में हमें जल को सहेजने के जो साधन मिले हैं उनको मूल रूप में जीवंत रखें. बरसात ही जल संकट का निदान है।

Swadesh Bhopal group of newspapers has its editions from Bhopal, Raipur, Bilaspur, Jabalpur and Sagar in madhya pradesh (India). Swadesh.in is news portal and web TV.

@2023 – All Right Reserved. Designed and Developed by Sortd